कहते हैं कि शुरुआत अच्छी हो तो आप आधी लड़ाई पहले ही जीत जाते हैं लेकिन बिहार के विधानसभा चुनाव में एनडीए और महागठबंधन की शुरुआत अच्छी नहीं हो पा रही है। यानी चुनावी मैदान में उतरने से पहले जो सबसे जरूरी काम है- सीटों की शेयरिंग, इसे लेकर एनडीए और महागठबंधन के भीतर जबरदस्त रस्साकशी चल रही है।

बिहार में आने वाले कुछ ही दिनों में चुनाव की तारीखों का ऐलान हो सकता है। बड़ा प्रदेश होने और जटिल चुनावी राजनीति होने की वजह से राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि बिहार जैसे राज्य में एनडीए और महागठबंधन के बीच अब तक सीटों का बंटवारा हो जाना चाहिए था।

बिहार में विधानसभा की 243 सीटें हैं। एनडीए में शामिल दलों में- बीजेपी और जेडीयू के बीच सीटों को लेकर बहुत ज्यादा झगड़ा तो नहीं दिखाई देता लेकिन जो छोटे दल हैं, उनकी ख्वाहिशें काफी ज्यादा हैं।

ये छोटे दल हैं – केंद्रीय मंत्री जीतन राम मांझी की पार्टी हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा (सेकुलर), केंद्रीय मंत्री चिराग पासवान की पार्टी लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास), उपेंद्र कुशवाहा की पार्टी राष्ट्रीय लोक मोर्चा, इन दलों के बीच भी एनडीए को सीटों का बंटवारा करना है।

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सीएम के चेहरे के मामले में आगे है एनडीए

एनडीए एक मामले में महागठबंधन से आगे दिखाई देता है। वह यह कि सीएम के चेहरे को लेकर उसका स्टैंड साफ है। जेडीयू ही नहीं बीजेपी के नेता भी साफ कर चुके हैं कि बिहार में एनडीए की सरकार बनी तो नीतीश कुमार ही फिर से मुख्यमंत्री होंगे जबकि महागठबंधन में तस्वीर पूरी तरह धुंधली है।

चलिए फिर से लौटते हैं सीट बंटवारे की बात पर।

बराबर सीटों पर चुनाव लड़ सकते हैं बीजेपी और जेडीयू

एनडीए में बीजेपी और जेडीयू लगभग बराबर सीटों पर चुनाव लड़ेंगे। एक-दो सीटें जेडीयू को ज्यादा मिल सकती हैं। इसके बाद चिराग पासवान, जीतन राम मांझी और उपेंद्र कुशवाहा की पार्टी को बिहार में उनकी सियासी हैसियत के हिसाब से ही सीटें दी जाएंगी।

ऐसी भी खबरें आई थी कि चिराग पासवान 40 सीटों पर चुनाव लड़ना चाहते हैं लेकिन बिहार से आ रही राजनीतिक खबरों के मुताबिक, चिराग पासवान को एनडीए में लगभग 20 सीटें मिल सकती हैं। 2020 के विधानसभा चुनाव में चिराग पासवान के अलग होकर चुनाव लड़ने की वजह से जेडीयू को अच्छा-खासा नुकसान हुआ था। ऐसे में बीजेपी और जेडीयू इस बार शायद ऐसी गलती नहीं करेंगे। मतलब यह कि वे चिराग को नाराज नहीं करेंगे।

इसके बाद जीतन राम मांझी का नंबर है। मांझी 15 से 20 सीटें चाहते हैं और वह यहां तक कह चुके हैं कि अगर उन्हें इतनी सीटें नहीं मिली तो उनकी पार्टी बिहार के विधानसभा चुनाव में 100 सीटों पर चुनाव लड़ने के लिए तैयार है।

उपेंद्र कुशवाहा की पार्टी के नेता कहते हैं कि उन्हें कम से कम 10 सीटें मिलनी चाहिए। लेकिन ऐसा लगता है कि चिराग को 25-30, मांझी को 6-7 और कुशवाहा को 5-6 सीटों पर लड़ने के लिए बीजेपी और जेडीयू मना लेंगे।

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कांग्रेस की वजह से हुआ था नुकसान

अब करते हैं महागठबंधन की बात। महागठबंधन में सीट बंटवारे में सबसे ज्यादा चर्चा कांग्रेस की है। पिछले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को बंटवारे में 70 सीटें मिली थी लेकिन वह सिर्फ 19 सीटों पर जीत दर्ज कर सकी और यह माना जाता है कि इसी वजह से तेजस्वी यादव मुख्यमंत्री बनने से चूक गए क्योंकि तब एनडीए और महागठबंधन के बीच सीटों का फासला बहुत ज्यादा नहीं था।

एनडीए को 125 और महागठबंधन को 110 सीटें मिली थी। बिहार में सरकार बनाने के लिए 122 सीटें चाहिए इस लिहाज से एनडीए को कमजोर बहुमत मिला था।

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सहनी, पारस और सोरेन भी मांग रहे सीटें

इस बार महागठबंधन में सीट बंटवारा इसलिए भी जटिल होगा क्योंकि मुकेश सहनी की विकासशील इंसान पार्टी (वीआईपी), पूर्व केंद्रीय मंत्री पशुपति पारस की राष्ट्रीय लोक जनशक्ति पार्टी और झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की झारखंड मुक्ति मोर्चा को भी महागठबंधन में सीटें दी जानी हैं। वाम दल तो पहले से ही महागठबंधन में शामिल हैं।

ऐसे में राजद और कांग्रेस को अपने हिस्से में से कुछ सीटें इन दलों को देनी ही पड़ेंगी। राजद और कांग्रेस जानते हैं कि सभी दलों के साथ मिलकर चुनाव लड़ने से ही महागठबंधन एनडीए का मुकाबला कर पाएगा। इसके अलावा वाम दलों को भी महागठबंधन की ओर से सीटें दी जानी हैं।

राजद-कांग्रेस कम सीटों पर लड़ेंगे?

पिछले चुनाव में राजद 144 सीटों पर लड़ी थी और कांग्रेस 70 पर लेकिन इस बार ऐसा होना मुश्किल है। राजद और कांग्रेस अपनी लगभग 10-10 सीटें घटाकर पशुपति पारस, हेमंत सोरेन और मुकेश सहनी को देंगे। वाम दल पिछली बार 29 सीटों पर लड़े थे, शायद इस बार उन्हें भी कुछ सीटों पर समझौता करना पड़ सकता है।

देखना होगा कि क्या चुनाव की तारीखों का ऐलान होने से पहले एनडीए और महागठबंधन सीटों के बटंवारे के मामले में किसी नतीजे पर पहुंच पाएंगे?

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