हाल ही में विपक्षी नेताओं के साथ एक बैठक में कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने तृणमूल कांग्रेस के नेताओं का स्वागत किया। ध्यान देने वाली बात यह है कि टीएमसी पहले ऐसी बैठकों से दूर रहा करती थी। इस बैठक में टीएमसी का साथ तो मिला लेकिन जद (यू) नेता राजीव रंजन सिंह उर्फ ललन सिंह ने तीखी टिप्पणी की। जद (यू) बैठक से दूर रही। दूसरी तरफ सावरकर पर राहुल गांधी की टिप्पणी के कारण उद्धव सेना भी बैठक से दूर रही।
शरद पवार ने की सावरकर की तारीफ
विपक्षी नेताओं की बैठक में शरद पवार सावरकर के भाषणों से लैस बैठक में आए थे। उन्होंने गाय, अस्पृश्यता और धर्म जैसे मुद्दों पर हिंदुत्व विचारक सावरकर के प्रगतिशील विचारों को दर्शाने के लिए कुछ अंश पढ़े। सोनिया गांधी ने राहुल की टिप्पणी का बचाव करने की कोशिश की। उन्होंने याद दिलाया की कांग्रेस हमेशा कट्टर हिंदुत्व की विरोधी रही है।
राहुल गांधी का क्या रिएक्शन था?
बैठक में सावरकर के सवाल पर राहुल गांधी ने कहा कि उनका इस मुद्दे पर विचार स्पष्ट है। यानी उन्होंने सावरकर को लेकर पहले जो कहा वह उस पर अब भी कायम हैं। हालांकि सभी पक्षों के दबाव में उन्होंने संकेत दिया कि विपक्षी एकता के व्यापक हित में वह भविष्य में सावरकर पर कोई बयान नहीं देंगे।
पवार ने रखी मांग
पवार ने उद्धव ठाकरे को कांग्रेस से जोड़ने की भी मांग की, ताकि राहुल अपनी टिप्पणी की गंभीरता को समझ सकें। सावरकर के “अपमान” पर क्षेत्रीय भावनाओं को भड़काने के लिए शिवसेना (एकनाथ शिंदे गुट) और भाजपा रैलियां आयोजित करने में व्यस्त हैं। कहा जाता है कि उद्धव सेना और एनसीपी उम्मीद कर रहे हैं कि राहुल कुछ समय के लिए राज्य से दूर रहें ताकि उनका समय फायर-फाइटिंग में न खर्च हो।
कांग्रेस में पांच दिन क्या चलता रहा?
सूरत की एक अदालत द्वारा दो साल की जेल की सजा सुनाए जाने के बाद राहुल को लोकसभा से अचानक अयोग्य ठहरा दिया गया। इसके बाद हैरान कांग्रेस समर्थकों और वकीलों ने सवाल किया कि फैसले के पांच दिन बाद भी कोई अपील दायर क्यों नहीं की गई। पार्टी के एक वरिष्ठ नेता ने कहा कि वे गुजराती फैसले के अंग्रेजी अनुवाद का इंतजार कर रहे हैं। एक नौजवान ने यह कहते हुए मजाक किया कि वह अनुवादक को 25,000 रुपये देकर आदेश का अनुवाद दो घंटे में करवा सकता है। आज इंटरनेट पर गूगल अनुवाद भी उपलब्ध हैं।
दरअसल, देरी का असली कारण हिचकिचाहट था, तुरंत अपील दायर की जाए या नहीं। टीम राहुल के कुछ लोग चाहते थे कि वह पहले लोकतंत्र के लिए लड़ते हुए शहीद के रूप में उभरें। पार्टी के शीर्ष कानूनी जानकारों द्वारा इस ओर इशारा किए जाने के बाद ही कि इस फैसले का राहुल और पार्टी दोनों के लिए गंभीर दीर्घकालिक प्रभाव हो सकता है, कांग्रेस हरकत में आई।