पाकिस्तान में आठ फरवरी को बारहवां आम चुनाव संपन्न हुआ था। नतीजों के एलान को भी कई दिन बीत चुके हैं। लेकिन अब तक पाकिस्तान की जनता को नई सरकार नहीं मिली है। चुनाव जीतने वालों में इमरान खान की पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ (PTI) समर्थित निर्दलीय उम्मीदवारों की संख्या सबसे अधिक है।
दूसरे नंबर पर नवाज शरीफ की पाकिस्तान मुस्लिम लीग (नवाज़) है और तीसरे स्थान भुट्टो-जरदारी परिवार के नेतृत्व वाली पार्टी पीपीपी ने हासिल की है। हालांकि पीएमएल-एन और पीपीपी को इतनी कम सीटें मिली हैं कि दोनों मिलकर भी सरकार बनाने की हालत में नहीं हैं।
चुनाव को इतने दिन बीत जाने और हालात में सुधार न नज़र आने पर राजनीतिक विश्लेषक यह कहने लगे हैं कि अगर नई सरकार बन भी गई तो ज्यादा दिन टिक नहीं पाएगी यानी सरकार कमजोर होगी। अब सवाल उठता है कि पाकिस्तान में कमजोर सरकार बनने से भारत पर क्या असर पड़ेगा? आइए जानते हैं:
द इंडियन एक्सप्रेस पर प्रकाशित शुभजीत रॉय के आर्टिकल में बताया गया है कि यदि पाकिस्तान में जनता द्वारा चुनी हुई सरकार अस्थिर और कमजोर होगी, सेना का हस्तक्षेप अधिक होगा। ऐसे में भारत के सामने यह प्रश्न होगा कि वह द्विपक्षीय संबंधों में किसी भी सार्थक प्रगति के लिए किससे बात करे?
नया दौर मीडिया के संस्थापक रज़ा रूमी ने द इंडियन एक्सप्रेस को बताया है, “संभावना है कि पाकिस्तान की आगामी सरकार एक अस्थिर गठबंधन सरकार हो। उम्मीद है कि भारत के साथ संबंधों को सामान्य बनाने के लिए कुछ कदम उठाए जाएंगे। लेकिन राजनीतिक अराजकता को देखते हुए, यह स्पष्ट नहीं है कि इसका परिणाम क्या होगा। खासतौर पर तब जब इमरान के नेतृत्व वाला बड़ा गुट इस नीति पर सहमत न हो।”
शरीफ करेंगे कोशिश लेकिन…
नई दिल्ली स्थित जामिया मिलिया इस्लामिया के एकेडमी ऑफ इंटरनेशनल स्टडीज के प्रोफेसर अजय दर्शन बेहरा ने कहा है, “वैसे तो नवाज शरीफ द्विपक्षीय व्यापार के समर्थक हैं। वह अपनी लड़खड़ाती अर्थव्यवस्था को सुधारने के लिए भारत के साथ व्यापार भी खोलना चाहते हैं। भारत को भी इससे कोई परेशानी नहीं होगी। लेकिन समस्या यह है कि पाकिस्तान में प्रधानमंत्री के पद पर बैठने वाले किसी भी व्यक्ति के पास सीमित मात्रा में शक्ति होगी, उसे अंतत: सेना प्रमुख जनरल असीम मुनीर की सुननी होगी।”
पाकिस्तान की स्थिति को पश्चिमी दुनिया कैसे देख रही है?
पश्चिमी दुनिया को चिंता है कि अगर पाकिस्तान में कमजोर सरकार बनती है तो देश के लिए आवश्यक सुधार नहीं हो पाएंगे। जॉन्स हॉपकिन्स यूनिवर्सिटी के स्कूल ऑफ एडवांस्ड इंटरनेशनल स्टडीज में प्रोफेसर जोशुआ टी व्हाइट द इंडियन एक्सप्रेस को बताते हैं कि, “यहां वाशिंगटन में सबसे महत्वपूर्ण चिंता यह है कि नई गठबंधन सरकार कमजोर होगी या तो अनिच्छुक होगी। ऐसे में सब्सिडी, टैक्स और एनर्जी के क्षेत्र में लंबे समय से चली आ रही समस्याओं से संबंधित कठिन लेकिन आवश्यक सुधार नहीं हो पाएंगे। अर्थव्यवस्था का पहिया रुक जाना, पाकिस्तान ही नहीं, भारत, अमेरिका या किसी भी अन्य देश के लिए अच्छा नहीं है।”
वह आगे कहते हैं, “यह बात सही है कि जब भारत के साथ पाकिस्तान के संबंधों की बात आती है तो पाकिस्तान की सेना निर्वाचित नेताओं को उनके अधिकार का अधिक इस्तेमाल करने की अनुमति नहीं देगी।”
पाकिस्तान के एक चुनाव में किसी राजनीतिक दल ने नहीं लिया था हिस्सा, तानाशाह ज़िया ने बनाया था खास प्लान
History Of Pakistan Elections: पाकिस्तान के राजनीतिक इतिहास में लोकतंत्र की भयंकर अवहेलना दिखती है। पड़ोसी देश में अब तक तीन सैन्य तख्तापलट हो चुके हैं, 30 प्रधानमंत्री बन चुके हैं। लेकिन दिलचस्प बात यह है कि आज तक किसी पीएम ने पांच साल का कार्यकाल नहीं पूरा किया है। (विस्तार से पढ़ने के लिए फोटो पर क्लिक करें)
