राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (NCP) के राष्ट्रीय अध्यक्ष शरद पवार 83 वर्ष के हो गए हैं। उनका जन्म 12 दिसंबर, 1940 को हुआ था। दिलचस्प है कि शरद पवार की मां का जन्म भी साल 1911 में 12 दिसंबर को ही हुआ था।
पवार के पिता का नाम गोविंद राव था। वह नीरा कैनाल कोऑपरेटिव सोसाइटी (बारामती) में एक वरिष्ठ अधिकारी थे। उन्हें अपने प्रगतिशील विचारों और ईमांदारी के लिए जाना जाता था। मां शारदा बाई, वामपंथी विचारों वाली तेज-तर्रार राजनीतिक और सामाजिक कार्यकर्ता थीं। वह पुणे लोकल बोर्ड में निर्वार्चित होने वाली पहली महिला थीं।
सख्त मिज़ाज के थे पिता
राजकमल से प्रकाशित अपनी आत्मकथा ‘अपनी शर्तों पर’ में शरद पवार ने बताया है कि उनके पिता एक अनुशासनप्रिय व्यक्ति थे। वह अपने डेली रूटीन का सख्ती से पालन करते थे। वह 4 बजे सवेरे उठ जाते और 6 बजे तक दिन-भर के कार्यों के लिए तैयार हो जाते। अखबार पढ़ने के बाद वह घर से निकल जाते और शाम 6:30 तक वापस आते और भोजन आदि के बाद 8 बजे तक वह सोने के लिए बिस्तर पर लेट जाते। वह बहुत कम बोलते थे।
पवार खुद लिखते हैं कि पिता के कठोर अनुशासनात्मक व्यवहार के कारण बच्चे उनसे दूर ही रहते थे। पवार लिखते हैं, “जब कभी हम लोग कोई गलती करते या पढ़ाई में अच्छा परिणाम नहीं लाते तो हम लोग उनसे दूर-दूर रहते। पढ़ाई के मामले में मेरा रिकॉर्ड बहुत अच्छा नहीं था। पिताजी से मासिक रिपोर्ट कार्ड पर दस्तखत करवाने का मतलब मुसीबत मोल लेना था लेकिन मां से हस्ताक्षर कराना आसान था इसलिए मैं हमेशा मां से ही हस्ताक्षर करवाता।”
तीन दिन के शरद पवार को लेकर लोकल बोर्ड की मीटिंग में पहुंच गई थीं शारदा बाई
गोविंद राव और शारदा बाई को कुल 12 बच्चे हुए, सात बेटा और चार बेटी। शरद पवार अपनी मां-बाप की नौवीं संतान थे। उनके जन्म के तीसरे ही दिन यानी 15 दिसम्बर, 1940 को शारदा बाई को पुणे के लोकल बोर्ड की एक मीटिंग में शामिल होना था। वह उस बोर्ड की सदस्या थीं और यह मीटिंग बोर्ड की एक अति आवश्यक मीटिंग थी। हालांकि उन्होंने कुछ घंटे पहले ही एक बेटे को जन्म दिया था। बावजूद इसके उन्होंने मीटिंग में शामिल होने की ठानी।
कड़ाके की ठंड, बारामती तहसील के कस्बे से जिला मुख्यालय पुणे तक खचाखच भरी हुई बसों की थकाऊ यात्रा और अन्य परेशानियां का सामना करते हुए जब शारदा बाई अपने तीन दिन के बेटे को गोद में लिये मीटिंग में पहुंचीं तो उनका जोरदार स्वागत हुआ।
शारदा बाई के मीटिंग हॉल में प्रवेश करते ही बोर्ड के चेयरमैन और सम्मानित वामपंथी नेता शंकर राव मोरे ने तालियों की जोरदार गड़गड़ाहट से उनका स्वागत किया। लोगों ने ढेर सारी बधाइयां दीं और मोरे ने प्रसन्नता से उनको गले लगाया। बोर्ड की कार्यवाहियों में शारदा बाई के कार्यों की पहले भी बहुत प्रशंसा होती थी।
राजनीति के शुरुआती दिनों में शरद पवार ने ‘अगवा’ कर लिया था नेता
साल 1958 में पवार कॉलेज में थे, जब उन्होंने पुणे के कांग्रेस भवन में जाकर पार्टी की सक्रिय सदस्यता ली थी। बीएमसीसी कॉलेज में अपनी शिक्षा के अंतिम वर्ष में उन्होंने छात्रों को सम्बोधित करने के लिए वाई. बी. चव्हाण को आमंत्रित किया। पवार के आमंत्रण पर कॉलेज में पहुंचकर उन्होंने एक ओजपूर्ण और उत्साहवर्धक भाषण दिया। कार्यक्रम के बाद चव्हाण ने पवार को पास बुलाया और उन्हें कांग्रेस में सक्रिय रूप से काम करने को कहा। इसके बाद पवार अक्सर पुणे के पार्टी कार्यालय में जाने लगे। उन्हीं दिनों जमीनी राजनीति सीखने के चक्कर में शरद पवार एक नेता के ‘अपहरण’ में शामिल हो गए थे। वह नेता संयुक्त महाराष्ट्र समिति (एसएमएस) का एक सभासद था। नेता के अगवा होने की खबर अखबार में भी छप गई थी। क्या था ये पूरा मामला, जानने के लिए लिंक पर क्लिक करें।