सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने चुनावी बांड योजना (Electoral Bonds Scheme) को “असंवैधानिक” बताते हुए रद्द कर दिया है। 15 फरवरी, 2023 को शीर्ष अदालत ने फैसला सुनाते हुए कहा कि यह योजना सूचना के अधिकार और धारा 19(1)(ए) का उल्लंघन करती है।
सुप्रीम कोर्ट ने भारतीय स्टेट बैंक (SBI) को 12 अप्रैल, 2019 (इलेक्टोरल बॉन्ड मामले में सुप्रीम कोर्ट ने अपना अंतरिम आदेश इसी तारीख को सुनाया था) के बाद से खरीदे गए सभी बांडों का विवरण चुनाव आयोग को सौंपने का निर्देश दिया है। इसके बाद चुनाव आयोग इस विवरण को अपनी वेबसाइट पर सार्वजनिक करेगा।
पांच जजों की संवैधानिक पीठ ने फैसला सुनाया कि राजनीतिक दलों को असीमित फंडिंग की अनुमति देने वाले कानून में बदलाव मनमाना है। सुप्रीम कोर्ट ने आगे कहा कि चुनावी बांड के माध्यम से काले धन के मुद्दे से निपटने का केंद्र का औचित्य उचित नहीं है।
भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति संजीव खन्ना, बीआर गवई, जेबी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पांच न्यायाधीशों की पीठ ने पिछले साल 2 नवंबर को मामले में अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था।
कुल 16518 करोड़ के इलेक्टोरल बॉन्ड बिके, 14978 करोड़ का हिसाब देगा एसबीआई
सुप्रीम कोर्ट के आदेशानुसार SBI को अप्रैल 2019 के बाद खरीदे गए बॉन्ड का हिसाब चुनाव आयोग को देना है। इलेक्टोरल बॉन्ड की बिक्री पहली बार मार्च 2018 में शुरू हुई थी। मार्च 2019 तक आठ बार इसकी बिक्री हो चुकी थी। इस दौरान कुल 1540 करोड़ रुपए से भी अधिक के बॉन्ड बिके थे।
अप्रैल 2019 से अब तक 22 और चरणों में इलेक्टोरल बॉन्ड बेचे गए हैं। कुल 30 चरणों में 16518 करोड़ रुपए के इलेक्टोरल बॉन्ड बिके हैं। अप्रैल 2019 से 14978 करोड़ रुपए से भी ज्यादा के बॉन्ड बिके हैं, जिसका हिसाब भारतीय स्टेट बैंक (SBI) को देना है। सुप्रीम कोर्ट के आदेश के अनुसार 6 फरवरी तक एसबीआई से यह जानकारी मिल जाने के एक सप्ताह के भीतर चुनाव आयोग इसे अपनी वेबसाइट पर अपलोड करेगा।
मार्च 2018 से नवंबर 2022 तक कितनी रकम के कितने बॉन्ड बिके, इसकी जानकारी नीचे देखी जा सकती है (सोर्स: एडीआर)। पूरे मामले की पृष्ठभूमि समझने के लिए यहां क्लिक कर सकते हैं।

इलेक्टोरल बॉन्ड की सबसे बड़ी लाभार्थी भाजपा
इस योजना की सबसे बड़ी लाभार्थी भाजपा है। 2017-2022 के बीच भारतीय जनता पार्टी को चुनावी बांड से 5,271.97 करोड़ रुपये का चंदा मिला था। यह कुल मिले चंदे का 57 प्रतिशत है। इसी अवधि में कांग्रेस को 952.29 करोड़ रुपये का चंदा मिला था, जो टोटल का 10 प्रतिशत है।
वित्त वर्ष 2022-23 में भारतीय जनता पार्टी (BJP) को इलेक्टोरल बॉन्ड के जरिए 1300 करोड़ रुपये का दान मिला था। इसी अवधि में कांग्रेस को 171 करोड़ रुपये का दान मिला था। यानी कांग्रेस को इलेक्टोरल बॉन्ड से जितना मिला, उसका करीब सात गुना गुप्त चंदा भाजपा को मिला।
साल 2017-18 और 2018-19 में राजनीतिक दलों को चुनावी बॉन्ड से कुल 2,760.20 करोड़ रुपये मिले थे, जिसमें से 1,660.89 करोड़ रुपये यानी 60.17% अकेले भाजपा को मिले थे।
कई कानूनों में बदलाव कर मनी बिल के जरिए लाया गया था इलेक्टोरल बॉन्ड
चुनावी बॉन्ड्स को वित्त अधिनियम, 2017 के जरिए लाया गया था। इसे धन विधेयक (मनी बिल) के रूप में पारित कराया गया था, ताकि राज्य सभा की मंजूरी की जरूरत न रहे। इसे लाने के लिए कई कानूनों में बदलाव करना पड़ा था। इनमें आरबीआई अधिनियम, आयकर अधिनियम, और जन प्रतिनिधित्व अधिनियम शामिल हैं।