22 जनवरी को अयोध्या के राम मंदिर में होने वाली प्राण प्रतिष्ठा से पहले नेताओं की बयानबाजी सुर्खियों में है। समाजवादी पार्टी के दिग्गज नेता और दिवंगत पूर्व मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव के भाई शिवपाल सिंह यादव ने कहा है कि कारसेवकों पर गोली चलाना सही कदम था।
मीडिया से बात करते हुए शिवपाल यादव ने कहा है, “कारसेवकों ने आदेश का उल्लंघन किया था। कोर्ट ने यथास्थिति बनाए रखने का आदेश दिया था। संविधान की रक्षा के लिए गोली चली थी। कोर्ट के आदेश का पालन किया गया था।”
शिवपाल से पहले सपा नेता स्वामी प्रसाद मौर्य ने कारसेवकों को अराजक तत्व बताते हुए कहा था, “तत्कालीन सरकार ने संविधान और कानून की रक्षा के लिए गोली चलवाई थी। वह सरकार का अपना कर्तव्य था। उन्होंने अपना कर्तव्य निभाया था।”
यहां हम अयोध्या में हुए गोलीकांड के बारे में विस्तार से जानेंगे:
1990 में 30 अक्टूबर और 2 नवंबर को कारसेवकों पर हुई थी फायरिंंग
30 अक्टूबर, 1990 को कारसेवकों ने बाबरी मस्जिद की ओर मार्च करने की कोशिश की। राज्य सरकार ने कर्फ्यू लगाया था। ऐसे में कारसेवकों और पुलिस के बीच झड़प हुई। कारसेवा के आयोजक – विहिप, आरएसएस और भाजपा – विवादित भूमि पर राम मंदिर चाहते थे, लेकिन यह अभी तक स्पष्ट नहीं था कि कारसेवक मस्जिद के साथ क्या करेंगे।
30 अक्टूबर की सुबह पुलिस ने बाबरी मस्जिद तक जाने वाले करीब 1.5 किमी लंबे रास्ते पर बैरिकेडिंग कर दी थी। अयोध्या अभूतपूर्व सुरक्षा घेरे में थी। फिर भी साधुओं और कारसेवकों ने ढांचे की ओर मार्च किया। कोठारी बंधुओं ने बाबरी मस्जिद के ऊपर भगवा झंडा फहरा दिया।
दोपहर तक पुलिस को तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव से कारसेवकों पर गोली चलाने का आदेश मिला। फायरिंग से अफरा-तफरी और भगदड़ मच गई। पुलिस ने अयोध्या की सड़कों पर कारसेवकों को खदेड़ना शुरू कर दिया।
लेकिन कहानी यहीं खत्म नहीं हुई। झड़प का एक और दौर बाकी था, जो 2 नवंबर को शुरू हुआ। जब कारसेवक वापस आये और एक अलग रणनीति अपनाते हुए बाबरी की ओर फिर से मार्च शुरू कर दिया।
इंडिया टुडे की एक रिपोर्ट के मुताबिक, इस बार कारसेवकों में महिलाएं और बुजुर्ग भी शामिल थे, सुरक्षाकर्मियों के पैर छूते थे। ये सुरक्षाकर्मी कारसेवकों को आगे नहीं बढ़ने देने के लिए तैनात किए गए थे। कारसेवकों के पैर छूने के हाव-भाव से सुरक्षाकर्मी दंग रह गए। सुरक्षाकर्मी थोड़ा पीछे हटे और कारसेवक अपनी हरकत दोहराने के लिए आगे बढ़ गए। सुरक्षाकर्मियों ने इस रणनीति को देखा और उन्हें चेतावनी दी। लेकिन कारसेवक नहीं माने। सुरक्षा बलों ने जवाबी कार्रवाई करते हुए तीन दिन में दूसरी बार गोलीबारी की।
झड़पों में कई लोग मारे गए। आधिकारिक रिकॉर्ड में 17 मौतें दिखाई गईं लेकिन भाजपा ने मरने वालों की संख्या अधिक बताई। मृतकों में कोलकाता के कोठारी भाई – राम और शरद – भी शामिल थे। उन्हें 30 अक्टूबर को बाबरी मस्जिद के ऊपर भगवा झंडा थामे देखा गया था। उनके शव दो नवंबर को हनुमान गढ़ी मंदिर के पास एक गली में पाए गए, जो राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद स्थल के आसपास है।
आडवाणी की रथयात्रा का अंतिम पड़ाव थी अयोध्या, पर लालू ने करवा दिया था गिरफ्तार
भाजपा के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी वातानुकूलित टोयोटा कार को रथ का रूप देकर 25 सितंबर, 1990 को गुजरात के सोमनाथ से निकले थे। रथ यात्रा को लेकर जो योजना बनाई गई थी, उसके मुताबिक, आडवाणी को कई राज्यों से होकर गुजरते हुए 30 सितंबर 1990 को अयोध्या पहुंचकर कारसेवा करनी थी।
आडवाणी के लिए कारसेवा क्या थी, इसे उनके एक भाषण से समझा जा सकता है, जो उन्होंने रथ यात्रा के दौरान दी थी, “लोग कहते हैं कि आप अदालत का फैसला क्यों नहीं मानते? क्या अदालत इस बात का फैसला करेगी कि यहां पर राम का जन्म हुआ था या नहीं? आप से तो इतनी ही आशा है कि बीच में मत पड़ो, रास्ते में मत आओ, क्योंकि ये जो रथ है, लोक रथ है, जनता का रथ है, जो सोमनाथ से चला है और जिसने मन में संकल्प किया हुआ है कि 30 अक्टूबर (1990) को वहां पर पहुंचकर कारसेवा करेंगे और मंदिर वहीं बनाएंगे। उसको कौन रोकेगा? कौन सी सरकार रोकने वाली है? यह मामला ऐसा है, जिसका समय पर सही निर्णय ले लेना चाहिए। मेरे साथ एक बार जोर से कहिए सियावर रामचंद्र की जय”
हालांकि आडवाणी अयोध्या पहुंचते उससे पहले ही उन्हें बिहार में लालू सरकार ने गिरफ्तार करवा दिया था। लेकिन आंदोलन और आडवाणी के समर्थक आगे बढ़ते रहे। उत्तर प्रदेश की मुलायम सरकार की तमाम पाबंदियों के बावजूद 30 अक्टूबर को भारी संख्या में कारसेवक अयोध्या पहुंच गए।
आडवाणी की रथ यात्रा का विरोध करते मुलायम यादव ने कहा था, “उन्हें अयोध्या में घुसने की कोशिश करने दीजिए। हम उन्हें कानून का मतलब सिखाएंगे। कोई मस्जिद नहीं तोड़ी जाएगी।”
30 अक्टूबर, 1990 को विश्व हिंदू परिषद, भाजपा, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) जैसे अनेक हिंदुत्ववादी संगठनों के आह्वान पर विवादित राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद स्थल (अब जमीन का फैसला हो चुका है, जिसके परिणामस्वरूप मंदिर निर्माण का काम चल रहा है) पर मंदिर निर्माण के लिए देश भर से एक लाख कार सेवक अयोध्या में एकत्र हुए थे।
मुलायम खुद भी अपने फैसले का करते रहे बचाव
साल 2017 में अपने जन्मदिन (22 नवंबर) के मौके पर मुलायम सिंह यादव ने 1990 में अयोध्या की ओर मार्च कर रहे कार सेवकों पर गोली चलाने के अपने आदेश को सही ठहराते हुए कहा था, “अगर देश की एकता और अखंडता के लिए और भी लोगों को मारने की जरूरत होती, तो सुरक्षा बल ऐसा करते।” हालांकि, कुछ मौकों पर उन्होंने यह भी कहा था कि फायरिंंग का आदेश देना अफसोसनाक था, लेकिन यह देश की एकता और मुसलमानों का भरोसा बनाए रखने के लिए जरूरी था।
यादव ने कहा था, “अटल बिहारी वाजपेयी से चर्चा के दौरान उन्होंने कहा था कि अयोध्या में 56 लोगों की हत्या हुई थी। मेरी उनसे बहस हुई। हकीकत में 28 लोग मारे गये थे। मुझे छह महीने बाद टोल का पता चला और मैंने अपने तरीके से उनकी मदद की।”