लोकसभा चुनाव 2024 में समाजवादी पार्टी के पीडीए फार्मूले ने जबरदस्त काम किया। पिछले लोकसभा चुनाव में सिर्फ पांच सीटें जीतने वाली समाजवादी पार्टी इस बार आश्चर्यजनक रूप से 37 सीटों पर जीत हासिल करने में कामयाब रही। इस बार उसने कांग्रेस के साथ मिलकर चुनाव लड़ा और शानदार प्रदर्शन किया।

लेकिन इस प्रदर्शन के साथ ही एक सवाल यह भी खड़ा हो रहा है कि क्या अखिलेश यादव का यह पीडीए फार्मूला 2027 में होने वाले विधानसभा चुनाव में भी काम करेगा? यूपी के विधानसभा चुनाव में अब ढाई साल का वक्त बचा है।

मुलायम के रहते जीती थीं 34 सीटें

सपा को उत्तर प्रदेश में इतनी बड़ी कामयाबी तब भी नहीं मिली थी जब पार्टी की कमान इसके संस्थापक मुलायम सिंह यादव के हाथ में थी। मुलायम सिंह यादव के नेतृत्व में सपा ने 2004 के लोकसभा चुनाव में अपना सबसे बेहतरीन प्रदर्शन किया था और तब उसने 34 सीटें जीती थी।

पीडीए का मतलब है- पिछड़ा, दलित और अल्पसंख्यक। यूपी में पिछड़े समुदाय की आबादी 45%, दलित समुदाय की आबादी 21.5% और मुस्लिम समुदाय की आबादी 20% है। कुल मिलाकर पीडीए की आबादी यूपी में 86.5 प्रतिशत है।

सपा के 86% सांसद पीडीए से हैं

समुदाय कितने सांसद जीते
ओबीसी 20
दलित 8
मुस्लिम 4
सामान्य 5
किस समुदाय से सपा के कितने सांसद जीते।

बीजेपी के किस समुदाय से कितने सांसद जीते

समुदाय कितने सांसद जीते
ओबीसी 10
दलित 8
मुस्लिम 0
सामान्य 15
यूपी में किस समुदाय से बीजेपी के कितने सांसद।

लोकसभा चुनाव में सपा ने टिकट बंटवारे के दौरान भी पीडीए के फार्मूले का विशेष ध्यान रखा। अखिलेश यादव ने इस बात पर भी जोर दिया कि पार्टी पर मुस्लिम-यादव समीकरण की छाप ना दिखाई दे। इसलिए उन्होंने यादव समुदाय से सिर्फ पांच नेताओं को टिकट दिया।

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दिल्ली में NDA सांसदों की बैठक (Source- PTI)

अखिलेश ने ओबीसी समुदाय की अन्य जातियों को आगे बढ़ने का मौका दिया और यही नहीं दो सामान्य सीटों पर दलित समुदाय से आने वाले नेताओं को उम्मीदवार बनाया। इनमें से एक फैजाबाद सीट पर अवधेश प्रसाद को जीत मिली है जबकि दूसरी सीट मेरठ में सुनीता जाटव सिर्फ साढ़े दस हजार वोटो के अंतर से चुनाव हारी हैं। सपा के हिस्से में 62 सीटें आई थीं।

अखिलेश के पीडीए फार्मूले का असर पार्टी को मिले वोट शेयर में भी दिखाई दिया है।

साल मिले वोट (प्रतिशत में) मिले वोट (प्रतिशत में)
2019 लोकसभा चुनाव सपा को मिले वोट- 20%बीजेपी को मिले वोट- 49%
2024 लोकसभा चुनाव सपा को मिले वोट- 33.59%बीजेपी को मिले वोट- 41.37%

लोकसभा चुनाव में सपा ने कांग्रेस और टीएमसी के साथ मिलकर चुनाव लड़ा था। कांग्रेस को उसने 17 सीटें दी थी और टीएमसी को एक सीट दी थी। पार्टी ने खुद 62 सीटों पर चुनाव लड़ा था। सपा और कांग्रेस की संयुक्त सूची में 33 उम्मीदवार ओबीसी, 19 दलित और 6 मुस्लिम समुदाय से थे।

आरक्षण खत्म करने का लगाया आरोप

अखिलेश ने चुनाव प्रचार के दौरान बीजेपी पर संविधान को खत्म करने और आरक्षण व्यवस्था को कमजोर करने का आरोप लगाया था। कांग्रेस और सपा के नेताओं ने चुनाव प्रचार के दौरान कई बार कहा कि भाजपा 400 सीटें इसलिए मांग रही है क्योंकि वह संविधान को बदल सके और दलित और पिछड़ों का आरक्षण खत्म कर सके। इसने दलित और पिछड़ी जातियों को सपा के पक्ष में लामबंद किया और पार्टी को 2019 के चुनाव के मुकाबले कहीं बड़ी जीत मिली।

कुछ ऐसा ही कांग्रेस के शांति हुआ और 2019 में सिर्फ रायबरेली सीट पर जीत दर्ज करने वाली कांग्रेस इस बार 6 सीटें जीतने में कामयाब रही। कांग्रेस और सपा की यह सोशल इंजीनियरिंग निश्चित रूप से बीजेपी के लिए मुश्किलें खड़ी कर सकती है।

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पीएम नरेंद्र मोदी (Source- PTI)

जातीय जनगणना का मुद्दा 

अखिलेश यादव ने पीडीए के साथ ही जाति जनगणना का मुद्दा भी जोर-शोर से उठाया। इसके तहत उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि ओबीसी समुदाय को उसका पूरा हक मिलना चाहिए। कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने भी जातीय जनगणना का समर्थन किया और इसे चुनावी घोषणा पत्र में भी शामिल किया।

काम नहीं कर पाया बीजेपी का हिंदुत्व कार्ड

पूरे देश में और विशेषकर उत्तर प्रदेश में लोकसभा चुनाव के प्रचार के दौरान बीजेपी ने अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के मुद्दे को चुनाव प्रचार के केंद्र में रखा था। खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी राम मंदिर के उद्घाटन में मुख्य यजमान थे और पार्टी ने अपनी राज्य सरकारों के मुख्यमंत्रियों, मंत्रियों, विधायकों, बड़े पदाधिकारियों को राम मंदिर का दर्शन करवाया था।

चुनाव प्रचार के दौरान यह माना जा रहा था कि उत्तर प्रदेश में राम लहर है और बीजेपी पिछली बार मिली 62 सीटों से आगे चली जाएगी लेकिन अखिलेश यादव ने पीडीए के फार्मूले का बार-बार जिक्र किया और चुनाव नतीजे स्पष्ट रूप से बताते हैं कि पीडीए के सामने बीजेपी का राम मंदिर कार्ड कमजोर पड़ गया।

अखिलेश यादव ने पिछले साल उत्तर प्रदेश में घोसी विधानसभा सीट पर हुए उपचुनाव के दौरान अबकी बार पिछड़ा दलित अल्पसंख्यक सरकार का नारा दिया था। इस नारे ने उस वक्त भी काम किया था और समाजवादी पार्टी को जीत मिली थी।

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राम मंदिर उद्घाटन के दौरान पीएम मोदी (Source- PTI)

बीजेपी ने पिछड़े समुदाय के नेताओं को जोड़ा

अखिलेश यादव के पीडीए के जवाब में बीजेपी ने हिंदुत्व के कार्ड के साथ ही पिछड़े समुदाय के नेताओं को पार्टी से जोड़ा था। सुभासपा के अध्यक्ष ओमप्रकाश राजभर और सपा के पूर्व विधायक दारा सिंह चौहान को भाजपा ने योगी सरकार में कैबिनेट मंत्री बनाया। दारा सिंह चौहान को विधानसभा चुनाव हारने के बाद भी पार्टी ने विधान परिषद का सदस्य बनाया। पार्टी को उम्मीद थी कि राजभर और चौहान के साथ आने से उसे पूर्वांचल में जीत मिलेगी लेकिन पूर्वांचल की 26 सीटों में से बीजेपी को 10 सीटों पर जीत मिली है जबकि 2019 में उसे 18 सीटें मिली थीं।

बीजेपी ने पश्चिमी उत्तर प्रदेश में असर रखने वाली राष्ट्रीय लोकदल के जरिए जाट वोटों को साधने की कोशिश की। ओबीसी समुदाय से आने वाली अनुप्रिया पटेल और संजय निषाद पहले से ही पार्टी के साथ थे।

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मोदी-शाह को बदलनी होगी अपनी रणनीति (Source- Indian Express)

UP 2022 Assembly Election: घटी थी बीजेपी की सीटें, सपा ने बढ़ाई थी

अगर कांग्रेस और सपा 2027 के विधानसभा चुनाव में भी मिलकर मैदान में उतरते हैं और सपा पीडीए के फार्मूले पर ही टिकटों का बंटवारा करती है तो उत्तर प्रदेश के चुनाव मैदान भयंकर संघर्ष देखने को मिल सकता है। 2022 के विधानसभा चुनाव में भी सपा गठबंधन और एनडीए के बीच जबरदस्त मुकाबला हुआ था। हालांकि सरकार बीजेपी की बनी थी लेकिन तब भी सपा गठबंधन ने एनडीए को कड़ी टक्कर दी थी। उस चुनाव में सपा ने अपनी सीटों की संख्या बढ़ाई थी जबकि बीजेपी की सीटें घटी थी। 

2017 में 312 सीटें जीतने वाली बीजेपी को 2022 में 255 सीटें मिली थी जबकि सपा 2017 में मिली 47 सीटों से 2022 में 111 सीटों पर पहुंच गई थी।