UP School Merger Policy: उत्तर प्रदेश की राजनीति में इस समय स्कूल मर्जर पॉलिसी को लेकर विवाद छिड़ चुका है। विवाद की जड़ एकदम स्पष्ट है- राज्य सरकार को लगता है कि अगर स्कूलों का विलय होगा तो उस स्थिति में सभी छात्रों को अच्छी शिक्षा, बेहतर सुविधाएं मिल पाएंगी। वहीं दूसरी तरफ इसी पॉलिसी का विरोध कर रही टीचरों और कई छात्रों का मानना है कि इस एक कदम की वजह से आने वाले समय में स्कूल में ड्रॉप आउट रेट बढ़ जाएगा, सभी को जो शिक्षा का अधिकार देने की बात होती है, उस मुहिम को झटका लगेगा।
सरकार का आदेश क्या है?
इस मामले में योगी सरकार और शिक्षक आमने-सामने हैं, मामला कोर्ट तक जा चुका है। हाई कोर्ट ने अगर राज्य सरकार के पक्ष में फैसला सुनाया है तो वहीं सुप्रीम कोर्ट ने शिक्षकों की याचिका पर विचार करने की बात कही है। यानी कि अभी तक कुछ भी फाइनल नहीं हुआ है, लेकिन उत्तर प्रदेश में स्कूलों को मर्ज करने का काम यानी कि उनके विलय की प्रक्रिया शुरू हो चुकी है। जनसत्ता ने जब कई सारे दस्तावेजों को देखा तो पता चला कि 16 जून को कई स्कूलों को जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी की तरफ से नोटिस गया था। उदाहरण के लिए बुलंदशहर के प्राथमिक विद्यालय नैथला- 1 का विलय संविलियन विद्यालय नैथला में कर दिया गया है। इसी तरह लखनऊ में भी कई स्कूलों को लेकर ऐसे ही आदेश जारी हुए हैं।
स्कूलों को मर्ज करने के पीछे का तर्क?
अब यूपी सरकार का 16 जून वाला आदेश कहता है कि जिन भी प्राइमरी और अपर प्राइमरी स्कूलों में 50 से कम छात्र होंगे, उनका दूसरे स्कूलों के साथ मर्जर कर दिया जाएगा। यूपी सरकार का तर्क है कि अगर छोटे स्कूलों का बड़े स्कूलों में मर्जर होगा तो उस स्थिति में छात्रों को बेहतर सुविधाएं मिल पाएंगी, उन्हें भी दूसरों की तरफ अच्छी शिक्षा मिलेगी। सरकार को ऐसा भी लगता है कि छोटे स्कूल हैं, वहां ना सिर्फ टीचरों की कमी है बल्कि बेसिक सुविधाएं नहीं मिल पा रही हैं। वहीं जो थोड़े बड़े स्कूल हैं, उन तक तो सारी सुविधाएं भी पहुंच रही हैं और वहां बच्चों की संख्या भी ठीक-ठाक है।
इस मामले की सुनवाई जब इलाहबाद हाई कोर्ट में हुई थी, तब यूपी सरकार ने कई तर्क रखे थे। सरकार ने कोर्ट के सामने बकायदा एक लिस्ट भी रखी थी जहां बताया गया कि राज्य में कई ऐसे स्कूल मौजूद हैं जहां एक भी बच्चा नहीं पढ़ रहा है, कई ऐसे थे जहां सिर्फ 15 बच्चे मौजूद थे। सरकार ने जोर देकर बोला था कि ऐसे स्कूलों में बेहतर सुविधाएं और अच्छी शिक्षा नहीं मिल पा रही थी।
5 किलोमीटर दूर तक स्कूल, कैसे जाएंगे बच्चे?
अब कोर्ट के सामने राज्य सरकार ने दावे जरूर बड़े किए हैं, लेकिन जब कई कागजों को खंगाला गया तो पता चला कि कुछ ब्लॉक्स में जिन स्कूलों के साथ छोटे विद्यालयों का विलय हो रहा है, वो काफी ज्यादा दूरी पर हैं। अब अभी तक सरकार की तरफ उन स्कूलों को लेकर कोई आधिकारिक ऐलान नहीं हुआ है, लेकिन शिक्षकों के स्तर पर चर्चाएं तेज हैं। जनसत्ता के पास बडगाव (झांसी) का एक ऐसा ही दस्तावेज मौजूद है जो माध्यमिक शिक्षा परिषद का है। उस दस्तावेज में ऐसा दावा हुआ है कि कुछ स्कूल 5 किलोमीटर तक की दूरी पर स्थित हैं। अब सरकार ने इसकी पुष्टि नहीं की है, लेकिन ऐसा माना जा रहा है कि स्कूलों का विलय इसी प्रकार से होने जा रहा है।
माध्यमिक शिक्षा परिषद के दस्तावेजों से क्या पता चला?
माध्यमिक शिक्षा परिषद के उस दस्तावेज में बताया गया है कि झांसी में पीवी खुर्शद रिचोरा के नाम से एक स्कूल हैं, इस समय वहां पर 18 बच्चे पढ़ रहे हैं। अब इस स्कूल से साढ़े पांच किलोमीटर की दूरी पर कॉम्प. एस परिचा विद्यालय मौजूद है। वहां पर इस समय 142 बच्चे पढ़ रहे हैं। ऐसा दावा है कि मर्ज अप के बाद पीवी खुर्शद रिचोरा विद्यालय के बच्चों को यहां शिफ्ट किया जाएगा। इसी तरह झांसी ब्लॉक में ही ‘नवीन पीवी तौड़ बराटा’ स्कूल है, उसमें अभी 28 बच्चे पढ़ते हैं, इसे तीन किलोमीटर दूर स्थित कॉम्प. एस भूपनगर विद्यालय के साथ मर्ज किया जा सकता है।
शिक्षकों ने जनसत्ता को क्या बताया?
अब नाम ना बताने की शर्त पर एक नहीं कई शिक्षकों ने इस बात की शिकायत की है कि गांव में बच्चों के लिए इतना ट्रैवल करना मुश्किल रहता है। वे अनुभव से बताते हैं कि कई बच्चे पास वाले विद्यालयों में भी मुश्किल से आते हैं, कई बार तो उन्हें घर से बुलाना पड़ता है। लेकिन अगर इन्हीं स्कूलों को अब और ज्यादा दूर कर दिया जाएगा तो बच्चे विद्यालय आना ही छोड़ देंगे, उनकी शिक्षा बीच में ही छूट जाएगी। हाई कोर्ट में भी ये दलील रखी गई थी, लेकिन तब कोर्ट ने सरकार की नीति को ही सही माना था।
शिक्षकों की नाराजगी की वजह क्या है?
असल में हाई कोर्ट का तर्क था कि राज्य सरकार की जिम्मेदारी है कि वो स्कूल ऐसी जगह पर बनवाए जहां बच्चे आसानी से जा सके। इस बात पर भी जोर दिया गया कि सरकार को ही ट्रांसपोर्टेशन की सुविधा देनी चाहिए। अब हाई कोर्ट में इस पॉलिसी का विरोध करने वालों की हार जरूर हुई है, लेकिन वे अभी भी झुके नहीं हैं। उत्तर प्रदेश में कई ऐसे ग्रुप सक्रिय चल रहे हैं जहां पर आगे की रणनीति पर मंथन हो रहा है। शिक्षकों को यहां तक समझाने की कोशिश हो रही है कि अभी तो सिर्फ स्कूल मर्ज अप हो रहे हैं, बाद में शिक्षकों की नौकरी भी खतरे में आ सकती है। ऐसा दावा हो रहा है कि योगी सरकार की इस नीति की वजह से छोटे-छोटे कई स्कूल बंद कर दिए जाएंगे और कार्यरत शिक्षकों को एक ही स्थान पर केंद्रित किया जाएगा।
सिर्फ बेसिक नहीं माध्यमिक स्कूलों का भी विलय?
इसके ऊपर शिक्षकों के बीच में ही अभी से इस बात की चिंता शुरू हो चुकी है कि सरकार आने वाले दिनों में बेसिक की तरह माध्यमिक स्कूलों का भी विलय कर सकती है। यहां पर 100 से कम छात्रों वाले स्कूलों का विलय संभव है। वैसे शिक्षकों को काउंटर करने के लिए सरकार अभी से कह रही है कि मर्जर का मतलब यह नहीं है कि स्कूल बंद हो जाएंगे। सिर्फ कम छात्रों वाले स्कूली छात्रों को ज्यादा छात्र वाले स्कूलों में शिफ्ट किया जाएगा। लेकिन कई जानकार इसे सरकार की एक कॉस्ट कटिंग एक्सरसाइज के रूप में भी देख रहे हैं। दावा हो रहा है कि योगी सरकार ने शिक्षा पर सिर्फ 13.8 फीसदी खर्च किया है जबकि दूसरे राज्यों का शिक्षा बजट पर 15 फीसदी के करीब हिस्सा रहता है।
स्कूल मर्जर को लेकर राजनीति, अखिलेश आक्रमक
वैसे जो बातें इस समय ज्यादातर शिक्षक कर रहे हैं, सपा प्रमुख अखिलेश यादव भी उसी दिशा में आगे बढ़ चुके हैं। उन्होंने योगी सरकार की नीयत पर सवाल उठा दिए हैं, उन्होंने स्कूल मर्ज अप वाली पॉलिसी को बच्चों के भविष्य के साथ सबसे बड़ा खिलवाड़ बताया है। जोर देकर कहा गया है कि यह सरकार अपने प्रचार पर अरबों रुपये खर्च कर सकती है, लेकिन बच्चों की पढ़ाई पर नहीं। यहां भी अखिलेश यादव ने छात्राओं पर ज्यादा जोर दिया है, उनका मानना है कि इस एक आदेश की वजह से सैकड़ों बच्चियां स्कूल से दूर हो जाएंगी।