लोकसभा चुनाव 2024 के नतीजे सामने आने के बाद से ही यूपी में बीजेपी में सबकुछ ठीक नहीं चलने की खबरें लगातार सामने आ रही हैं। सीएम योगी आदित्यनाथ और डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य के बीच चल रहा शीत युद्ध फ‍िलहाल खत्‍म नहीं हुआ है। आरएसएस ने भी दोनों के बीच सुलह कराने के लिए कदम बढ़ाए हैं। भाजपा के वरिष्ठ नेताओं ने भी अब इस मुद्दे पर अपनी चिंता जताई है।

भाजपा के वरिष्ठ नेताओं ने राज्य में पार्टी के लोकसभा में खराब प्रदर्शन के बाद उत्तर प्रदेश में मतभेदों के सार्वजनिक रूप से सामने आने पर चिंता जताई। पार्टी में मतभेद आलाकमान के इसे रोकने के प्रयासों के बावजूद जारी है।

उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य लगातार सीएम योगी आदित्यनाथ के खिलाफ मोर्चा खोल रहे हैं जिस पर कुछ वरिष्ठ नेताओं ने चेतावनी दी है कि सीएम के अधिकार को कम करना यूपी में भाजपा के लिए अच्छा संकेत नहीं है, इससे अन्य राज्यों में भी ऐसी अनुशासनहीनता देखने को मिल सकती है।

आने वाले विधानसभा चुनाव में अंदरूनी कलह से हो सकता है भाजपा को नुकसान

भाजपा के एक नेता ने इंडियन एक्सप्रेस से बातचीत के दौरान कहा, “यह अंदरूनी कलह आने वाले राज्य चुनावों में पार्टी की संभावनाओं को भी नुकसान पहुंचा सकती है।” महाराष्ट्र, हरियाणा और झारखंड के साथ-साथ जम्मू और कश्मीर की विधानसभाओं के लिए आने वाले महीनों में चुनाव होने हैं। ऐसे में पार्टी के लिए इन चुनावों पर बहुत कुछ निर्भर करता है क्योंकि लोकसभा चुनावों में भाजपा के बहुमत तक पहुंचने में विफल रहने के बाद ये पहले चुनाव हैं।

नए लोगों को चुनाव में टिकट देने पर असंतोष

पार्टी की उत्तर प्रदेश इकाई में असंतोष की सुगबुगाहट भाजपा द्वारा नए शामिल किए गए लोगों को चुनाव टिकट देने पर असंतोष के साथ उठी, जिनमें से कई हार गए। राज्य सरकार के एक वरिष्ठ नेता ने कहा कि यह एक गंभीर मुद्दा है। नेता ने कहा, “पार्टी कैडर के बीच असंतोष को देखना होगा खास तौर पर जिन्हें यह लगता है कि नए लोगों के आने के बाद उनकी उपेक्षा की गई है, उन्हें समझाना होगा, पार्टी नेतृत्व को कोई रास्ता निकालना होगा।”

एक तरफ जहां उत्तर प्रदेश भाजपा में सुगबुगाहट देखी जा रही है, दूसरी ओर पार्टी लंबे समय से राजस्थान, कर्नाटक और चुनाव वाले महाराष्ट्र और हरियाणा जैसे राज्यों में अंदरूनी कलह से जूझ रही है जो भड़क सकती है।

सीएम योगी और डिप्टी सीएम के बीच कोल्ड वॉर

एक वरिष्ठ ओबीसी नेता और लंबे समय तक यूपी बीजेपी का चेहरा रहे केशव मौर्य लोकसभा नतीजों के बाद से आक्रामक हैं। उन्होंने कम से कम दो बार कहा है कि संगठन सरकार से बड़ा है। वह लखनऊ में अपने ‘कैंप कार्यालय’ में विधायकों और प्रमुख नेताओं को बुला रहे हैं, जिनमें भाजपा के ओबीसी सहयोगी सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के ओम प्रकाश राजभर भी शामिल हैं। केशव मौर्य प्रयागराज क्षेत्र के पार्टी विधायकों के साथ योगी आदित्यनाथ की बैठक में भी अनुपस्थित थे।

आदित्यनाथ खेमे के लोगों का दावा है कि यह मौर्य द्वारा जानबूझकर उठाया गया कदम है क्योंकि सीएम को अपने डिप्टी के खिलाफ कई शिकायतें मिली हैं। सीएम के समर्थकों को यह भी भरोसा है कि जहां केशव मौर्य के पास ओबीसी नेता के रूप में अपना समर्थन आधार है, वहीं आदित्यनाथ अभी भी यूपी में भाजपा का सबसे लोकप्रिय चेहरा हैं और उन्हें दरकिनार करने से पार्टी को नुकसान हो सकता है।

सीएम को हटाना नुकसानदायक साबित हो सकता

बीजेपी नेता कल्याण सिंह और बीएस येदियुरप्पा को यूपी और कर्नाटक के सीएम पद से हटाए जाने से पार्टी को लगे झटके का उदाहरण देते हैं। पार्टी के एक वरिष्ठ नेता ने कहा, “1999 में कल्याण सिंह के जाने के बाद बीजेपी को यूपी में सत्ता में वापस आने में (2017 तक) कई साल लग गए।”

इसी तरह, 2011 में येदियुरप्पा के विद्रोह और लगभग 10% वोट हासिल करके अपनी पार्टी बनाने को 2013 के कर्नाटक विधानसभा चुनावों में भाजपा की हार के मुख्य कारण के रूप में देखा गया। येदियुरप्पा के पार्टी में वापस लौटने के बाद ही भाजपा सत्ता में वापस आई।