संघ लोक सेवा आयोग (UPSC) ने मंगलवार को केंद्र के निर्देश के बाद ब्यूरोक्रेसी में ‘लेटरल एंट्री’ के जरिए भर्ती के लिए जारी अपना विज्ञापन रद्द कर दिया। यूपीएससी ने 17 अगस्त को ‘लेटरल एंट्री’ के माध्यम से 45 संयुक्त सचिवों, निदेशकों और उप सचिवों की भर्ती के लिए नॉटिफिकेशन जारी किया था। जिस पर मचे बवाल के बाद इसे रद्द करने का फैसला लिया गया। हालांकि, ब्यूरोक्रेसी में भर्ती की यह प्रक्रिया नयी नहीं है। दशकों पहले जवाहरलाल नेहरू की सरकार में भी ऐसा किया जा चुका है।

नरेंद्र मोदी सरकार द्वारा नौकरशाही में लेटरल एंट्री के जरिए भर्ती करने से छह दशक पहले जवाहरलाल नेहरू की सरकार ने विभिन्न क्षेत्रों में उम्मीदवारों की क्षमता और विशेषज्ञता के आधार पर ‘ओपन मार्केट’ से दर्जनों नियुक्तियां की थीं।

मोदी सरकार ने 2018 में लेटरल एंट्री के लिए पहली रिक्तियों का विज्ञापन दिया। इस बार भी लेटरल एंट्री का विज्ञापन वापस लेने से पहले कई विपक्षी नेताओं और सरकार के कुछ महत्वपूर्ण सहयोगियों ने आरक्षण की नीति का पालन किए बिना ये नियुक्तियाँ करने के प्रयास की कड़ी आलोचना की थी।

1946 में हुई आईएएस और आईपीएस की शुरुआत

1946 में ब्रिटिश शासन से स्वतंत्रता के साथ केंद्रीय मंत्रिमंडल ने एक सम्मेलन के बाद, भारतीय सिविल सेवा (आईसीएस) और भारतीय पुलिस (आईपी) के स्थान पर भारतीय प्रशासनिक सेवा (आईएएस) और भारतीय पुलिस सेवा (आईपीएस) की स्थापना करने का निर्णय लिया।

आजादी के बाद दरअसल, देश को नीतियां बनाने और उन्हें जमीन पर लागू करने में मदद के लिए अधिकारियों की जरूरत थी। उस समय बहुत अधिक योग्य अधिकारी उपलब्ध नहीं थे क्योंकि ICS का अंतिम बैच 1943 में भर्ती किया गया था और IAS का पहला बैच 1948 में आया था।

1950 तक सिविल सेवाओं में लगभग 7000 आवेदक उपस्थित होते थे

रिपोर्टों से पता चलता है कि 1950 के दशक के मध्य तक, वार्षिक होने वाली सिविल सेवा परीक्षाओं में औसतन लगभग 7000 आवेदक उपस्थित होते थे और लगभग 200 का चयन किया जाता था। केंद्र सरकार के अलावा विभिन्न राज्यों की सरकारों को भी नीतियां बनाने और लागू करने के लिए अच्छे अधिकारियों की सख्त जरूरत थी।

1948-49 में शुरू हुई विशेष भर्ती

अधिकारियों की कमी को दूर करने के लिए (विशेष रूप से विशिष्ट कौशल वाले अधिकारियों की कमी को दूर करने के लिए) 1948-49 में जब सरदार वल्लभभाई पटेल उप प्रधानमंत्री और गृह मंत्री थे और 1956 में विशेष भर्ती अभियान चलाए गए थे। यह यूपीएससी द्वारा आयोजित परीक्षाओं के माध्यम से वार्षिक भर्तियों के अतिरिक्त था। विशेष चयन भी यूपीएससी द्वारा किए गए लेकिन एक आपातकालीन भर्ती बोर्ड की सिफारिश पर।

1949 की विशेष भर्ती आवेदकों के रिकॉर्ड की जांच और एक साक्षात्कार पर आधारित थी। 1956 की भर्ती लिखित परीक्षा और साक्षात्कार के आधार पर हुई। ये आपातकालीन भर्तियां सिर्फ आईएएस के लिए ही नहीं बल्कि आईपीएस और कई केंद्रीय सेवाओं के लिए भी की गई थीं।

जीबी पंत जो विशेष भर्ती के दूसरे दौर के दौरान गृह मंत्री थे, उन्होंने 30 मई, 1956 को लोकसभा को बताया, “प्रतिभाशाली कैडर खत्म हो गया है और यहां केंद्र में हमारे पास कोई व्यक्ति नहीं है जिसे आईएएस, उप सचिव आदि पदों पर नियुक्त किया जा सके।

शुरुआत में सिविल सेवा परीक्षा में बैठने की ऊपरी आयु सीमा 24 वर्ष थी

शुरुआती दिनों में सिविल सेवा परीक्षा में बैठने की ऊपरी आयु सीमा 24 वर्ष थी। ओपन मार्केट में ऐसे व्यक्तियों की भी भर्ती की गई जिन्होंने 25 वर्ष की आयु पूरी कर ली थी, लेकिन 40 वर्ष की नहीं। अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के उम्मीदवारों के लिए आयु सीमा 45 वर्ष थी। हाल ही में रद्द की गई लेटरल एंट्री में आवेदकों के लिए समान आयु सीमा थी।

1948-49 में विशेष भर्ती के पहले दौर में, आपातकालीन भर्ती बोर्ड की सिफारिश पर 82 अधिकारियों को नियुक्त किया गया था। दूसरे दौर के दौरान गृह राज्य मंत्री बी एन दातार ने ओपन मार्केट में भर्ती के औचित्य को समझाया।

क्यों शुरू की गयी ओपन मार्केट भर्ती?

उन्होंने 23 मार्च 1956 को लोकसभा में कहा था, “यह आपातकालीन भर्ती खुली होगी और उम्मीदवारों को केवल सिविल सर्विस से ही नहीं बल्कि ओपन मार्केट से भी लिया जाएगा। सर्विस से भी नियुक्तियां की जा सकती हैं बशर्ते उनके पास आवश्यक योग्यताएं हों। आईएएस की एक बड़ी संख्या आवश्यक है जिसे बड़े क्षेत्र से लिया जाना चाहिए।”

ओपन मार्केट के उम्मीदवारों के लिए आवेदन फीस 300 रुपये रखी गयी

1956 के दौर में सरकार ने ओपन मार्केट के उम्मीदवारों के लिए आवेदन करने के लिए 300 रुपये तय किए जिसके कारण संसद में हंगामा हुआ। कम्युनिस्ट नेता ए के गोपालन ने तर्क दिया कि बेरोजगार युवा आवेदन नहीं कर पाएंगे।

गोपालन ने 30 मई, 1956 को लोकसभा में कहा, “यह आईसीएस की पुरानी परंपरा को पुनर्जीवित करने का एक प्रयास है। आईसीएस में भर्ती केवल अभिजात वर्ग और सामंती परिवारों से ही की जाती थी। सामान्य नागरिक आईसीएस में नामांकन के लिए पात्र नहीं थे। इस नियम के साथ यह आईएएस भर्ती उस पुरानी परंपरा को पुनर्जीवित करती है। यह देश की सबसे महत्वपूर्ण प्रशासनिक सेवा में भर्ती के क्षेत्र को देश के अमीर और प्रभावशाली लोगों के बेटे और बेटियों तक सीमित करने की कोशिश करता है।”

1956 में इन भर्तियों के लिए 22 हजार से अधिक आवेदन प्राप्त हुए

1956 में इन भर्तियों के लिए 22,161 से अधिक आवेदन प्राप्त हुए, जिनमें 1,138 अनुसूचित जाति से और 185 अनुसूचित जनजाति से थे। विदेश में रहने वाले भारतीयों को परीक्षा देने के लिए भारत के बाहर 22 परीक्षा केंद्र स्थापित किए गए थे। परीक्षा 28 दिसंबर, 1956 को आयोजित की गई थी।

ओपन मार्केट की भर्तियों में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षण लागू किया गया। हालाँकि, राज्य सिविल सेवाओं से पदोन्नत होने वाले अधिकारियों के बीच कोई आरक्षण नहीं था। सामान्य रूप से प्रतियोगी परीक्षाओं और ओपन मार्केट से विशेष भर्ती दोनों में एससी कोटा 12.5% ​​और एसटी कोटा 5% था। सरकार के मुताबिक, एससी और एसटी की भर्ती के लिए शर्तों में यथासंभव छूट दी गई है।

1956 में ओपन मार्केट से अंतिम भर्ती हुई

गृह मंत्री पंत ने 24 अप्रैल, 1958 को लोकसभा को सूचित किया, “जहां तक ​​ओपन मार्केट से विशेष आपातकालीन भर्ती का सवाल है, यूपीएससी द्वारा तैयार की गई मूल सूची में अनुसूचित जाति के केवल 26 सदस्य थे। इसलिए, हमने उनसे मानक में ढील देने को कहा ताकि बड़ी संख्या में लोगों को प्रवेश दिया जा सके। उन्होंने ऐसा किया और मुझे लगता है कि 133 और सेलेक्ट हुए। उसके बाद उम्मीदवारों का साक्षात्कार लिया गया और यूपीएससी ने इसकी सूची प्रकाशित की।

1956 में ओपन मार्केट से अंतिम भर्ती में 7 एससी उम्मीदवार और 3 एसटी उम्मीदवार चुने गए। 1949 में ओपन मार्केट से नियुक्त 82 आईएएस अधिकारियों में से 12 एससी थे और 1 एसटी था।