Maharashtra Election History: महाराष्ट्र की पहचान हिंदुस्तान में राजनीतिक ताकत वाले राज्य के अलावा देश की बड़ी आबादी को रोजगार देने वाले सूबे के रूप में भी है। महाराष्ट्र की राजधानी मुंबई ने भारत के कई राज्यों से आने वाले विशेषकर उत्तर भारत के लोगों को को न सिर्फ रोजगार बल्कि जिंदगी जीने का हौसला और एक नई पहचान भी दी है। इन दिनों जब महाराष्ट्र में विधानसभा के चुनाव हो रहे हैं तो इस बड़े राज्य का चुनावी इतिहास क्या है, इसे जानना जरूरी है।
इसके साथ ही भारत के विभाजन से पहले कैसे एक मराठी भाषी राज्य की मांग उठी और महाराष्ट्र कैसे बना, महाराष्ट्र की राजनीति में कौन-कौन से दिग्गज नेता हुए, आजादी के बाद के सालों में महाराष्ट्र में पहले कांग्रेस का वर्चस्व और उसके बाद हिंदुत्व की राजनीति के सहारे बीजेपी और शिवसेना का उदय, 2014 में बीजेपी-शिवसेना की सरकार के आने और शिवसेना और एनसीपी में विभाजन से लेकर मौजूदा राजनीति पर भी हम इस खबर में बात करेंगे।

चलिए पढ़ना शुरू करते हैं देश के विशाल राज्य महाराष्ट्र की कहानी को।
गुजरात और महाराष्ट्र राज्य की मांग
यह 1920 का दशक था जब एक संयुक्त मराठी भाषी राज्य की मांग पहली बार उठी। मतलब एक ऐसा राज्य जिसकी भाषा मराठी हो। आजादी के बाद इस मांग ने जोर पकड़ा और 1953 में मराठी नेताओं ने बॉम्बे प्रोविंस, विदर्भ और मराठवाड़ा को एक करने वाले नागपुर समझौते पर दस्तखत किए।
जबकि दूसरी ओर गुजराती समुदाय ने भी एक अलग राज्य की मांग के लिए आंदोलन चलाया। बॉम्बे शहर इन दो आंदोलनों के बीच बुरी तरह उलझ गया।
गुजरातियों ने बॉम्बे शहर को बनाने में बड़ा योगदान दिया था लेकिन बॉम्बे के आसपास मराठी भाषा बोलने वाली बड़ी आबादी थी। उस वक्त ऐसा भी विचार आया था कि बॉम्बे को केंद्र शासित प्रदेश बना दिया जाएगा और प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने इसे लेकर एक ऐलान भी किया था।

1956 में राज्य पुनर्गठन आयोग आया और उसने सिफारिश की कि बॉम्बे को दुभाषी राज्य ही रहना चाहिए। यह कहा गया कि बॉम्बे के बनने में गुजराती और मराठी समुदाय का अहम योगदान है। राज्य पुनर्गठन आयोग ने विदर्भ को राज्य का दर्जा देने की सिफारिश की थी लेकिन तत्कालीन केंद्र सरकार ने इसे मानने से मना कर दिया और विदर्भ और मराठवाड़ा को मिलाकर बॉम्बे राज्य का हिस्सा बना दिया। लेकिन इससे न तो गुजराती लोग खुश थे और न ही मराठी और अलग-अलग राज्य के लिए उनका आंदोलन जारी रहा।
बॉम्बे राज्य का बंटवारा, महाराष्ट्र और गुजरात बने नए राज्य
जब यह आंदोलन तेज हुआ तो केंद्र सरकार को उनकी मांगों को मनाना पड़ा और 1 मई, 1960 को बॉम्बे राज्य का बंटवारा हो गया। इससे नए राज्य बने महाराष्ट्र और गुजरात। बॉम्बे राज्य में जो 396 सीटें हुआ करती थीं उसमें से इन्हें क्रमशः 264 और 132 सीटें मिली।
आजादी के बाद राजनीति कैसे आगे बढ़ी?
आजादी के बाद बॉम्बे में कांग्रेस ही एकमात्र बड़ी राजनीतिक ताकत थी। जब पहली बार 1951-52 में विधानसभा चुनाव हुए तो कांग्रेस को बड़ी जीत मिली और मोरारजी देसाई बॉम्बे के पहले मुख्यमंत्री बने। 1955-56 में जब संयुक्त महाराष्ट्र के लिए आंदोलन रफ्तार पकड़ चुका था तब एक बड़ी घटना हुई थी। बॉम्बे शहर में पुलिस की गोलीबारी में 100 से ज्यादा प्रदर्शनकारियों की मौत हो गई थी। इसे लेकर मोरारजी देसाई की आलोचना हुई और उन्हें मुख्यमंत्री की कुर्सी छोड़कर केंद्र की राजनीति में जाना पड़ा। उनकी जगह पर सतारा से विधायक यशवंत राव चव्हाण को मुख्यमंत्री बनाया गया। चव्हाण के नेतृत्व में ही कांग्रेस ने 1957 का विधानसभा चुनाव लड़ा और 234 सीटें जीती।
क्योंकि 1960 में बॉम्बे राज्य के बंटवारे के बाद महाराष्ट्र और गुजरात का गठन हो चुका था इसलिए महाराष्ट्र बनने के बाद पहली बार 1962 में विधानसभा के चुनाव हुए। तब कांग्रेस को बड़ी जीत मिली और मारोत्राव शंभशिओ कन्नमवार मुख्यमंत्री बने। लेकिन अगले ही साल उनका निधन हो गया और उसके बाद वसंतराव नाइक मुख्यमंत्री बने और लगभग 12 साल तक इस पद पर रहे।

कांग्रेस में हुई टूट, इंदिरा और मोरारजी आए आमने-सामने
1967 का चुनाव भी कांग्रेस जीती लेकिन 1969 में कांग्रेस में विभाजन हुआ और पार्टी मोरारजी देसाई के नेतृत्व वाले कांग्रेस (ओ) और पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की अगुवाई वाले कांग्रेस (आर) में टूट गई। कांग्रेस के बंटवारे का भी महाराष्ट्र में पार्टी पर कोई असर नहीं पड़ा और 1972 के विधानसभा चुनाव में इंदिरा गांधी की कांग्रेस (आर) ने 270 में से 222 सीटें जीत ली।
आपातकाल का ऐलान होने से पहले तत्कालीन मुख्यमंत्री वसंतराव नाइक को हटाया गया और उनकी जगह इंदिरा गांधी और उनके बेटे संजय गांधी के भरोसेमंद शंकर राव चव्हाण को मुख्यमंत्री बनाया गया। 1977 के लोकसभा चुनाव में महाराष्ट्र में कांग्रेस के खराब प्रदर्शन के बाद शंकर राव चव्हाण मुख्यमंत्री की कुर्सी से हट गए और उनकी जगह वसंतदादा पाटिल को यह जिम्मेदारी दी गई।
शरद पवार बने सीएम, इंदिरा ने गिराई सरकार
1978 में युवा नेता शरद पवार ने कांग्रेस का साथ छोड़ दिया और कांग्रेस (सोशलिस्ट) बनाई और जनता पार्टी से हाथ मिलाकर राज्य के सबसे युवा मुख्यमंत्री बने लेकिन जनवरी, 1980 में जब इंदिरा गांधी फिर से प्रधानमंत्री बनीं तो उन्होंने शरद पवार की सरकार को बर्खास्त कर दिया। इसके बाद हुए चुनावों में कांग्रेस सत्ता में वापस आई कांग्रेस में एआर अंतुले को महाराष्ट्र का मुख्यमंत्री बनाया। अंतुले मुस्लिम समुदाय से आने वाले महाराष्ट्र में पहले और आखिरी मुख्यमंत्री थे।
इसके बाद 1985 और 1990 में भी महाराष्ट्र में कांग्रेस की सरकार बनी लेकिन इस दौरान कई नेताओं के बीच मुख्यमंत्री को लेकर लड़ाई चलती रही और आठ नेताओं ने मुख्यमंत्री की कुर्सी संभाली। इन नेताओं में अंतुले, बाबासाहेब भोसले, वसंतदादा पाटिल, शिवाजीराव पाटिल निलंगेकर, शंकरराव चव्हाण, शरद पवार और सुधाकरराव नाइक शामिल रहे। 1986 में शरद पवार कांग्रेस में लौट आए थे।
यही वह वक्त था जब महाराष्ट्र में भ्रष्टाचार, घोटाले के साथ ही मुंबई में क्रिमिनल गैंग का आतंक और सांप्रदायिक तनाव भी चरम पर था।

दक्षिणपंथी राजनीति हुई ताकतवर
इस दौरान राज्य में दक्षिणपंथी राजनीति ताकतवर हुई। कार्टूनिस्ट से नेता बने बाला साहेब ठाकरे ने 1966 में मराठा राष्ट्रवाद के नाम पर शिवसेना का गठन किया और 1980 में बीजेपी के जन्म के बाद इन दोनों में नजदीकियां बढ़ीं। 1985 और 1990 में दोनों ने मिलकर चुनाव लड़ा। 1992 में बाबरी मस्जिद के ध्वंस और उसके बाद मुंबई में हुए सांप्रदायिक दंगों और धमाकों ने हिंदुत्व की राजनीति के मजबूत होने का रास्ता तैयार किया।
पहली बार बनी शिवसेना-बीजेपी की सरकार
1995 में पहली बार शिवसेना-बीजेपी का गठबंधन महाराष्ट्र के भीतर सत्ता में आया और इन्हें क्रमशः 73 और 65 सीटें मिली। शिवसेना के नेता मनोहर जोशी मुख्यमंत्री बने जबकि बीजेपी की ओर से गोपीनाथ मुंडे उप मुख्यमंत्री बने। इस जीत का नायक शिवसेना के सुप्रीमो बालासाहेब ठाकरे और बीजेपी के युवा नेता प्रमोद महाजन को माना गया था। 1998 के लोकसभा चुनाव के बाद मनोहर जोशी केंद्र की राजनीति में चले गए और बालासाहेब ठाकरे ने नारायण राणे को मुख्यमंत्री बनाया।
15 साल तक सत्ता में रहे कांग्रेस-एनसीपी
शरद पवार पर एक बार फिर कांग्रेस छोड़कर चले गए और उन्होंने राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) का गठन किया। 1999 के महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में एनसीपी, कांग्रेस और शिवसेना-बीजेपी गठबंधन ने चुनाव लड़ा लेकिन किसी भी दल को स्पष्ट बहुमत नहीं मिला तो कांग्रेस और एनसीपी ने मिलकर सरकार बनाई। विलासराव देशमुख मुख्यमंत्री बने जबकि एनसीपी के नेता छगन भुजबल उस सरकार में उपमुख्यमंत्री बने।
कांग्रेस-एनसीपी के गठबंधन ने अगले 15 साल तक राज्य में सरकार चलाई। इस दौरान विलासराव देशमुख दो बार मुख्यमंत्री बने जबकि सुशील कुमार शिंदे, अशोक चव्हाण और पृथ्वीराज चौहान को भी मुख्यमंत्री बनने का मौका मिला।
2014 में बीजेपी बनी सबसे बड़ी पार्टी
2014 में राज्य की राजनीति में बड़ा बदलाव हुआ जब बीजेपी अकेले दम पर सबसे बड़ी पार्टी बनी। बीजेपी, शिवसेना, एनसीपी और कांग्रेस सभी ने अलग-अलग चुनाव लड़ा। बीजेपी ने अकेले दम पर 122 सीटें जीती और शिवसेना के समर्थन से राज्य में सरकार बनाई और देवेंद्र फडणवीस मुख्यमंत्री बने। यह पहला मौका था जब बीजेपी का कोई नेता महाराष्ट्र का मुख्यमंत्री बना था।
बीजेपी से अलग हुए उद्धव, MVA ने बनाई सरकार
2019 के विधानसभा चुनाव के नतीजों के बाद जब मुख्यमंत्री पद को लेकर शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे अड़ गए तो शिवसेना ने बीजेपी से अपने रास्ते अलग कर लिए। शिवसेना ने कांग्रेस और एनसीपी के साथ हाथ मिलाया और एक नया गठबंधन महाराष्ट्र की राजनीति में आया जिसे महा विकास आघाड़ी (MVA) का नाम दिया गया। MVA की सरकार में उद्धव ठाकरे मुख्यमंत्री बने जबकि शरद पवार के भतीजे अजित पवार को उपमुख्यमंत्री बनाया गया।
जून, 2022 में शिवसेना में एक बड़ी बगावत हुई जब एकनाथ शिंदे अपने समर्थक विधायकों के साथ उद्धव ठाकरे से अलग हो गए और MVA की सरकार गिर गई। एकनाथ शिंदे को बीजेपी ने समर्थन दिया और राज्य में एकनाथ शिंदे की शिवसेना और बीजेपी ने मिलकर सरकार बनाई। इस सरकार में एकनाथ शिंदे मुख्यमंत्री बने जबकि देवेंद्र फडणवीस उपमुख्यमंत्री बने। 2023 में महाराष्ट्र की राजनीति में फिर एक बड़ा घटनाक्रम हुआ जब अजित पवार ने अपने चाचा शरद पवार से बगावत की और बीजेपी-एकनाथ शिंदे की शिवसेना के साथ हाथ मिला लिया। अजित पवार को सरकार में उपमुख्यमंत्री बनाया गया।
MVA और महायुति के बीच सीधी टक्कर
मौजूदा वक्त में महाराष्ट्र में MVA गठबंधन जिसमें कांग्रेस, शिवसेना यूबीटी और एनसीपी (शरद पवार) शामिल है जबकि महायुति गठबंधन जिसमें बीजेपी के अलावा एकनाथ शिंदे की शिवसेना और अजित पवार की एनसीपी शामिल है मिलकर चुनाव लड़ रहे हैं। महाराष्ट्र में 288 सीटों के लिए 20 नवंबर को वोटिंग होनी है और राज्य में इन दोनों गठबंधनों के बीच बेहद कड़ा मुकाबला माना जा रहा है।
पिछले कुछ सालों में महाराष्ट्र में मराठा आरक्षण के नाम पर जबरदस्त हलचल रही है और इसके जवाब में राज्य में ओबीसी राजनीति भी मजबूत हुई है। पिछले कुछ सालों में महाराष्ट्र में उत्तर भारतीय समुदाय, मुस्लिम समुदाय की राजनीतिक हैसियत भी मजबूत हुई है और चुनाव में इन बड़े समुदायों का वोट हासिल करने के लिए सभी राजनीतिक दल पूरा जोर लगा रहे हैं। चुनाव के दौरान वोट जिहाद, बंटेंगे तो कटेंगे, एक तो हैं सेफ हैं जैसे नारों को लेकर भी माहौल गर्म है।