देश में वेल्थ री-डिस्ट्रीब्यूशन यानी संपत्ति के पुनर्वितरण की बहस जारी है। सैद्धांतिक रूप से संपत्ति के पुनर्वितरण को आर्थिक असमानता को कम करने का एक उपाय माना जाता है। इस प्रक्रिया में अमीरों पर अधिक टैक्स लगाया जाता है, भूमि सुधार किए जाते हैं, जनकल्याणकारी योजनाएं चलाई जाती हैं। इन प्रयासों का उद्देश्य उचित मात्रा में आय और धन को अमीरों से गरीबों की तरफ ट्रांसफर करना होता है।
क्यों चर्चा में वेल्थ री-डिस्ट्रीब्यूशन?
कांग्रेस ने अपने चुनावी घोषणापत्र में समाज की असमानता को पाटने के लिए अफरमेटिव एक्शन को ठीक से लागू करने का वादा किया है। कांग्रेस का वादा है कि वह इसके लिए देशव्यापी सामाजिक-आर्थिक और जाति जनगणना कराएगी। हालांकि कांग्रेस पार्टी ने वेल्थ री-डिस्ट्रीब्यूशन की बात नहीं कही है। न ही पार्टी के किसी नेता ने इस बारे में स्पष्ट रूप से कुछ कहा है।
राहुल गांधी ने सर्वे के बाद “भारत की संपत्ति, नौकरियों और अन्य कल्याणकारी योजनाओं” में सभी की भागीदारी सुनिश्चित करने की बात कही है। लेकिन भाजपा इसे अलग तरह से प्रचारित कर रही है। खुद पीएम मोदी चुनावी सभाओं में कह रहे हैं कि कांग्रेस लोगों की घर, धन, जेवर आदि लेकर अल्पसंख्यकों में बाँटने की योजना पर काम कर रही है।
संपत्ति के पुनर्वितरण की बहस कब होती है?
वेल्थ री-डिस्ट्रीब्यूशन, अक्सर तब चर्चा का विषय बनता है, जब समाज में आर्थिक असमानता काफी बढ़ जाती है। वर्तमान में ऐसी ही स्थिति है। ऑर्गनाइजेशन फॉर इकोनॉमिक कोऑपरेशन एंड डेवलपमेंट की स्टडी से पता चलता है कि 38 देशों में सबसे अमीर 10% परिवारों के पास कुल संपत्ति का 52% हिस्सा है, जबकि सबसे कम अमीर 60% के पास केवल 12% है। इस भयावह स्थिति को देखते हुए थॉमस पिकेटी जैसे अर्थशास्त्रियों ने धन के अधिक से अधिक पुनर्वितरण की मांग की है।
‘वेल्थ री-डिस्ट्रीब्यूशन’ कोई नया फॉर्मूला नहीं है
आर्थिक असमानता को पाटने के लिए संपत्ति के पुनर्वितरण का तरीका अपनाया जाता रहा है। अधिक कमाने वाले अधिक टैक्स देते हैं, जिसका इस्तेमाल वेलफेयर स्कीम चलाने, सब्सिडी देने और कई बार तो डायरेक्ट कैश ट्रांसफर के लिए भी किया जाता है। सरकारें संपत्ति पर भी टैक्स लगाती हैं। पहले भारत में भी संपत्ति शुल्क (विरासत कर की तरह ही का एक टैक्स) लगता था। इसके अलावा देश में वेल्थ टैक्स और गिफ्ट टैक्स भी लगता था। लेकिन समय के साथ उन्हें खत्म कर दिया गया क्योंकि सरकार का मानना था कि उन करों से मिलने वाला राजस्व, उसके संचालन पर आने वाले खर्च से कम है।
भारत में आर्थिक असमानता की खाई ज्यादा चौड़ी?
भारत में आर्थिक असमानता की खाई जर्मनी और ब्रिटेन से भी ज्यादा है। द वर्ल्ड इनइक्वलिटी लैब की स्टडी बताती है कि भारत के 10 प्रतिशत लोगों के पास देश की 64.6 प्रतिशत संपत्ति है। जर्मनी और ब्रिटेन के लिए यह आंकड़ा क्रमश: 57.6 प्रतिशत और 57 प्रतिशत है। नीचे चार्ट में अन्य देशों की स्थिति देख सकते हैं:

क्या देश में संपत्ति के पुनर्वितरण की जरूरत है?
हाल के वर्षों में भारत में आर्थिक गैर बराबरी काफी बढ़ी है। संपत्ति का अंतर बहुत बढ़ा है। द वर्ल्ड इनइक्वलिटी लैब की स्टडी बताती है कि सबसे अमीर 1% भारतीयों के पास अब देश की 40% संपत्ति है। स्टडी करने वाले शोधकर्ताओं का कहना है कि यह अंतर अपने आप खत्म नहीं होगा और इसके लिए अरबपतियों और करोड़पतियों पर सुपर टैक्स लगाने की नीति अपनाने की जरूरत है।
शोधकर्ताओं का मानना है कि आय के अलावा, अमीरों की संपत्ति पर भी टैक्स लगाया जाना चाहिए। उनके मुताबिक इसकी जरूरत इसलिए है क्योंकि अमीर लोग टैक्स का उचित हिस्सा नहीं चुका रहे हैं।
कुछ इसी तरह का तर्क JNU (जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय) के पूर्व प्रोफेसर और अर्थशास्त्री अरुण कुमार का है। कुमार इनकम टैक्स के हवाले से बताते हैं कि कैसे देश के सबसे धनवान लोग जितना कमा रहे हैं, उतना टैक्स नहीं भर रहे हैं।
द वायर प्रकाशित एक लेख में अरुण कुमार ने लिखा है, 2020-21 में 6.6% आबादी ने टैक्स रिटर्न दाखिल किया। लेकिन केवल 0.68% आबादी ही प्रभावी करदाता थी, जिसने बड़ी मात्रा में आयकर चुकाया था।
अमीर (1 करोड़ रुपये से अधिक की आय घोषित करने वाले) कुल जनसंख्या का 0.016% थे। उन्होंने कुल टैक्सेबल इनकम का 38.6% घोषित किया। इसका मतलब हुआ, जिसकी जितनी अधिक आय, उतनी अधिक बचत और धन संचय।
देश की अधिकांश संपत्ति इस 0.016% आबादी के पास है। इसलिए, यदि कोई संपत्ति का पुनर्वितरण होना है, तो यह 0.016% लोगों से लेकर नीचे के 90% लोगों तक होगा जो गरीबी रेखा के पास हैं।
ई-श्रम पोर्टल पर 300 मिलियन असंगठित क्षेत्र के श्रमिक पंजीकृत हैं। उनमें से 90% प्रति माह 10,000 रुपये से कम कमाते हैं। इससे पता चलता है कि संपत्ति के पुनर्वितरण के खिलाफ लोग 0.16% या 0.68% लोगों की रक्षा कर रहे हैं और देश में निचले 90% लोगों के खिलाफ हैं।
वेल्थ री-डिस्ट्रीब्यूशन के आलोचक क्या कहते हैं?
द मिंट में प्रकाशित एन. माधवन की रिपोर्ट बताती है कि वेल्थ री-डिस्ट्रीब्यूशन के आलोचकों का तर्क है कि धन का पुनर्वितरण इनोवेशन को बाधित करेगा और प्रोडक्टिविटी को प्रभावित करेगा, जिससे अंततः अर्थव्यवस्था धीमी हो जाएगी।
उनका मानना है कि बढ़ती अर्थव्यवस्था में असमानता होती है है क्योंकि पूंजी धारक अधिकतम लाभ प्राप्त करते हैं। धन का ज्यादा सृजन करने वाले आर्थिक समृद्धि में योगदान करते हैं और उन्हें दंडित नहीं किया जाना चाहिए।
इसके अलावा तर्क दिया जा रहा है कि जब तक लोगों के जीवन में सुधार होता है तब तक असमानता कोई बड़ी चिंता नहीं है। जिम्बाब्वे और वेनेजुएला ने बड़े पैमाने पर पुनर्वितरण की कोशिश की और असफल रहे। उनका कहना है कि भारत में एक समय आयकर की दर 97.75% थी और वेल्थ टैक्स था, लेकिन गरीबी खत्म नहीं हुई।
क्या सरकार लोगों की संपत्ति लेकर गरीबों में बांट सकती है?
क्या सरकार निजी स्वामित्व वाली संपत्तियों का अधिग्रहण और उसका पुनर्वितरण कर सकती है? संविधान का अनुच्छेद 39(बी) सरकार को ‘आम लोगों की भलाई’ के लिए भौतिक संसाधनों को अपने नियंत्रण में लेने और बाँटने का दायित्व देता है। सरकार द्वारा ऐसा किए जाने के कई उदाहरण भी मिलते हैं। हालांकि, इस अनुच्छेद की व्याख्या सुप्रीम कोर्ट में पहले भी हो चुकी है और अब भी जारी है। (विस्तार से पढ़ने के लिए फोटो पर क्लिक करें)
