मण‍िपुर में करीब तीन महीने से हो रही ह‍िंसा थम नहीं रही है। सवा सौ से ऊपर लोगों की जानें चली गई हैं। हजारों लोग बेघर हो गए हैं। दंगाई रोज बर्बरता की हद पार करने वाली करतूतें कर रहे हैं। राज्‍य में दर्ज हुई सैकड़ों जीरो एफआईआर में से कुछेक का ब्‍योरा धीरे-धीरे सामने आ रहा है तो दुन‍िया को ह‍िंसा करने वालों की क्रूरता का पता चल रहा है।

लोगों के मन में सवाल उठ रहा है क‍ि इत‍िहास में दर्ज भारत-पाक‍िस्‍तान के बंटवारे के समय के जो हालात उन्‍होंने सुन-पढ़ कर जाना है, मण‍िपुर में आज की स्थिति उससे भी व‍िकट तो नहीं हो गई? कई लोग यह सवाल भी पूछते हैं क‍ि इतना होने पर भी राज्‍य के मुख्‍यमंत्री एन. बीरेन सिंह पर कोई कार्रवाई (इस्‍तीफा) क्‍यों नहीं हो रही है?

यह सवाल पूछे जाने का कारण साफ है। ह‍िंसा रोकने में नाकामी (कुछ मामलों में तो सरकारी तंत्र के ह‍िंसा में शाम‍िल होने की बात सामने आ रही है) के बावजूद मुख्‍यमंत्री पर कोई कार्रवाई नहीं होना। ज‍िनके हाथ में आतताइयों को काबू करने की ताकत है, वे तमाशबीन बने द‍िख रहे हैं।

मुख्यमंत्री के हाथ से निकल चुकी है बात

राज्‍य के हालात देख कर यह साफ है क‍ि मुख्‍यमंत्री के हाथ से बात कब की न‍िकल चुकी है। लेक‍िन, उन पर ‘द‍िल्‍ली का हाथ’ बना हुआ है। राज्‍य सरकार ह‍िंसा रोकने में नाकाम हो चुकी है, यह कोई भी देख सकता है। लेक‍िन, लगता है मण‍िपुर की राज्यपाल ऐसा नहीं मानती हैं। अगर उन्‍हें भी ऐसा लगता तो वह केंद्र को र‍िपोर्ट भेज सकती थीं, ज‍िसके बाद राज्‍य में राष्‍ट्रपत‍ि शासन लग सकता था। लेक‍िन, ऐसा कुछ नहीं हो रहा।

केंद्र सरकार के पास सुरक्षा बल की कोई कमी तो नहीं है। 13 लाख की संख्‍या वाला सशस्‍त्र बल है। 14 लाख जवानों-अफसरों वाली सेना है। फ‍िर भी दंगाई खुले आम सरकार को चुनौती दे रहे हैं और क्रूरता करके उसकी इस ताकत का मजाक उड़ा रहे हैं।

क्या संदेश देना चाहती है सरकार?

आख‍िर क्‍यों? क्योंकि सरकार इतना होने के बावजूद यही संदेश देना चाह रही है क‍ि- सब चंगा सी। राज्‍य सरकार भी और केंद्र सरकार भी। तभी तो नफरत की आग ठंडी क‍िए ब‍िना राज्‍य सरकार ने स्कूल खोलने के आदेश दे दिए थे। और, केंद्र सरकार या सत्ताधारी भाजपा बीरेन स‍िंह को बनाए रखी है, ताक‍ि यह संदेश न चला जाए क‍ि आख‍िरकार नाकामी स्‍वीकार कर ली और आरोप लगे क‍ि स्‍वीकार करने में बड़ी देर कर दी। अब मुख्‍यमंत्री बदला तो उंगली केंद्रीय गृह मंत्रालय पर भी उठेगी। च‍िंता मणिपुर की नहीं, ‘परसेप्‍शन/इमेज ब‍िल्‍ड‍िंग’ की है।

नैत‍िकता के नाम पर मुख्‍यमंत्री इस्‍तीफा देंगे नहीं, इस्‍तीफा लेने में राजनीत‍िक फायदा है नहीं। ठीक है। मुख्‍यमंत्री नहीं बदल‍िए। लेक‍िन, उन्‍हें एक्‍शन तो लेने कह‍ ही सकते हैं। मुख्‍यमंत्री बदल भी द‍िया और एक्‍शन नहीं ल‍िया गया तो ह‍िंसा कहां रुक पाएगी!

एक्‍शन लेने में क्‍या द‍िक्‍कत है? मैतेई की आबादी करीब 65 फीसदी (बहुसंख्‍यक) होना? उनका ह‍िंदू होना? व‍िधानसभा के 60 में से 40 व‍िधायक और खुद सीएम का मैतेई समुदाय से होना? अगर हां तो मण‍िपुर ही नहीं, पूरे देश को सचेत हो जाना चाह‍िए। अगर नहीं तो मण‍िपुर और पूरे देश को यह यकीन द‍िलाना चाह‍िए।