अंजिश्नु दास
उत्तर प्रदेश में सपा और कांग्रेस के बीच सीट का बंटवारा हो चुका है। सपा और उसके छोटे सहयोगी दल यूपी की 80 लोकसभा सीटों में से 63 सीटों पर चुनाव लड़ेंगे। वहीं कांग्रेस को 17 सीटें छोड़ी जाएंगी। इन 17 सीटों में रायबरेली, अमेठी, कानपुर, फतेहपुर सीकरी, बांसगांव, सहारनपुर, प्रयागराज, महाराजगंज, वाराणसी, अमरोहा, झांसी, बुलन्दशहर, ग़ाज़ियाबाद, मथुरा, सीतापुर, बाराबंकी और देवरिया शामिल हैं।
पहले सपा ने कांग्रेस को 11 सीटों की पेशकश की थी। लेकिन राष्ट्रीय लोक दल (RLD) के भाजपा से मिल जाने के बाद कांग्रेस ने ज्यादा सीट की डिमांड रखी। कांग्रेस को जो 17 सीटें मिली हैं, उनमें से अधिकांश पर भाजपा 2012 के बाद से प्रमुख पार्टी रही है।
पिछले चुनाव में इन 17 सीटों का पर किस पार्टी का कैसा था प्रदर्शन?
2019 के लोकसभा चुनावों में कांग्रेस यूपी की सिर्फ एक सीट पर जीत दर्ज कर पाई थी। कांग्रेस के गढ़ रायबरेली से सोनिया गांधी गांधी सांसद बनी थीं। खुद राहुल गांधी अमेठी की अपनी सीट हार गए थे।
इस बार कांग्रेस को जो 17 सीटें मिली हैं, उनमें से 14 पर भाजपा और दो पर बहुजन समाज पार्टी (बसपा) की जीत हुई थी। कांग्रेस इन 17 सीटों में से केवल पांच पर 15% से अधिक वोट पा सकी थी। वोट शेयर के मामले में कांग्रेस ने सबसे ज्यादा अच्छा प्रदर्शन रायबरेली में किया था। सोनिया गांधी को 56.5 प्रतिशत से ज्यादा वोट मिले थे। इस सूची में दूसरा नाम अमेठी का आता है, जहां कांग्रेस का वोट शेयर 44.1 प्रतिशत था। इसके बाद नंबर आता है कानपुर का जहां वोट शेयर 37.9% था।
कांग्रेस इन 17 में से 9 सीटों पर 10% का आंकड़ा भी नहीं पार कर पाई थी। पिछले चुनाव में सपा ने गांधी परिवार को ध्यान में रखते हुए रायबरेली और अमेठी में कोई उम्मीदवार नहीं उतारा।

दूसरी ओर भाजपा ने 50% से अधिक वोट शेयर के साथ इनमें से 11 सीटें जीतीं। यहां तक कि सपा और कांग्रेस के वोट शेयरों को मिलाने पर भी इंडिया गठबंधन सिर्फ एक सीट बाराबंकी में विजेता बन सकती थी। इसका मतलब यह हुआ कि इन निर्वाचन क्षेत्रों में सपा की भी ज्यादा पकड़ नहीं है।
इस बार कांग्रेस के लिए एक सकारात्मक बात यह हो सकती है कि बसपा के मौजूदा सांसद दानिश अली अब उसके टिकट पर अमरोहा से चुनाव लड़ रहे हैं। पिछली बार 63,248 वोटों से जीतने वाले अली को फिर से इस सीट से मैदान में उतारे जाने की संभावना है।
2019 में सपा, बसपा और RLD ने गठबंधन कर चुनाव लड़ा था। सपा ने इस बार कांग्रेस के हिस्से वाली 17 सीटों में से सात पर चुनाव लड़ा था, चार पर 30% से अधिक वोट शेयर हासिल किया था, लेकिन एक भी जीतने में असफल रही थी। बसपा ने भी इन 17 सीटों में से सात पर चुनाव लड़ा था और दो पर जीत हासिल की थी। हालांकि वोट शेयर के मामले में बसपा सभी सीटों पर अच्छी-खासी स्थिति में रही।
RLD ने भी कोई सीट नहीं जीती, लेकिन मथुरा में उसका वोट शेयर महत्वपूर्ण था, जहां उसे एक तिहाई से अधिक वोट मिले थे। इसका मतलब है कि RLD का इंडिया ब्लॉक से बाहर होना इस सीट पर निर्णायक साबित हो सकता है।
अगर 2009 जैसा रहा प्रदर्शन तो कांग्रेस और सपा को मिल सकती है बड़ी जीत
2014 के आम चुनाव में भी कांग्रेस यूपी में कुछ खास प्रदर्शन नहीं कर पाई थी। इस बार कांग्रेस जो 17 सीटें मिली हैं, तब उनमें से 13 सीटों पर पार्टी ने चुनाव लड़ा था। लेकिन जीत सिर्फ दो अमेठी और रायबरेली पर मिली थी। बाकी सीटों पर भाजपा को जीत मिली थी। 13 सीटों में से केवल चार पर कांग्रेस का वोट शेयर 30 प्रतिशत से अधिक था। छह सीटों पर वोट शेयर 10% से भी कम था।
2014 में कांग्रेस-RLD गठबंधन के अलावा, राज्य में कोई बड़ा गठबंधन नहीं था। बसपा और सपा ने अलग-अलग चुनाव लड़ा था। इसका मतलब ये हुआ वोट अलग-अलग पार्टियों में बंट गया। बावजूद इसके भाजपा ने बड़ी जीत हासिल की। उस वक्त भी अगर कांग्रेस और सपा ने मिलकर चुनाव लड़ा होता, तो दोनों पार्टियों के वोट शेयर से सिर्फ और सिर्फ इलाहाबाद की सीट खाते में अतिरिक्त जुड़ जाती। संयोग से 2014 में भी सपा ने अमेठी और रायबरेली में उम्मीदवार नहीं उतारे थे।

2009 के लोकसभा चुनावों में कांग्रेस दोबारा सत्ता में लौटी थी। उस चुनाव में कांग्रेस की लोकप्रियता देखने को मिली थी। इस कांग्रेस जिन 17 सीटों पर लड़ने वाली है, 2009 में लगभग सभी सीटों पर अच्छा प्रदर्शन किया था। हालांकि अपने दम छह सीट ही जीत पायी थी। शेष 11 सीटों में से चार पर बसपा और तीन पर भाजपा को जीत मिली थी। सपा और RLD के हिस्से दो-दो सीटें गई थीं।
कांग्रेस ने आठ सीटों पर 25% से अधिक वोट शेयर हासिल किया था। अमेठी और रायबरेली में तो 70% से अधिक वोट हासिल किए थे। अगर 2009 के कांग्रेस और एसपी के वोट शेयर को मिला दिया जाए तो वे इन 17 में से 11 सीटें जीत सकते थे।