सुप्रीम कोर्ट ने 11 अप्रैल को एक मामले की सुनवाई के दौरान वकील को कड़ी फटकार लगाई। दरअसल, सुप्रीम कोर्ट की बेंच एक याचिका पर सुनवाई कर रही थी। इसी दौरान वकील ने दलील दी कि यह सिविल डिस्प्यूट है। इसी बात पर बेंच बेहद नाराज हो गई और यहां तक कह दिया कि कानून के हाथ कमजोर नहीं हैं।

क्या है पूरा मामला?

Live Law के मुताबिक वकील की बात सुनकर सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने कहा- सिविल डिस्प्यूट? आपने किसी की पिटाई कर हड्डी तोड़ दी…और कह रहे हैं कि ये सिविल डिस्प्यूट है। पिटाई की वजह से फ्रैक्चर आ गया…। याद रखिये, कानून के हाथ इतने भी कमजोर नहीं हैं।’

क्या होता है सिविल डिस्प्यूट?

अपराध दो तरह के होते हैं। एक सिविल और एक क्रिमिनल। सिविल डिस्प्यूट या सिविल मामलों के तहत ऐसे मामले आते हैं जिसमें कोई व्यक्ति अधिकार अथवा क्षतिपूर्ति की मांग करता है। ऐसे मामले सामान्यतः दो पक्षों तक सीमित रहते हैं और इनका समाज पर कोई प्रभाव नहीं होता है। सिविल डिस्प्यूट को उदाहरण से समझें तो इसके तहत कॉपीराइट से जुड़े मामले, दो पक्षों के बीच समझौते का उल्लंघन, प्रॉपर्टी से जुड़ा विवाद या पारिवारिक विवाद जैसे मसले आते हैं।

क्या है क्रिमिनल डिस्प्यूट?

अब क्रिमिनल डिस्प्यूट की बात करें तो इसके तहत ऐसे मामले आते हैं जो गंभीर आपराधिक प्रकृति के होते हैं। जैसे मर्डर, अटेंप्ट टू मर्डर यानी हत्या का प्रयास, किडनैपिंग, चोरी-डकैती आदि। ये ऐसे मामले हैं जो व्यापक तौर पर समाज को प्रभावित करते हैं। कानून के जानकारों के मुताबिक जिन मामलों में दोषी के लिए दंड की मांग की गई हो, उसे क्रिमिनल डिस्प्यूट की कैटेगरी में रखा जाता है।

क्या है सिविल और क्रिमिनल मामलों में फर्क?

सिविल और अपराधिक मामले में कई अंतर है। जैसे- सिविल मामले में दोनों पक्षों को खुद के खर्चे पर वकील की व्यवस्था करनी पड़ती है। जबकि क्रिमिनल डिस्प्यूट के केस में आरोपी को तो अपने खर्च पर वकील करना होता है, जबकि कई परिस्थितियों में पीड़ित पक्ष का प्रतिनिधित्व सरकारी वकील करता है।

दोनों तरह के मामलों में क्या सजा है?

इसी तरह, सिविल और क्रिमिनल डिस्प्यूट में एक और बड़ा अंतर यह है कि सिविल मामले न्यायालय में पीड़ित पक्ष द्वारा खुद दायर किए जा सकते हैं। जबकि आपराधिक मामले, पीड़ित पक्ष की ओर से पुलिस द्वारा दायर किये जाते हैं। सिविल मामलों में दोषी से जुर्माना वसूला जा सकता है, नुकसान की भरपाई करने को कहा जा सकता है और आरोपी को सामान्यत: कैद में नहीं रखा जाता है। लेकिन आपराधिक मामलों में दंड के रूप में जुर्माना, कैद और मृत्युदंड जैसी सजा का प्रावधान है।