हरियाणा में भले ही बीजेपी ने 2019 में सभी 10 लोकसभा सीटें जीती हों, 2014 और 2019 में राज्य में सरकार बनाई हो लेकिन राज्य की एक लोकसभा सीट ऐसी है, जहां पर वह सिर्फ एक बार चुनाव जीत सकी है। यह सीट है सिरसा, जहां बीजेपी को (2019 में) ही जीत मिली थी।
यह सीट कांग्रेस का गढ़ रही है और यहां से कांग्रेस नौ बार जीत चुकी है। 1991 से 2014 तक तो कांग्रेस लगातार यहां से चुनाव जीती लेकिन 2014 में इनेलो के उम्मीदवार चरणजीत सिंह रोड़ी जबकि 2019 में बीजेपी की उम्मीदवार सुनीता दुग्गल को सिरसा से जीत मिली थी।
कांग्रेस के दो पूर्व अध्यक्ष आमने-सामने
सिरसा सीट पर चुनावी मुकाबला इसलिए भी रोचक है क्योंकि यहां कांग्रेस के दो पूर्व प्रदेश अध्यक्ष आमने-सामने हैं। कुमारी सैलजा कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ रही हैं तो अशोक तंवर बीजेपी का टिकट लेकर चुनाव मैदान में हैं।

Sirsa Lok Sabha Seat: कौन-कौन पहुंचा संसद
सिरसा से पिछले 17 लोकसभा चुनावों में दस नेता सांसद बने हैं। इस बार कांग्रेस से लड़ रहींं कुमारी सैलजा दो बार सांसद रह चुकी हैं, जबकि भाजपा उम्मीदवार अशोक तंवर कांग्रेस में रहते हुए एक बार सांसद बने हैं। 2004 से यहां कोई नेता लगातार दूसरी बार संसद नहीं जा पाया है। 2024 में भी ऐसा नहीं होगा, क्योंकि मौजूदा सांसद का टिकट कट गया है।
साल | कौन बना सांसद | किस दल को मिली जीत |
1962 | दलजीत सिंह | कांग्रेस |
1967 | चौधरी दलबीर सिंह | कांग्रेस |
1971 | चौधरी दलबीर सिंह | कांग्रेस |
1977 | चौधरी चांद राम | जनता पार्टी |
1980 | चौधरी दलबीर सिंह | कांग्रेस (आई) |
1984 | चौधरी दलबीर सिंह | कांग्रेस |
1988 (उपचुनाव) | हेत राम | लोक दल |
1989 | हेत राम | जनता दल |
1991 | कुमारी सैलजा | कांग्रेस |
1996 | कुमारी सैलजा | कांग्रेस |
1998 | सुशील कुमार इंदौरा | इनेलो |
1999 | सुशील कुमार इंदौरा | इनेलो |
2004 | आत्मा सिंह गिल | कांग्रेस |
2009 | अशोक तंवर | कांग्रेस |
2014 | चरणजीत सिंह रोड़ी | इनेलो |
2019 | सुनीता दुग्गल | बीजेपी |
Ashok Tanwar Sirsa: कई दलों को छोड़कर बीजेपी में आए तंवर
अशोक तंवर सिरसा से 2009 में कांग्रेस के टिकट पर सांसद चुने गए थे। 2014 और 2019 के लोकसभा चुनाव में तंवर चुनाव हार गए थे। 2019 के हरियाणा विधानसभा चुनाव के बाद उन्होंने कांग्रेस छोड़ दी थी। कुछ वक्त वह तृणमूल कांग्रेस और फिर आम आदमी पार्टी में भी रहे।
कुछ महीने पहले ही अशोक तंवर आम आदमी पार्टी छोड़कर बीजेपी में शामिल हो गए थे। तभी से यह माना जा रहा था कि बीजेपी सिरसा सीट से उन्हें चुनाव लड़ा सकती है। पार्टी ने तंवर के सियासी कद को देखते हुए यहां से अपनी मौजूदा सांसद सुनीता दुग्गल का टिकट काटकर तंवर को दे दिया। तंवर युवक कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष भी रहे हैं।

Kumari Selja Congress: 26 साल बाद सिरसा लौटी हैं सैलजा
कुमारी सैलजा के पिता चौधरी दलबीर सिंह कांग्रेस के बड़े नेता थे और उन्होंने सिरसा सीट से कांग्रेस के टिकट पर चार बार लोकसभा का चुनाव जीता था। कुमारी सैलजा खुद 1991 और 1996 में इस सीट से लोकसभा चुनाव जीत चुकी हैं लेकिन 1998 में वह डॉक्टर सुशील इंदौरा से चुनाव हार गई थीं। इसके बाद उन्होंने अंबाला सीट का रुख कर लिया था।
अंबाला से कुमारी सैलजा 2004 और 2009 में कांग्रेस के टिकट पर चुनाव जीत कर लोकसभा पहुंची थीं और उन्हें भारत सरकार में मंत्री भी बनाया गया था। 2019 के लोकसभा चुनाव में उन्हें रतनलाल कटारिया के हाथों हार का सामना करना पड़ा था। अब 26 साल बाद उन्होंने एक बार फिर सिरसा के सियासी रण में ताल ठोकी है।
JJP Ramesh Khatak: जेजेपी से रमेश खटक मैदान में
इनेलो ने सिरसा सीट से संदीप लोट और जेजेपी ने रमेश खटक को टिकट दिया है। रमेश खटक के पक्ष में यह बात जाती है कि वह तीन बार बरोदा विधानसभा सीट से चुनाव जीत चुके हैं। वह जेजेपी की एससी सेल के प्रदेश अध्यक्ष भी हैं। उनके चुनाव मैदान में उतरने से सिरसा का चुनावी मुकाबला त्रिकोणीय हो गया है।
राजनीतिक दलों से मिले आंकड़ों के मुताबिक, सिरसा लोकसभा सीट में 17.5 लाख अनुसूचित जाति, 7 लाख से ज्यादा जाट, 3 लाख जट सिख, पौने दो लाख पंजाबी समुदाय के मतदाता हैं। 1 लाख वैश्य, 50 हजार ओबीसी के साथ ही कंबोज, ब्राह्मण, बिश्नोई, कुम्हार, सैनी, अहीर, गुर्जर मतदाता भी कुछ हद तक प्रभावी हैं।
Sirsa Lok Sabha: जेजेपी ने जीती थी दो विधानसभा सीट
सिरसा लोकसभा सीट में 9 विधानसभा सीटें आती हैं। इन सीटों के नाम- नरवाना (एससी), टोहाना, फतेहाबाद, रतिया (एससी), कालावाली (एससी), डबवाली, रानियां, सिरसा और ऐलनाबाद हैं। 2019 में हुए हरियाणा विधानसभा चुनाव में इनमें से नरवाना (एससी), टोहाना में जेजेपी को, फतेहाबाद, रतिया (एससी) में बीजेपी को, कालावाली (एससी), डबवाली में कांग्रेस को, रानियां में निर्दलीय उम्मीदवार, सिरसा में हरियाणा लोकहित पार्टी और ऐलनाबाद में इनेलो को जीत मिली थी। पहली बार हरियाणा के चुनाव मैदान में उतरी जेजेपी ने पूरे राज्य में 10 और सिरसा लोकसभा सीट की 2 विधानसभा सीटों पर जीत हासिल की थी।

Haryana Congress: हुड्डा विरोधी खेमे की हैं कुमारी सैलजा
हरियाणा कांग्रेस में जबरदस्त गुटबाजी साफ दिखाई देती है। हरियाणा कांग्रेस में दो खेमे हैं। एक खेमे में कुमारी सैलजा, रणदीप सुरजेवाला और किरण चौधरी हैं, इस खेमे को हरियाणा में एसआरके गुट कहा जाता है जबकि दूसरा खेमा पूर्व मुख्यमंत्री और हैवीवेट नेता भूपेंद्र सिंह हुड्डा और प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष उदयभान सिंह का है।
भिवानी-महेंद्रगढ़ सीट से कुमारी सैलजा की बेटी और पूर्व सांसद श्रुति चौधरी को पार्टी ने टिकट नहीं दिया है। इसके अलावा हिसार लोकसभा सीट पर भी भाजपा छोड़कर कांग्रेस में आए बृजेंद्र सिंह को टिकट नहीं मिला है। बृजेंद्र सिंह के पिता चौधरी बीरेंद्र सिंह कांग्रेस के बड़े नेता रहे हैं लेकिन 2014 में वह बीजेपी में चले गए थे। चौधरी बीरेंद्र सिंह और उनके बेटे कुछ दिन पहले ही कांग्रेस में लौटे थे।

हरियाणा कांग्रेस की राजनीति को जानने वालों का कहना है कि टिकट आवंटन में पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा की पसंद को कांग्रेस हाईकमान ने अहमियत दी है।
Haryana Non Jat politics: बीजेपी ने खेला गैर जाट कार्ड
हरियाणा में 6 महीने बाद विधानसभा के चुनाव भी होने हैं और विधानसभा चुनाव में जीत हासिल करने के लिए बीजेपी ने एक बार फिर गैर जाट कार्ड खेलते हुए गैर जाट समुदाय से आने वाले नायब सिंह सैनी को मुख्यमंत्री बनाया है। 2014 में जब हरियाणा में पहली बार बीजेपी की सरकार बनी थी तब भी पार्टी ने गैर जाट समुदाय से आने वाले मनोहर लाल खट्टर को मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठाया था।
हरियाणा की 10 लोकसभा सीटों पर कुल 297 उम्मीदवार चुनाव मैदान में हैं और सभी सीटों पर 25 मई को वोटिंग होगी। हरियाणा के प्रमुख उम्मीदवारों की बात करें तो करनाल सीट से पूर्व मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर, हिसार से पूर्व केंद्रीय मंत्री और कांग्रेस उम्मीदवार जयप्रकाश, फरीदाबाद से केंद्रीय मंत्री कृष्ण पाल गुर्जर, रोहतक से राज्यसभा सांसद दीपेंद्र सिंह हुड्डा चुनाव लड़ रहे हैं। नाम वापसी का अंतिम दिन 9 मई है।
