पाकिस्तान में ट्रकों पर कलाकारी को लेकर हमेशा से एक अलग क्रेज रहा है। यहां की ट्रकों पर एक से एक चित्रकारी की जाती रही है, लेकिन हाल के दिनों में यहां पंजाबी सिंगर और दिवंगत कांग्रेस नेता सिद्धू मूसेवाला को लेकर क्रेज देखा जा रहा है। उनकी हत्या के बाद यहां के ट्रक मूसेवाला की पेंटिंग से सजी दिख रही हैं।

क्या है ट्रक आर्ट- पाकिस्तान में ट्रक आर्ट के जरिए लोग अपने मनपसंद हीरो के प्रति अपनी भावनाओं को दर्शाते रहे हैं। यहां फिल्मी हीरो से लेकर राजनीतिक नेताओं तक यहां तक कि बॉलीवुड के कलाकारों को भी जगह मिलती रही है। पेशावर के पेंटर हाजी नाज बताते हैं कि एक ट्रक पर जो आर्ट बनाया जाता है, वो प्रेम को दर्शाता है। नाज पिछले पांच दशकों से ट्रकों पर पेंटिंग बना रहे हैं।

नाज बताते हैं- “अपने करियर में, मैंने हजारों ट्रकों को पेंट किया है। वर्षों से लोगों के पसंदीदा में जनरल अयूब खान, जनरल राहील शरीफ, कवि अल्लामा इकबाल और हाल ही में इमरान खान का नाम भी शामिल है। पाकिस्तानी म्यूजिक उद्योग से, गायक अताउल्लाह खान इशाखेल्वी और नुसरत फतेह अली खान के चित्रों को व्यापक रूप से बनाया जाता रहा है। हमसे जनरल अयूब खान और यहां तक ​​​​कि स्वतंत्रता सेनानी अब्दुल गफ्फार खान को चित्रित करने की मांग की जाती रही है। महिलाओं में, बेनजीर भुट्टो हमेशा पसंदीदा रही हैं।”

pakistan truck art
ट्रक पर पेंटिंग करते कलाकार (फोटो-एक्सप्रेस)

मूसेवाला की पेंटिंग क्यों खास है?– बॉलीवुड अभिनेत्री दिव्या भारती, ऐश्वर्या राय और ममता कुलकर्णी उन कुछ भारतीयों में शामिल हैं, जिनकी तस्वीरें अब भी पाकिस्तान में ट्रकों पर पेंट की जाती हैं। नाज़ कहते हैं- “मूसेवाला शायद पहले भारतीय पगड़ीधारी सिख हैं, जिन्हें यह स्थान दिया गया है।”

पाकिस्तान में मूसेवाला की लोकप्रियता के बारे में, रावलपिंडी के एक ट्रक कलाकार के बेटे, रिजवान मुगल ने कहते हैं कि उनकी विनम्रता और जीवन में संघर्ष के कारण यहां के लोग उनसे जुड़ते रहे हैं। उनके गाने असल जिंदगी के काफी करीब थे। यहां पंजाबी गानों का जबरदस्त क्रेज है। मारे जाने से पहले, मूसेवाला ने अपने प्रशंसकों को लाहौर और इस्लामाबाद में लाइव शो के साथ पाकिस्तान का दौरा करने का भी वादा किया था।

कब से शुरू हुआ ट्रक आर्ट- पेशावर और कराची में ट्रक आर्ट की शुरुआत 1950 के दशक में ट्रक ड्राइवरों की डिमांड्स के बाद शुरू की गई थी। जो अपने ट्रकों को अच्छा दिखाना चाहते थे। धीरे-धीरे इसकी ख्याति अंतरराष्ट्रीय स्तर पर होने लगी। 2019 में, यूनेस्को ने पाकिस्तान के कोहिस्तान जिले में लड़कियों की शिक्षा पर जागरूकता पैदा करने के लिए इस आर्ट का इस्तेमाल किया था।

कठिन थी राह- शुरुआत में इस आर्ट का बहुत मजाक बनाया गया था। एजाज उल्लाह मुगल, जिनके पिता स्वर्गीय हबीब 1956 में रावलपिंडी में उन पहले ट्रक कलाकारों में से एक थे जो ट्रकों पर पेंटिंग किया करते थे। वो बताते हैं कि कैसे उस समय पाकिस्तान नेशनल काउंसिल ऑफ आर्ट्स (PNCA) के अधिकारी ट्रक आर्ट का मजाक बनाते थे। उन्होंने कहा- “यह 1952 के आसपास था जब कुछ स्थानीय कलाकारों ने ट्रकों, नंबर प्लेटों को पेंट करना और उन्हें सजाने के लिए लकड़ी की नक्काशी का काम करना शुरू कर दिया था। यह एक स्थानीय कला का रूप था, जिसने दुनिया भर का ध्यान आकर्षित किया। यह उन विदेशियों के बीच लोकप्रिय हो गया जो अपने पुराने वाहनों को सजाने के लिए पाकिस्तान आते थे। बेडफोर्ड ट्रकों का निर्माण उसकी यूके की कंपनी द्वारा बहुत पहले रोक दिया गया था, लेकिन पाकिस्तान में, वे अभी भी काम करते हैं और ट्रक आर्ट के कारण बिल्कुल नए दिखते हैं।”

लोग अब भी अपने ट्रकों को रंगने के लिए पाकिस्तान की मुद्रा में 1 लाख से 20 लाख रुपये खर्च करने के लिए तैयार रहते हैं, लेकिन कला का यह रूप धीरे-धीरे खत्म हो रहा है। कई कलाकार इस पेशे को छोड़ चुके हैं। रावलपिंडी के ट्रक कलाकार तारिक उस्ताद, जो 1971 से इस पेशे में हैं, कहते हैं कि ट्रक आर्ट समय के साथ अधिक जटिल हो गई है। उन्होंने कहा- “”जब हमने शुरुआत की थी तो यह बहुत आसान था। पहले हम एक दिन में पांच ट्रक और अब पांच दिन में एक ट्रक पूरा करते है।”

एक अन्य ट्रक कलाकार बहार अली कहते हैं- “पंजाब और पाकिस्तान में खैबर पख्तूनख्वा के कुछ इलाकों में ट्रक आर्ट अभी भी दिखाई देता है क्योंकि यहां के लोग ट्रक चलाने के शौकीन हैं। इस मरती हुई विरासत को बचाने के लिए प्रयास करने की आवश्यकता है। हमारा काम तो हर ट्रक को दुल्हन की तरह सजाना है ताकि सब नजरें उसी पर टिकी रही।”