अयोध्या के निर्माणाधीन राम मंदिर के पहले चरण का काम तेजी से पूरा किया जा रहा है। 22 जनवरी को प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम होनी है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देशवासियों से इस मौके पर दिवाली मनाने की अपील की है।

मंदिर के उद्घाटन का समय ज्यों-ज्यों नजदीक आ रहा है, इसके इतिहास और आंदोलन को याद किया जा रहा है। वर्तमान में बन रहा मंदिर देश के सर्वोच्च न्यायालय के फैसले का परिणाम है। हालांकि राम मंदिर के लिए हिंदुत्ववादी संगठनों ने लंबा आंदोलन भी चलाया था।

जिस जगह पर आज मंदिर का निर्माण हो रहा है, वहां कभी एक ढांचा हुआ करता था। मुस्लिम पक्ष उसे बाबरी मस्जिद बताता था। कारसेवकों ने 6 दिसंबर 1992 को ढांचा गिरा दिया था। उस घटना को भारतीय समाज और राजनीति का टर्निंग प्वाइंट माना जाता है।

मंदिर आंदोलन में महिलाएं

मंदिर आंदोलन और बाबरी विध्वंस पर बात करते हुए, जितनी प्रमुखता से लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, अशोक सिंघल और विनय कटियार का नाम गिनवाया जाता है। लगभग उतना ही महत्वपूर्ण विजयाराजे सिंधिया, साध्वी ऋतंभरा और उमा भारती को माना जाता है।

मंदिर आंदोलन में महिलाओं ने न सिर्फ भाग लिया था, बल्कि नेतृत्व भी प्रदान किया था। बाबरी विध्वंस के बाद मामले की तहकीकात के लिए बनाई गई लिबरहान कमीशन ने जिन 68 लोगों को साम्प्रदायिक भावनाएं भड़काने का दोषी माना था, उसमें विजयाराजे सिंधिया, साध्वी ऋतंभरा और उमा भारती का भी नाम था।

बाबरी विध्वंस के वक्त उमा भारती ने विशेष रूप लोगों का ध्यान आकर्षित किया था। वह तमाम बुजुर्ग नेताओं के बीच गेरुआ वस्त्र धारण किए हुए एक कम उम्र की संन्यासिन और सांसद तो थी हीं, उन्होंने मंदिर आंदोलन के चक्कर में अपना मुंडन भी करवा लिया था।

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ट्रेन में (आगे से) उमा भारती, मुरली मनोहर जोशी और लाल कृष्ण आडवाणी (Express archive photo)

मुंडन कराने की नौबत क्यों आई?

उमा भारती बहुत जिद्दी और गुस्सैल स्वभाव की रही हैं। ऐसा वह खुद भी मानती हैं। साल 1997 में उन्होंने इंडिया टुडे को एक इंटरव्यू दिया था, जिसमें उनसे पूछा गया था कि उन्हें “अपने बारे में सबसे ज्यादा क्या नापसंद है?” इसके जवाब में उमा भारती ने बताया कि मुझे गुस्सा बहुत आता है।

उमा भारती का यह गुस्सा तब भी देखने को मिला था, जब 90 के दशक में सरकार ने विवादित बाबरी मस्जिद को लोगों के लिए बंद कर दिया। सरकार की मनाही के बावजूद उमा भारती वहां जाना चाहती थीं।

साल 1990 में भाजपा के जयपुर अधिवेशन में भारती ने अपने मुंडन का किस्सा सुनाया था। बीबीसी की एक स्पेशल रिपोर्ट के मुताबिक उन्होंने कहा था:

मुझे मेरे लंबे बाल बहुत प्यारे थे, पर मैं एक मंदिर में गई और नाई से अपने सिर के सारे बाल साफ करा लिए। जब सर गंजा हो गया, तब अयोध्या की सख्त सुरक्षा के बावजूद मैं एक लड़के के भेष में दाखिल होने में कामयाब रही।

उमा भारती को ‘सेक्सी संन्यासिन’ कहा जाना सबसे खराब लगा

मंदिर आंदोलन के दौरान ही उमा भारती के खुलेपन और उनके कथित रिश्ते को लेकर अक्सर ख़बर बनाई गई। ऐसे लोगों ने उन्हें ‘सेक्सी संन्यासिन’ का तमगा भी दिया। साल 1997 में इंडिया टुडे को द‍िए इंटरव्यू में जब उनसे पूछा गया कि किस बात से उनको सबसे अधिक दुख पहुंचा? तब भारती ने कहा:

मुझे ‘सेक्सी संन्यासिन’ का लेबल दिया जा रहा है। कुछ महिलाओं को ऐसा वर्णन पसंद आ सकता है, लेकिन मुझे नहीं। मैं इसे प्रशंसा के रूप में नहीं, बल्कि दुर्व्यवहार के रूप में लेती हूं। मुझे नहीं लगता कि मेरा आचरण, रूप या पोशाक इस वर्णन के लायक है।

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उमा भारती लेखिका भी हैं। पीटीआई की एक रिपोर्ट के मुताबिक, उमा भारती ने स्वामी विवेकानन्द, मानव एक भक्ति का नाता और पीस ऑफ माइंड नामक किताब लिखी है। (Express archive photo)

बाबरी विध्वंस से कुछ दिन पहले ली थी दीक्षा

बाबरी विध्वंस 6 दिसंबर 1992 को हुआ था। उमा भारती ने इससे सिर्फ कुछ दिन पहले संन्यास की दीक्षा ली थी। एक ट्वीट में उन्होंने बताया था, “मैंने 17 नवंबर 1992 को अमरकंटक में ही संन्यास दीक्षा ली थी। मेरे गुरु कर्नाटक के कृष्ण भक्ति संप्रदाय के उडुपी कृष्ण मठ के पेजावर मठ के मठाधीश थे। …राजमाता विजयराजे सिंधिया जी के अनुरोध पर तब अविभाजित मध्यप्रदेश के अमरकंटक आकर उन्होंने संन्यास की दीक्षा प्रदान की। मेरा संन्यासी दीक्षा समारोह 3 दिन चला। उसमें राजमाता जी, उस समय के मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री पटवा, मुरली मनोहर जोशी, भाजपा की मध्य प्रदेश की लगभग पूरी सरकार, भाजपा के देश व प्रदेश के वरिष्ठ नेता व संघ के वरिष्ठ स्वयंसेवक उपस्थित रहे।”

मंदिर आंदोलन में उमा भारती

उमा भारती का जन्म टीकमगढ़ जिले के डूंडा गांव में पिछड़ी लोध जाति के किसान परिवार में हुआ था। सार्वजनिक जीवन में उनकी शुरुआत कम उम्र में ही हो गई थी, जब वह दिवंगत भाजपा नेत्री विजयाराजे सिंधिया, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और विश्व हिंदू परिषद के नेताओं के संपर्क में आईं। भाजपा और संघ के नेता उमा भारती के भाषण देने की शैली से प्रभावित हुए थे।

उमा भारती 16 साल की उम्र में भारत भ्रमण पर निकल गई थीं। इसके बाद उन्होंने अपने विचारों को व्यापक आकार देने के प्रयास में 55 देशों की यात्रा की। बचपन से ही उनका अध्यात्म के प्रति झुकाव था। कम उम्र में उन्होंने गीता और रामायण सहित धार्मिक महाकाव्यों में निपुणता हासिल की, जिससे उन्हें राम मंदिर आंदोलन के दौरान मदद मिली।

भारती ने 1980 के दशक में सक्रिय राजनीति में प्रवेश किया और 1988 में भाजपा के मध्य प्रदेश इकाई की उपाध्यक्ष बन गईं। 1984 में उन्होंने अपना पहला लोकसभा चुनाव लड़ा और हार गईं। तब भाजपा मात्र दो सीटें जीत पायी थी।

इस चुनाव के बाद अटल बिहारी वाजपेयी को हटाकर, लाल कृष्ण आडवाणी को पार्टी अध्यक्ष बनाया गया। इसके बाद पार्टी ने 1989 में विश्व हिंदू परिषद के राम मंदिर आंदोलन को समर्थन देने का प्रस्ताव पास किया। उमा भारती ने इसमें बढ़ चढ़कर भाग लिया। नतीजा यह रहा कि 1989 के चुनाव में वह सांसद बनने में कामयाब रहीं। 1989 के लोकसभा चुनाव में मात्र 4.4 प्रतिशत महिलाएं चुनी गई थीं। इनमें उमा भारती भी एक थीं।

मंदिर आंदोलन में साध्वी ऋतंभरा की तरह उमा भारती ने भी तेज़-तर्रार और भड़काऊ वक्ता के तौर पर उभरीं। ऋतंभरा की तरह ही भारती के भाषणों का ऑडियो टेप भी हिंदी पट्टी में खूब बांटा गया।

बीबीसी की एक रिपोर्ट के मुताबिक, मंदिर आंदोलन के दौरान उमा भारती ने कहा था, “मंदिर बनाने के लिए अगर ज़रूरत पड़ी तो हम अपनी हड्डियों को ईंट बना देंगे और लहू को गारा।”

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अयोध्या में शिलायन स्थल के पास पूजा के साथ कार सेवा शुरू करते कर्वीपीठ के शंकराचार्य, महंत अवैद्यनाथ, उमा भारती और वरिष्ठ विहिप नेता (Express archive photo)

बाबरी विध्वंस और उमा भारती

बाबरी विध्वंस वाले दिन उमा भारती मस्जिद से कुछ ही दूरी पर अन्य वरिष्ठ नेताओं के साथ एक मंच पर थीं। मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक उन्होंने कारसेवकों को भड़काते हु्ए “एक धक्का और दो, बाबरी मस्जिद तोड़ दो” का नारा दिया था।

वरिष्ठ पत्रकार हेमंत शर्मा ने बाबरी विध्वंस का आंखोंदेखा हाल अपनी किताब “युद्ध में अयोध्या” में लिखा है। शर्मा के मुताबिक, मस्जिद गिराए जाने के बाद भारती ने मंच से कहा था, “अभी काम पूरा नहीं हुआ है, आप तब तक परिसर ना छोड़ें जब तक पूरा इलाका समतल ना हो जाए।” बाद में उमा भारती ने बाबरी विध्वंस की ‘नैतिक ज़िम्मेदारी’ भी ली थी और आंदोलन का हिस्सा होने पर गर्व जताया था।