18 मई 1974 को जब भारत ने पहली बार परमाणु परीक्षण किया तो तमाम देश खिलाफ हो गए। भारी विरोध के चलते इंदिरा गांधी सरकार को पैर पीछे खींचने पड़े। भारत की परमाणु हथियार विकसित करने की दौड़ धीमी पड़ गई। इस घटना के करीब 11 साल बाद भारत पर दोबारा परमाणु हथियार विकसित करने का दबाव एक ऐसे शख्स की तरफ से आया जो बिल्कुल चौंकाने वाला था। वो शख़्स थे अमेरिकी राष्ट्रपति रोनाल्ड रीगन।

रीगन की राजीव गांधी को सलाह

द इंडियन एक्सप्रेस की कांट्रिब्यूटिंग एडिटर नीरजा चौधरी ने अपनी ताजा किताब ‘How Prime Ministers Decide ‘ में इस वाकये का जिक्र किया है। वह लिखती हैं कि अक्टूबर 1985 में प्रधानमंत्री राजीव गांधी, अमेरिकी राष्ट्रपति रोनाल्ड रीगन से मिलने पहुंचे। राजीव ने जैसे ही परमाणु निरस्त्रीकरण की बात शुरू की रोनाल्डो रीगन ने उन्हें रोक दिया और कहा, ‘पाकिस्तान पहले ही बम बना चुका है। सिद्धांत की बात बाद में करिये, पहले अपनी सुरक्षा की सोचिये…’।

राजीव गांधी ने 1989 में दी मंजूरी

ठीक इसी वक्त तत्कालीन आर्मी प्रमुख के. सुंदरजी (K Sundarji) और रणनीतिकार के सुब्रमण्यम (K Subrahmanyam) जैसे लोग भी जोर शोर से परमाणु हथियार की वकालत कर रहे थे। रोनाल्ड रीगन से मुलाकात के 4 साल बाद 1989 में राजीव गांधी ने तत्कालीन रक्षा सचिव नरेश चंद्र को परमाणु बम बनाने की मंजूरी दे दी। हालांकि उसी साल हुए लोकसभा चुनाव में राजीव गांधी के हाथ से सत्ता चली गई और साल 1991 में उनका निधन हो गया। लेकिन उसके बाद जो सरकारें आईं वह भी परमाणु हथियार विकसित करने पर काम करती रहीं।

वाजपेयी की क्लिंटन को चिट्ठी

साल 1998 में अटल बिहारी वाजपेयी की अगुवाई में भारत ने पोखरण में एक के बाद एक पांच परमाणु परीक्षण किए, जिससे दुनिया दंग रह गई। यहां तक कि अमेरिका ने भारत पर प्रतिबंध लगा दिया। अमेरिकी प्रतिबंध के बाद प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी ने राष्ट्रपति बिल क्लिंटन को बताया कि भारत ने पड़ोसी चीन से संभावित खतरे को देखते हुए परमाणु परीक्षण किया।

अटल बिहारी वाजपेयी ने बिल क्लिंटन को चिट्ठी में लिखा, ”हमारी सीमा एक ऐसे देश से लगती है जो परमाणु हथियार से लैस है और साल 1962 में भारत के खिलाफ सशस्त्र आक्रमण कर चुका है। हालांकि पिछले एक दशक में उस मुल्क के साथ हमारे संबंध सुधरे हैं, लेकिन सीमा विवाद न सुलझने की वजह से अभी भी अविश्वास का माहौल बरकरार है…’।