भारत के पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त (Former Chief Election Commissioner) एसवाई कुरैशी (SY Quraishi) ने इलेक्टोरल बॉन्ड की जमकर मुखालफत की है। हाल में The Indian Express के चर्चित कार्यक्रम आइडिया एक्सचेंज (Idea Exchange) में शामिल हुए एसवाई कुरैशी ने ‘एक देश, एक चुनाव’ (one nation-one election), EVM की विश्वसनीयता, चुनावी भ्रष्टाचार, कथित रेवड़ी कल्चर आदि विषयों पर बेबाक राय रखी है।
द इंडियन एक्सप्रेस की डिप्टी एडिटर लिज़ मैथ्यू ने पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त से चुनाव आयोग की विश्वसनीयता को लेकर सवाल पूछा। उन्होंने जानना चाहा कि इलेक्शन कमीशन कथित रेवड़ियों की बात तो करता है लेकिन चुनावी बॉन्ड (Electoral Bonds) पर कुछ नहीं बोलता, क्या इससे चुनाव आयोग की विश्वसनीयता पर असर नहीं पड़ रहा?
कुरैशी ने दोनों मामलों (कथित रेवड़ी और चुनावी बॉन्ड) को अलग-अलग मुद्दा बताते हुए कहा, “अगर मैं कहूंगा रेवड़ी, तो आप कहेंगे कल्याणकारी योजना। जब मैं कहूंगा कल्याणकारी, तो आप कहेंगे रेवड़ी। अगर ऐसा करना है तो यह दूसरी बात है। भले ही राजनीतिक दल आपको चांद लाकर देने का वादा करें, इसे कानूनी तौर पर गलत नहीं ठहराया जा सकता। सुप्रीम कोर्ट ने भी इसे भ्रष्ट आचरण नहीं माना। लेकिन चुनाव आयोग को सभी राजनीतिक दलों को बुलाने और दिशानिर्देश बनाने का आदेश दिया। यह निश्चित रूप से ज़िम्मेदारी से बचने का एक लापरवाह तरीका था। हालांकि चुनाव आयोग ने भी यही किया। उन्होंने राजनीतिक दलों को बुलाया और उनसे खूब खरी-खोटी सुनी। राजनीतिक दलों ने चुनाव आयोग से कहा कि तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई हमसे सवाल करने की? अगर मुझे अपने मतदाताओं से कुछ वादा करना होगा, तो मैं और कैसे वादा करूंगा? यह किस कानून का उल्लंघन है? इस वजह से चुनाव आयोग कुछ दिशानिर्देश लेकर आया, जो पार्टियों को सावधान रहने की सलाह देता है।”

कथित रेवड़ी कल्चर पर अपनी राय स्पष्ट करते हुए कुरैशी ने कहा, “दरअसल, मुफ्त में बहुत कुछ अच्छा है। एनटी रामाराव पहले व्यक्ति थे जिन्होंने “एक रुपये में एक किलो चावल” देने की घोषणा की थी। मुफ्त राशन ने यह सुनिश्चित कर दिया है कि भूख से कोई मौत न हो। दूसरा तरीका यह है कि एक समृद्ध विकसित देश बनाया जाए और उसके लिए 200 साल तक इंतजार किया जाए। नीतीश कुमार ने छात्राओं को साइकिल दिया, जिससे नामांकन में वृद्धि हुई और ड्रॉपआउट दर में गिरावट आई। अब, क्या यह मुफ्तखोरी है? दरअसल, यह बहुत अच्छा विकास है।”
चुनावी बॉन्ड पर क्यों चुप है EC?
कुरैशी इस सवाल के जवाब की शुरुआत चुनावी बॉन्ड की घोषणा के वक्त से करते हैं, “जब चुनावी बॉन्ड की घोषणा की गई, तो चुनाव आयोग ने सरकार को बहुत कड़े शब्दों में एक पत्र लिखा। चुनाव आयोग ने दो-तीन साल तक सुप्रीम कोर्ट में इसका विरोध किया। लेकिन अब अचानक उन्हें चुनावी बॉन्ड अच्छा लगने लगा है। जब अरुण जेटली संसद में थे तो मैं बजट भाषण सुन रहा था। उन्होंने कहा कि राजनीतिक फंडिंग की पारदर्शिता के बिना स्वतंत्र एवं निष्पक्ष चुनाव संभव नहीं है। यह मेरे कानों के लिए संगीत जैसा था क्योंकि हम भी बिल्कुल यही कह रहे थे। उनका अगला वाक्य था- पिछले 70 वर्षों से हम इसे हासिल करने में असफल रहे हैं। उनका दावा था कि वह पारदर्शिता लाने जा रहे है। लेकिन हुआ बिल्कुल विपरीत। जो भी पारदर्शिता थी उसे भी नष्ट कर दिया गया। पहले 20,000 से अधिक के सभी डोनेशन और ट्रांजेक्शन का हिसाब चुनाव आयोग के पास होता था, जिसे पब्लिक किया जाता था। अब किसी को पता नहीं चलता कि किसी पार्टी को 20 करोड़ या 200 रुपए किसने दिए। इलेक्शन बॉन्ड को लाने की वजह बताई गई कि दानकर्ता (Donor) गोपनीयता चाहते हैं। सवाल उठता है कि दानकर्ता गोपनीयता क्यों चाहते हैं? ताकि डोनेशन के बदले मिलने वाले लाइसेंस, कॉन्ट्रैक्ट और लोन को छिपा सके, ताकि लोन लेकर वे लेकर लंदन या एंटीगुआ या कहीं और भाग सकें। क्या डोनेशन के बदले मिलने वाले इन्हीं उपकारों की वजह से वह इसे गुप्त रखना चाहते हैं।”
कुरैशी आगे कहते हैं, “लेकिन उनके चाहने से ऐसा नहीं होने दिया जा सकता। मुद्दा यह है कि लोग क्या चाहते हैं। चुनाव में भ्रष्टाचार देश के सारे भ्रष्टाचार का मूल कारण बन गया है। कंपनियां करोड़ों रुपये दे रही हैं। किस लिए? सुप्रीम कोर्ट के पास इस तरह के जनहित के मुद्दे के लिए समय नहीं है। यह जनहित का मुद्दा नहीं तो क्या है? लेकिन अब जब यह अदालत के सामने जा रहा है, तो उम्मीद है कि वे इस पर ध्यान देंगे और देश को संतुष्टि होगी।”
