केंद्रीय सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी कई मंचों से अपने काम करने की शैली पर बात कर चुके हैं। गडकरी किसी प्रोजेक्ट की सफलता का श्रेय सिर्फ खुद को न देकर, उसे टीम वर्क का परिणाम बताते हैं। हाल में वह राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) से संबद्ध पत्रिका पाञ्चजन्य के कार्यक्रम ‘Panchjanya Infrastructure Conclave’ में शामिल हुए। इस कार्यक्रम में गडकरी ने उन लोगों के नाम गिनाए, जिनसे उन्हें टीम वर्क की प्रेरणा मिली।

नितिन गडकरी अब अपने अनुभवों और प्रेरणाओं को एक किताब का रूप देने में जुटे हैं। उन्होंने कहा, “मैं एक किताब लिख रहा हूं। विदेशी पत्रकार अक्सर मुझसे पूछते कि आपने इतने रिकॉर्ड बनाए, आप इतना काम करते है, ये सब कैसे करते हैं? जिन लोगों से मुझे जीवन में कुछ सीखने को मिला। जिन्हें मैं अपना आइकन मानता हूं, उसमें बालासाहब देवरस, भाऊराव देवरस, यशवंतराव केलकर और दत्तोपंत ठेंगड़ी जैसे लोग हैं।”

इसके बाद गडकरी ने यशवंतराव केलकर की किताब ‘पूर्णांक की ओर’ का जिक्र कर, उसे मॉडर्न कॉन्सेप्ट ऑफ मैनेजमेंट बताया। दत्तोपंत ठेंगड़ी के आग्रह पर ही यशवंतराव केलकर ने काम करने की अपनी स्ट्रेटजी को लिपिबद्ध किया था। संघ परिवार में केलकर की कार्यपद्धति, जिसमें टीम स्पिरिट, टीम वर्क, प्लानिंग इन एडवांस, प्लानिंग इन डिटेल्स होती है, को आदर्श माना जाता है।

गडकरी भी ऐसी ही एक किताब लिख रहे हैं। वह मानते हैं कि काम में सामूहिकता, सहृदयता और समन्वय के साथ-साथ डिस्ट्रीब्यूशन ऑफ वर्क एंड डिवीजन ऑफ पावर कॉन्सेप्ट उन्होंने संघ और विद्यार्थी परिषद से सीखा।

छह डी.ल‍िट मिल चुका, सातवां मिलने वाला है- गडकरी

नितिन गडकरी का दावा है कि उनके पास देश के प्रतिष्ठित विश्वविद्यालयों से डी.ल‍िट की छह उपाधि मिल चुकी है। सातवीं असम के विश्वविद्यालय से मिलने वाली है। डॉक्टरेट की इन उपाधियों के बावजूद गडकरी अपने नाम के आगे डॉक्टर नहीं लगाते। इसका क्या कारण है?

गडकरी आपातकाल के दौरान का एक किस्सा सुनाते हुए कारण बताते हैं, “1975 में मैं 11वीं में था। उसी दौरान दिसंबर 25 को इमरजेंसी लग गई। तब मैं संघ में एक्टिव था। मैं पैम्फलेट निकालकर, चौक-चौक पहुंचाने का काम करता था। जनवरी, फरवरी और मार्च मेरा इसी काम में चला गया। इस वजह से परीक्षा में मुझे 52 प्रतिशत ही अंक मिले। मैं इंजीनियर बनना चाहता था। लेकिन इंजीनियरिंग कॉलेज में दाखिला के लिए साइंस ग्रुप में 50 प्रतिशत से ज्यादा नंबर होना अनिवार्य था। साइंस ग्रुप में मेरे 49.26 प्रतिशत ही नंबर आए थे। इस कारण मैं इंजीनियरिंग कॉलेज से डिस्कॉलिफई हो गया। अब वर्तमान में मेरे पास डी.लिट की छह-छह उपाधियां हैं। लेकिन मैं डॉक्टर नहीं लगाता क्योंकि मुझे ऐसा लगता है कि जो इंसान इंजीनियरिंग कॉलेज में दाखिला नहीं ले पाया, वह डॉक्टर कैसे हो सकता है।”

अटल बिहारी वाजपेयी से क्या सीखा?

युवावस्था में नितिन गडकरी अटल बिहारी वाजपेयी के साथ प्रवास करते थे। उनकी सभाओं की व्यवस्था देखते थे। गडकरी बताते हैं कि उन्हें एक बार अटल बिहारी वाजपेयी ने कहा था कि नितिन एक बात याद हमेशा रखना, जितने लोग तुमसे घर पर मिलने आए, उन सब से मिलना। चाहे कितनी भी जल्दी में रहो। सभी से कुछ मिनट के लिए ही सही लेकिन मिलना जरूर, बिना मिले कभी घर से मत निकलना।