सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड जज जस्टिस जे. चेलमेश्वर (Justice J chelameswar) ने हाल ही में इंडिया टुडे कॉन्क्लेव (साउथ) में बताया कि आखिर किन कारणों के चलते उन्होंने 2018 में तत्कालीन सीजेआई के खिलाफ प्रेस कांफ्रेंस की थी। एक वाकये का जिक्र करते हुए जस्टिस चेलमेश्वर ने बताया कि हाईकोर्ट के एक जज के खिलाफ शिकायत आई थी। तत्कालीन चीफ जस्टिस ने उस जज के खिलाफ इन हाउस इंक्वायरी का आदेश दे दिया, जबकि हममें से किसी को कुछ पता ही नहीं था। न तो उन्होंने बताया। यहां तक कि मुझे भी नहीं बताया, जबकि सीजेआई के बाद सबसे सीनियर जज मैं ही था।
जस्टिस चेलमेश्वर कहते हैं कि आप कल्पना करिये कि प्रधानमंत्री या मुख्यमंत्री ऐसा ही कोई डिसीजन अकेले ले लें तो आप इससे सहमत होंगे? क्या हम ऐसे देश में रहने को तैयार हैं?
बता दें कि साल 2018 में सुप्रीम कोर्ट के 4 सीनियर मोस्ट जजों ने तत्कालीन चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (CJI) दीपक मिश्रा के खिलाफ मोर्चा खोल दिया था। सार्वजनिक तौर पर प्रेस कांफ्रेंस कर सीजेआई पर केस के बंटवारे में मनमानी जैसे कई आरोप लगाए थे। इन चार जजों में जस्टिस रंजन गोगोई, जस्टिस मदन लोकुर और जस्टिस कुरियन जोसेफ के अलावा तब सीजेआई के बाद नंबर दो रहे जस्टिस जे. चेलमेश्वर भी शामिल थे।
क्यों दिया था NJAC के पक्ष में फैसला?
बता दें कि जस्टिस चेलमेश्वर सुप्रीम कोर्ट के 5 जजों की उस बेंच का भी हिस्सा थे, जिसने संविधान के आर्टिकल 124A को असंवैधानिक करार दिया था। इसी आर्टिकल में जजों की नियुक्ति नेशनल ज्यूडिशियल अप्वाइंटमेंट्स कमीशन (NJAC) का प्रावधान था। 5 जजों की बेंच में जस्टिस जे. चेलमेश्वर इकलौते जज थे, जो इस फैसले से सहमत नहीं थे।
‘जजों की नियुक्ति में हो सरकार की भूमिका’
जस्टिस चेलमेश्वर कहते हैं कि मुझे नहीं लगता कि मैंने असहमति दर्ज करा कुछ गलत किया था। राम जेठमलानी इकलौते शख्स थे, जिन्होंने संसद में इसके खिलाफ वोट दिया था। मेरा मानना है कि एक लोकतांत्रिक देश में जजों की नियुक्ति में चुनी गई सरकार की भी भूमिका होनी चाहिए।
जस्टिस चेलमेश्वर कहते हैं कि मैं इस बात को समझ नहीं पा रहा हूं कि आखिर एक लोकतांत्रिक देश में चुनी गई सरकार की जजों की नियुक्ति में कोई भूमिका क्यों नहीं होनी चाहिए? उन्हें (सरकार को) यह कहना कि आपका रोल नहीं है, मैं इस बात से कतई सहमत नहीं हूं।
क्यों कॉलेजियम में नहीं हुए थे शामिल?
जस्टिस चेलमेश्वर ने कॉलेजियम की मीटिंग में शामिल होने से भी इनकार कर दिया था। यह संभवत पहली बार था जब सुप्रीम कोर्ट के किसी वरिष्ठ जज ने कॉलेजियम का हिस्सा बनने से मना किया। जस्टिस चेलमेश्वर कहते हैं, ‘देखिए…आप कोई सिफारिश करते हैं, इस पर कोई कार्यवाही नहीं होती और आखिरकार उसे वापस लेना पड़ता है। यह किस बात की तरफ इशारा करता है? यही कि पूरे प्रोसेस में कहीं ना कहीं कुछ गलत है। प्रोसेस ट्रांसपैरेंट होगा तो अकाउंटबिलिटी भी बढ़ेगी।
20 साल से बड़ी बेंच के पास अटके हैं मामले…
जजों के ट्रांसफर के लिए फुल कोर्ट मीटिंग की वकालत करते हुए जस्टिस चेलमेश्वर कहते हैं कि पिछले 75 सालों के दौरान सुप्रीम कोर्ट जैसी संस्था में विरोधाभास उभर कर सामने आया है। कायदे से होना यह चाहिए कि कोई भी कानून बनाते समय सर्वोच्च न्यायालय को एक निकाय की तरह बैठना चाहिए। लेकिन अभी 16-17 डिवीजन बेंच हैं और सब के अलग-अलग विचार हैं। कई बार मामले को 9 जजों की बड़ी बेंच के पास भेजा जाता है। ऐसे कई मामले पिछले 20 सालों से लंबित हैं।
