सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने हाल ही में ट्रायल कोर्ट के जजों को अपने कर्तव्यों की याद दिलाई। सीजेआई ने ट्रायल कोर्ट के जजों से डर के बिना अपने कर्तव्यों को पूरा करने, निष्पक्ष और समय पर न्याय देने का आह्वान किया। उन्होंने कहा कि ट्रायल कोर्ट के जज जमानत न देकर ‘सेफ प्ले’ करते हैं।

मुख्य न्यायाधीश ने बेंगलुरु इंटरनेशनल सेंटर में नेशनल लॉ स्कूल ऑफ इंडिया यूनिवर्सिटी द्वारा आयोजित वार्षिक सम्मेलन में बोलते हुए कहा, “जिन लोगों को निचली अदालतों में जमानत मिलनी चाहिए, उन्हें वहां नहीं मिल रही है जिसके चलते उन्हें हमेशा उच्च न्यायालयों का रुख करना पड़ता है। वहीं, जिन लोगों को उच्च न्यायालयों में जमानत मिलनी चाहिए उन्हें जरूरी नहीं कि जमानत मिल सके जिसके चलते उन्हें सुप्रीम कोर्ट में जाना पड़ाता है। यह देरी उन लोगों की समस्या को बढ़ाती है जिन्हें मनमाने ढंग से गिरफ्तार किया गया है।”

‘जजों को कॉमन सेंस का इस्तेमाल करने की जरूरत’

न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने न्यायाधीशों को कॉमन सेंस का इस्तेमाल करने की जरूरत पर ज़ोर दिया और जनता से डिसीजन मेकर्स पर भरोसा करने का आग्रह किया। उन्होंने निचले स्तर की अदालतों पर भरोसा करने के महत्व पर जोर दिया।

डीवाई चंद्रचूड़ ने यह बातें एक शख्स की टिप्पणी के जवाब में कहीं जिसमें उसने कहा था कि क्या हम ऐसे समाज में रह रहे हैं जहां अधिकारी पहले कार्रवाई करते हैं और बाद में माफी मांगते हैं और अक्सर राजनीतिक रूप से प्रेरित मामलों में कार्यकर्ताओं, शिक्षाविदों, पत्रकारों और राजनेताओं को हिरासत में लिया जाता है।

लोगों को देश के संस्थानों में भरोसा नहीं- सीजेआई

जिसके जवाब में सीजेआई ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट बहुत समय से यह बताने की कोशिश कर रहा है कि ऐसा होने के पीछे कई कारणों में से एक कारण यह भी है कि लोगों को देश के संस्थानों में भरोसा नहीं रह गया है। डीवाई चंद्रचूड़ ने आगे कहा कि मुझे लगता है कि यह बेहद जरूरी है कि हम उन लोगों पर भरोसा करना सीखें, जो कानूनी प्रणाली में निचले स्तर पर आते हैं, जैसे कि ट्रायल कोर्ट। उनके मुताबिक़ ज़्यादातर मामले सुप्रीम कोर्ट में आने ही नहीं चाहिए थे।

हम ट्रायल जजों द्वारा दी जाने वाली किसी भी राहत को संदेह की नजर से देखते हैं- चंद्रचूड़

CJI ने कहा, “हमें ट्रायल कोर्ट को प्रोत्साहित करना होगा कि वे उन लोगों की चिंताओं को सुनें और समझें जो न्याय की मांग कर रहे हैं। दुर्भाग्य से, आज समस्या यह है कि हम ट्रायल जजों द्वारा दी जाने वाली किसी भी राहत को संदेह की नजर से देखते हैं। इसका मतलब है कि ट्रायल जज गंभीर अपराधों जैसे महत्वपूर्ण मुद्दों पर जमानत नहीं देकर सेफ प्ले कर रहे हैं।”

डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा, “जिस कारण से हम जमानत को प्राथमिकता दे रहे हैं उसका कारण पूरे देश में यह संदेश भेजना है कि निर्णय लेने की प्रक्रिया के सबसे शुरुआती स्तर पर मौजूद लोगों को इस बात से डरे बिना अपने कर्तव्यों का पालन करना होगा। उन्हें यह नहीं सोचना होगा कि इससे मेरा करियर खत्म हो जाएगा।”

क्या है जमानत का मतलब

गौरतलब है कि कानून में जमानत का मतलब किसी ऐसे व्यक्ति की जेल से रिहाई है जो मुकदमे के ट्रायल या अपील की प्रतीक्षा कर रहा है। ऐसे व्यक्ति को जमानत के रूप में कुछ राशि जमा करनी होती है जिसे बेल-बांड कहते हैं और जो अदालत द्वारा निर्धारित किया जाता है। आइये जानते हैं भारत में बेल से जुड़े नियम।

जमानतीय अपराधों के लिए जमानत-

सीआरपीसी की धारा 436 के अनुसार अगर अपराध जमानती है, तो आरोपी अधिकार के तौर पर जमानत का हकदार है। उसे पुलिस स्टेशन में या मजिस्ट्रेट न्यायालय के समक्ष जमानत मिल जाती है। ऐसे मामलों में जमानत एक अधिकार है न कि कोई उपकार।

गैर-जमानती अपराधों के लिए जमानत-

धारा 437 दो प्राधिकारियों को इस पर विचार करने का अधिकार देती है कि गैर-जमानती अपराधों के लिए जमानत दी जाये या नहीं। यह अधिकार अदालत और उस पुलिस स्टेशन के एक प्रभारी अधिकारी को मिलते हैं जिसने गैर-जमानती अपराध करने के संदेह में किसी आरोपी को बिना वारंट के गिरफ्तार किया है या हिरासत में लिया है।