आपातकाल के बाद 1977 में हुए लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को बुरी हार का सामना करना पड़ा। इंदिरा गांधी (Indira Gandhi) को अपनी सीट गंवानी पड़ी। संजय गांधी (Sanjay Gandhi) भी चुनाव हार गए। मोरारजी देसाई की अगुवाई में देश में पहली बार गैर कांग्रेसी सरकार बनी। जनता पार्टी की सरकार बनते ही इंदिरा और संजय के खिलाफ कार्रवाई की मांग भी तेज हो गई।

ओल्ड मॉन्क बनाने वाली कंपनी के गेस्ट हाउस में रुके संजय

द इंडियन एक्सप्रेस की कंट्रीब्यूटिंग एडिटर नीरजा चौधरी अपनी किताब ‘हाउ प्राइम मिनिस्टर्स डिसाइड’ में लिखती हैं कि चुनाव में हार के बाद इंदिरा गांधी को अपने परिवार की सुरक्षा की चिंता सताने लगी। खासकर संजय गांधी की, जिन्हें इमरजेंसी के खलनायक के तौर पर पेश किया जा रहा था। इंदिरा के करीबी लगातार संजय गांधी को दिल्ली से दूर भेजने की सलाह दे रहे थे, जिसमें दिग्गज उद्योगपति कपिल मोहन भी शामिल थे। जिनकी कंपनी मोहन मेकिन इंडस्ट्रीज तब दुनिया भर में ओल्ड मॉन्क रम बनाने के लिए पहचानी जाती थी।

जून 1977 आते-आते इंदिरा गांधी ने कपिल मोहन की सलाह मान ली और संजय गांधी को लोगों की नजरों से दूर हिमाचल प्रदेश के सोलन में मोहन मेकिन कंपनी के गेस्ट हाउस में भेजने का फैसला ले लिया। संजय गांधी के साथ कपिल मोहन के भतीजे अनिल बाली भी सोलन गए। नीरजा चौधरी लिखती है कि 31 साल के संजय गांधी को शाकाहारी खानपान पसंद था।

सोलन में संजय गांधी के लिए खास तौर से मशरूम, तमाम तरह की सब्जियां, फल और दूध की व्यवस्था की गई। कभी कभार वह कोई किताब उठा लिया करते थे या पियानो बजाने का प्रयास करते थे। लेकिन वहां उनका मन लग नहीं रहा था।

मंकी कैप लगाकर बाहर निकला करते थे संजय गांधी

संजय गांधी कभी-कभार सोलन में गेस्ट हाउस से बाहर वॉक करने के लिए निकला करते थे। जब वह बाहर जाने लगते तो अनिल बाली उनकी सुरक्षा को लेकर चिंतित हो जाते और उन्हें मंकी कैप पहना दिया करते थे। ताकि बाहर कोई पहचान ना पाए।

जब भीड़ ने संजय गांधी को घेर लिया

सोलन में 16 दिन बिताने के बाद संजय गांधी का सब्र जवाब दे गया और दिल्ली लौटने का फैसला ले लिया। एक दिन खुद अपनी कार उठाई और दिल्ली के लिए चल पड़े। अनिल बाली भी उनके पीछे दूसरी कार में रवाना हुए। कालका में संजय गांधी की कार अचानक बंद हो गई। कई बार कोशिश करने के बाद भी जब कार स्टार्ट नहीं हुई तो संजय गाड़ी से बाहर निकल आए। इसी दौरान लोगों ने उन्हें पहचान लिया और आसपास भीड़ इकट्ठा होने लगी।

मारने को तैयार हो गई थी भीड़

चौधरी लिखती हैं कि लोग संजय गांधी के खिलाफ नारे लगाने लगे और आक्रोशित हो गए। बकौल अनिल बाली, ‘लोग संजय गांधी को मारने के लिए तैयार हो गए थे… मैंने किसी तरह संजय को वहां से खींचकर अपनी कार में बैठाया और तेजी से निकल गया’।