Bihar Assembly Elections 2025: बिहार में विधानसभा चुनाव की तैयारियों के बीच ही लोग वोटर लिस्ट के वेरिफिकेशन को लेकर काफी परेशान दिखाई दे रहे हैं। चुनाव आयोग के फैसले के बाद बिहार के तमाम गांवों में लोग यही कहते हैं कि उनके पास सिर्फ आधार कार्ड है और चुनाव आयोग के द्वारा मांगे जा रहे कागजात उन्हें कहां से मिलेंगे?
वोटर लिस्ट के वेरिफिकेशन को लेकर परेशानी झेल रहे लोग मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के गृह जिले नालंदा से लेकर राजद के चीफ लालू प्रसाद यादव के वैशाली और तेजस्वी यादव के राघोपुर तक दिखाई देते हैं। तेजस्वी राघोपुर सीट से ही विधायक हैं।
विपक्ष चुनाव आयोग के इस फैसले के खिलाफ लगातार आवाज उठा रहा है। उसका कहना है कि यह समाज के पिछड़े, दलित, वंचित और कमजोर लोगों को उनके वोट डालने के अधिकार से वंचित करने की साजिश है।
बिहार में वोटर लिस्ट के वेरिफिकेशन पर घमासान
चुनाव आयोग ने मांगा नागरिकता का प्रूफ
चुनाव आयोग के निर्देशों को मुताबिक, वोटर लिस्ट के वेरिफिकेशन का काम 25 जुलाई तक पूरा होना है। मानसून के बीच ही 77 हजार से ज्यादा बूथ लेवल ऑफिसर्स (BLO) को अन्य सरकारी कर्मचारियों और पॉलिटिकल पार्टियों के कार्यकर्ताओं के साथ मिलकर बिहार में 7.8 करोड़ से ज्यादा रजिस्टर्ड मतदाताओं के रिकॉर्ड की जांच करनी है। एक मुश्किल यह है कि चुनाव आयोग ने सभी नए और मौजूदा मतदाताओं से नागरिकता का प्रूफ मांगा है।
बिहार के गांवों में लोग निवास और जाति प्रमाण पत्र के लिए परेशान हो रहे हैं। जिला मजिस्ट्रेट ने इन सर्टिफिकेट को जल्दी-जल्दी जारी करने के निर्देश दिए हैं। कई लोग इस बारे में नहीं जानते हैं या अभी तक किसी BLO ने उनसे संपर्क नहीं किया है।
मेघन मांझी की परेशानी
ऐसे लोगों में 37 साल के मजदूर मेघन मांझी भी हैं। वह मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के पैतृक गांव कल्याण बिगहा के रहने वाले हैं। उनके पास आधार कार्ड, वोटर कार्ड और मनरेगा जॉब कार्ड है लेकिन अब उन्हें वोट डालने के लिए कुछ और चीजों की भी जरूरत होगी। चुनाव आयोग ने नागरिकता साबित करने के लिए 11 में से किसी एक डॉक्यूमेंट को दिखाने के लिए कहा है लेकिन अनुसूचित जाति से आने वाले मांझी के पास जो तीन डॉक्यूमेंट हैं, उनसे वह वोट नहीं डाल सकते।
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मांझी जैसे बिहार के वे लोग जिनके नाम 2003 की मतदाता सूची में नहीं थे, उन्हें अपनी नागरिकता साबित करने के लिए चुनाव आयोग के द्वारा कहे गए 11 डॉक्यूमेंट्स में से किसी एक को प्रस्तुत करना होगा। मांझी कहते हैं कि BLO ने उनसे कहा कि अगर वह 25 जुलाई से पहले निवासी या जाति प्रमाण पत्र बनवा लें तो उनका मतदाता नामांकन फॉर्म भरा जा सकता है।
जल्दी बनवा लें जाति या निवास प्रमाण पत्र
कल्याण बिगहा गांव में बहुत सारे वोटर BLO पिंकी कुमारी के आसपास इकट्ठा हैं। वह ग्रामीणों को फॉर्म भरने, डॉक्यूमेंट इकट्ठा करने में उनकी मदद कर रही हैं। इस दौरान उनके पास बिहार से बाहर गए और वोटर लिस्ट में रजिस्टर्ड लोगों के फोन भी आते हैं और वह उनके सवालों के जवाब देती हैं।
पिंकी कहती हैं कि 2003 की मतदाता सूची में जो लोग नहीं थे उनके पास कोई ऐसा डॉक्यूमेंट नहीं है जिससे वे वोट डाल सकें इसलिए वह लोगों से जल्दी से जल्दी अपना जाति या निवास प्रमाण पत्र बनाने के लिए कह रही हैं। बिहार के मुख्य निर्वाचन अधिकारी विनोद गुंजियाल द इंडियन एक्सप्रेस से कहते हैं कि अब एक महीने से भी कम का समय रह गया है।
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कल्याण बिगहा में रहने वाले दिहाड़ी मजदूर आशीष ठाकुर कहते हैं कि उनके पिता की मौत 1999 में हो गई थी और वह नहीं जानते कि वह कैसे अपने पिता की पहचान साबित करेंगे।
क्या फिर से वोटर कार्ड बनवाना पड़ेगा?
तेजस्वी यादव के निर्वाचन क्षेत्र राघोपुर में बहुत कम लोग इस बारे में जानते हैं। यहां की रहने वाली बिंदु देवी कहती हैं कि उन्हें 27 मार्च को ही नया वोटर कार्ड मिला है। वह कहती हैं कि उन्होंने ऑनलाइन फॉर्म भरने और अपना वोटर कार्ड बनवाने के लिए एक कंप्यूटर ऑपरेटर को 50 रुपये दिए हैं। बिंदु पूछती हैं कि क्या उन्हें इसे फिर से बनवाना पड़ेगा?
बिंदु कहती हैं कि गांव की महिलाओं के पास जाति या निवास प्रमाण पत्र नहीं है, केवल वे ही लोग जाति प्रमाण पत्र बनाते हैं जो सरकारी नौकरी या किसी कॉलेज की सीट के लिए आवेदन करते हैं। हम लोगों के पास केवल आधार कार्ड है और हमें नहीं पता कि जाति प्रमाण पत्र कैसे बनवाया जाता है।
यादव समुदाय की बस्ती में रहने वाली एक महिला कहती हैं, ‘हमारे पति, बेटे दिल्ली-पंजाब में रहते हैं, मेरे पति नया फॉर्म भरने के लिए वापस नहीं आ सकते क्या वह उनके आने के लिए किराए देंगे?’ इसी तरह बहुत सारे लोग अपनी परेशानी द इंडियन एक्सप्रेस को बताते हैं। राघोपुर में ही यादव बस्ती में रहने वाली योगिता देवी कहती हैं कि यह चुनाव आयोग का गरीबों के वोट काटने का तरीका है। राघोपुर के BLO महेश कुमार ठाकुर कहते हैं कुछ बस्तियां ऐसी हैं जहां किसी के पास कोई डॉक्यूमेंट नहीं है।
चुनाव आयोग के क्या हैं निर्देश?
चुनाव आयोग द्वारा इस संबंध में 24 जून को दिशा निर्देश जारी किए गए थे। चुनाव आयोग कहता है कि जो लोग 2003 की मतदाता सूची में शामिल थे, उस सूची का प्रूफ के रूप में इस्तेमाल कर सकते हैं। जबकि किसी व्यक्ति का नाम 2003 की सूची में नहीं है तो वह अपने माता या पिता का नाम अगर तब की मतदाता सूची में दर्ज है, तो उस सूची का इस्तेमाल कर सकते हैं।
इसका सीधा मतलब यह है कि 40 साल या उससे कम उम्र के सभी वोटरों को (जो 2003 में 18 साल के नहीं थे) अतिरिक्त दस्तावेज देने होंगे। जो लोग यह प्रक्रिया पूरी करेंगे, केवल उन्हीं का नाम 1 अगस्त को प्रकाशित होने वाली मतदाता सूची में शामिल किया जाएगा।
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EC की ओर से जो 11 दस्तावेज तय किए हैं, वे उन लोगों के लिए हैं जो 2003 की मतदाता सूची में नहीं हैं।
जैसे- किसी PSU कर्मचारी या पेंशनभोगी का पहचान पत्र/पेंशन भुगतान आदेश। 1 जुलाई 1987 से पहले सरकार / स्थानीय निकाय / बैंक / डाकघर / LIC / PSU द्वारा जारी कोई भी पहचान पत्र / प्रमाण पत्र / दस्तावेज़। सक्षम प्राधिकारी द्वारा जारी जन्म प्रमाण पत्र। पासपोर्ट, मान्यता प्राप्त बोर्ड / विश्वविद्यालय द्वारा जारी मैट्रिकुलेशन या अन्य शैक्षणिक प्रमाण पत्र, राज्य सरकार द्वारा जारी स्थायी निवास प्रमाण पत्र, वन अधिकार प्रमाण पत्र, OBC / SC / ST या किसी जाति का प्रमाण पत्र, राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (जहां मौजूद हो), पारिवारिक रजिस्टर, जमीन या घर आवंटन प्रमाण पत्र।
RJD के प्रवक्ता मृत्युंजय तिवारी कहते हैं कि उन्हें जो फीडबैक मिला है, उससे पता चलता है कि युवा, गरीब, दलित, जो तेजस्वी यादव के वोटर हैं, उनके लिए सूची में नाम जुड़वाना मुश्किल होगा। JD(U) ने अपने पार्टी कार्यकर्ताओं को लोगों की मदद के काम में लगाया है।
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