पिछले दिनों दिल्ली के लोगों ने यमुना नदी को लाल किले के बगल से बहते देखा। गुरुवार को रिंग रोड के कई हिस्से जलमग्न हो गए और शाहजहां द्वारा 17वीं शताब्दी में बनवाए किला के किनारों से नदी गुजरती नजर आयी। यह दृश्य किताबों में पढ़े मुगलिया दौर की याद दिला रहा था।
लाल किला और यमुना नदी
मुगल शासक शाहजहां ने अपने साम्राज्य की राजधानी आगरा से दिल्ली स्थानांतरित करने का फैसला लिया था। इस फैसले के मद्देनजर ही लाल किला यानी किला-ए-मुबारक का निर्माण शुरू हुआ था, जो करीब 10 वर्षों तक चला था। साल 1648 में पहली बार शाहजहां यमुना किनारे बने अपने इस किले में नाव में बैठकर उसी रास्ते से दाखिल हुए थे, जिस रिंग रोड पर पिछले दिनों यमुना नदी को बहते देखा गया।
लाल किला में ‘यमुना द्वार’ नाम से एक दरवाजा भी है। इसी द्वार से शाहजहां ने पहली बार लाल किले में प्रवेश किया था। यमुना द्वार को ही ‘खिजरी दरवाजा’ भी कहा जाता है। लाल किले के लाहौरी गेट और दिल्ली गेट तो खूब प्रसिद्ध हैं लेकिन खिजरी दरवाजे की बहुत कम बात होती है।
खिजरी गेट का इतिहास
इंटरवेंशनल रेडियोलॉजिस्ट एवं स्वतंत्र शोधकर्ता अश्विन गर्ग के अपने शोध पत्र “Watergate of Delhi’s Red Fort: One Truth and Many Tales” से लिखा है कि “खिजरी दरवाजा का नाम पानी के संत कहे जाने वाले ख्वाजा खिज्र के नाम पर पड़ा था। कुछ लेखकों ने इस खिजरी द्वार का उल्लेख जल द्वार के रूप में भी किया है। आगरा किला और पाकिस्तान स्थित लाहौर किले जैसे अन्य किलों में भी खिजरी द्वार या जल द्वार हैं।”
ख्वाजा खिज्र को पाकिस्तान में झूलेलाल के नाम से जाना जाता है। सिंध में ख्वाजा खिज्र को हिंदू और मुस्लिम दोनों समान रूप से सम्मान देते हैं। हिंदू उन्हें भगवान और मुस्लिम जिंदा पीर मानते हैं। ख्वाजा खिज्र को नदी या पानी का देवता माना जाता है। झूलेलाल किसी आम हिंदू/सिंधी/सूफी/इस्लामिक संत की तरह नहीं थे। झूलेलाल या दरियालाल को अलग-अलग संप्रदायों में कई रूपों में जाना और पूजा जाता है।
हालांकि पूरे सिंध और वैश्विक सिंधी प्रवासियों में झूलेलाल की कई कहानियां प्रसिद्ध हैं। झूलेलाल, शेहवान के लाल शाहबाज़ कलंदर, उदेरोलाल के शेख ताहिर और ख्वाजा खिज्र के बीच एक जटिल तालमेल है, जिनकी अलग-अलग समूहों द्वारा अलग-अलग समय पर पूजा की जाती है। इन देवताओं और संतों को जोड़ने वाली एकमात्र कड़ी सिंधु नदी है। झूलेलाल दरियापंथी या दरियाही संप्रदाय का एक हिस्सा है जो सिंधु (नदी) की पूजा करता है।
लाल किला (दिल्ली) का खिजरी गेट एक विशेष द्वार था जो केवल मुगल शाही परिवार के वरिष्ठ सदस्यों के लिए था। इतिहासकारों का मानना है कि खिजरी दरवाजे से आखिरी बार अंतिम मुगल शासक बहादुर जफर द्वितीय निकलकर भागे थे। यह 1857 की क्रांति के बाद की बात है। तब बहादुर जफर द्वितीय ने हुमायूं के मकबरे तक पहुंचने के लिए खिजरी दरवाजे का इस्तेमाल किया था। इस तरह यह कहा जा सकता है कि जिस दरवाजे से मुगलिया सल्तनत दिल्ली की सत्ता पर बैठी थी, वहीं से उसके आखिरी वारिस की बेदखली भी हुई।
मुगल और यमुना नदी
द हिन्दू में प्रकाशित आर.वी. स्मिथ की एक रिपोर्ट से पता चलता है कि मुगल शासकों का यमुना (तब जमुना) से घनिष्ठ संबंध था। वह लिखते हैं “गर्मी के दिनों में अकबर यमुना के किनारे नाव बंधवाकर उसमें ही सो जाया करते थे। जहांगीर द्वारा भी ऐसा किए जाने का इतिहास मिलता है। दिल्ली को राजधानी बनाने के बाद शाहजहां अक्सर यमुना में नौकायन का आनंद लिया करते थे। रात में उनके हरम की रखैलें, राजकुमारियां और सम्मानित नौकरानियां नौकायन और स्नान के लिए खिजरी दरवाजे से ही निकलती थीं।”
इसके अलावा नदी के किनारे ही मेला लगा करता था। वहीं हाथियों को कुश्ती कराई जाती थी और कई दूसरे कार्यक्रम भी होते थे। इस सब का आनंद मुगल परिवार लाल किला के झरोखों से लिया करता था। हालांकि मुगल यमुना का पानी पीते नहीं थे। वह अपने पीने के लिए गंगा का पानी मंगाया करते थे।
यमुना के रास्ते पर बस गई है दिल्ली
इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट में लेखक सोहेल हाशमी बतातें हैं, “जहां रिंग रोड है वहां पहले यमुना हुआ करती थी। इसलिए भी वहां लाल किला बनाया गया था…यमुना नदी किले की रक्षा कवच थी। मुहम्मद शाह ‘रंगीला’ के समय (18वीं सदी में) यमुना नदी दूर जाने लगी। 1911 में जब राजधानी को दिल्ली स्थानांतरित करने का निर्णय लिया गया, तो उस स्थान की पहचान करने के लिए क्षेत्र का सर्वेक्षण किया गया जहां राजधानी स्थित होगी।
सुझाया गया मूल स्थान कोरोनेशन पार्क का एरिया था। लेकिन उस वर्ष (1911) मानसून में कोरोनेशन पार्क और किंग्सवे कैंप का काफी क्षेत्र बाढ़ ग्रस्त हो गया। इसलिए रायसीना हिल पर राजधानी स्थापित करने का निर्णय लिया गया। 1911 तक सिविल लाइंस, मॉडल टाउन के कुछ क्षेत्र बाढ़ प्रभावित माने जाते थे।” उस समय की पेंटिंग्स में किले के साथ-साथ नदी बहती हुई दिखाई देती है।
