आजादी के 75 वर्ष बाद भारत में केवल जनसंख्या ही नहीं बढ़ी है। नागरिकों की जीवन प्रत्याशा दर भी बढ़ी है। आजादी के वक्त देश का नागरिक औसत 34 साल जीता था, अब 69 साल जीता है। इसके साथ ही देश की जीडीपी भी बढ़ी है। आजादी के वक्त जीडीपी 2.7 लाख करोड़ थी। वहीं, पिछले वित्त वर्ष देश की जीडीपी 147.35 ट्रिलियन थी।
ये बदलाव भले ही बहुत तेज न हों लेकिन दृश्यमान जरूर है। 1947 में या उसके आस-पास आजाद हुए पड़ोसी मुल्कों की तुलना में भारत की स्थिति बेहतर है। प्रेस फ्रीडम इंडेक्स, हंगर इंडेक्स, हैप्पीनेस इंडेक्स आदि को अपवाद मान लें तो भारत को सफल एशियाई देशों की सूची में रखा जा सकता है। आज भारतीय अर्थव्यवस्था दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था के रूप में उभर रही है। यह परिणाम पिछले 75 साल में हुए कुछ बड़े आर्थिक बदलावों का हासिल है। आइए जानते हैं ऐसे ही बड़े आर्थिक सुधारों को:
पंचवर्षीय योजना
आजादी के वक्त भारत की अर्थव्यवस्था बहुत कमजोर थी। उसे आत्मनिर्भर बनाने के लिए प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने मिश्रित अर्थव्यवस्था का मॉडल को चुना। इसी को ध्यान में रखकर 8 दिसंबर, 1951 को संसद में पहली पंचवर्षीय योजना को पेश की गई। साथ ही योजना आयोग का गठन किया गया। इस योजना की अवधि 1950-51 से 1955-56 तक थी।
पंचवर्षीय योजना का मकसद बचत और निवेश में वृद्धि करना था। देश में खाद्यान्न की कमी देखते हुए इस योजना में कृषि क्षेत्र पर विशेष जोर दिया गया। साथ ही औद्योगीकरण की शुरुआत करते हुए पाँच इस्पात संयंत्रों की नींव रखी गई। पहली पंचवर्षीय योजना सफल रही है। तब आर्थिक वृद्धि दर का लक्ष्य 2.1 प्रतिशत निर्धारित किया गया था, जबकि भारत ने 3.6 प्रतिशत वृद्धि दर हासिल की। दूसरी पंचवर्षीय योजना में औद्योगीकरण पर अधिक ध्यान केंद्रित किया गया। इस पंचवर्षीय योजना को प्रस्तुत करने वाले योजना आयोग के सलाहकार प्रशातन्तचंद महलनवीस का उद्देश्य स्वदेशी उद्योगों को प्रोत्साहित करना और आत्मनिर्भर बनाना था।
बैंकों का राष्ट्रीयकरण
एक बड़ा आर्थिक बदलाव इंदिरा गांधी के कार्यकाल में हुआ था। 19 जुलाई 1969 को तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने 14 निजी बैंकों का राष्ट्रीयकरण कर दिया था। इन बैंकों पर अधिकतर बड़े औद्योगिक घरानों का कब्जा था। आम आदमी के लिए बैंकों से मदद पाना मुश्किल माना जाता था। बैंकों के राष्ट्रीयकरण से पहले भारत की 80 प्रतिशत पूंजी निजी बैंकों के पास ही थी लेकिन इन बैंकों का भारत की सामाजिक-आर्थिक स्थिति सुधारने में कोई योगदान नहीं था।
इंदिरा सरकार द्वारा राष्ट्रीयकृत किए गए बैंकों में सबसे बड़ा ‘सेंट्रल बैंक’ था। टाटा द्वारा नियंत्रित इस बैंक में 4 अरब से अधिक रुपये जमा थे। सबसे छोटे महाराष्ट्र बैंक में भी 70 करोड़ रुपये थे। राष्ट्रीयकरण के बाद बैंक भारत में समावेशी विकास की धुरी बन गए, जिसकी मदद से मौजूदा सरकार भी विभिन्न कल्याणकारी योजनाओं को आसानी से चला पा रही है।
1991 का उदारीकरण
वर्ष 1991 का उदारीकरण स्वतंत्रता के बाद का सबसे बड़ा आर्थिक बदलाव था। नई आर्थिक नीति उदारीकरण, निजीकरण और वैश्वीकरण मॉडल पर आधारित थी। पूर्व प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव ने इसकी शुरुआत अर्थशास्त्री मनमोहन सिंह के साथ मिलकर देश को गंभीर आर्थिक संकट से निकालने के लिए की थी। एक मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, जनवरी 1991 में भारत के पास सिर्फ दो सप्ताह के आयात लायक ही विदेशी मुद्रा बची थी यानी कुल 89 करोड़ डॉलर।
सरकार ने प्रत्यक्ष विदेशी निवेश और व्यापार नीतियों को उदार बनाना। औद्योगिक लाइसेंस परमिट राज को खत्म कर दिया। आयात शुल्क में कीम की। यही वजह रही कि उदारीकरण के बाद भारत की अर्थव्यवस्था में तेजी से उछाल आया।
स्वर्णिम चतुर्भुज योजना
अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार ने आर्थिक सुधार के लिए आधारभूत संरचना को दुरुस्त करने की दिशा में कदम बढ़ाया। सरकार ने स्वर्णिम चतुर्भुज योजना के तहत चेन्नई, कोलकाता, दिल्ली और मुंबई को हाईवे नेटवर्क से जोड़ा। प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना के तहत गांवों को शहरों से जोड़कर उनकी अर्थव्यवस्था को मजबूत करने की कोशिश हुई। अटल सरकार में निजीकरण की रफ्तार पिछली सरकारों की तुलना में तेज हुई। 1999 में तो सरकार ने प्रत्यक्ष विदेशी निवेश को बढ़ावा देने वाले एक अनोखे विनिवेश मंत्रालय का गठन किया था।