तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन के बेटे और राज्य सरकार में मंत्री उदयनिधि स्टालिन द्वारा सनातन धर्म को लेकर दिए गए बनाय से शुरू हुआ विवाद अब सुप्रीम कोर्ट में पहुंच चुका है। डीएमके नेता उदयनिधि स्टालिन के खिलाफ 262 शख्सियतों ने सुप्रीम कोर्ट को चिट्ठी लिखकर, हस्तक्षेप करने की मांग की है। यानी मामला अब भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ के पास पहुंच गया है। अब सवाल उठता है कि धर्म की आलोचना को लेकर अदालत और विशेषकर डीवाई चंद्रचूड़ की क्या राय है?
धर्म की आलोचना करें लेकिन…
साल 2007 में महाराष्ट्र सरकार ने एडवोकेट आर.वी. भसीन की किताब “इस्लाम: ए कंसेप्ट ऑफ़ पॉलिटिकल वर्ल्ड इन्वेज़न बाय मुस्लिम्स” पर प्रतिबंध लगा दिया था। लेखक ने सरकार के प्रतिबंध के खिलाफ कानून लड़ाई शुरू की। मामला बॉम्बे हाईकोर्ट पहुंचा। साल 2010 में उच्च न्यायालय ने 150 पेज में फैसला सुनाया। फैसले को जस्टिस रंजन देसाई, जस्टिस आरएस मोहित और जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की बेंच ने लिखा था। तब डीवाई चंद्रचूड़ बॉम्बे हाईकोर्ट में जज हुआ करते थे।
तीन सदस्यीय खंडपीठ ने लिखा, “हमारे संवैधानिक ढांचे में हर किसी की आलोचना की जा सकती है और धर्म अपवाद नहीं है। हिंदू, इस्लाम, ईसाई या किसी अन्य धर्म की आलोचना हो सकती है। लेकिन यह ध्यान रखा जाना चाहिए कि कहीं लेखक ने जानबूझकर नफरत की भावना से तो किसी धर्म की आलोचना नहीं की।” हाईकोर्ट ने भसीन की किताब को मुस्लिमों के खिलाफ अपमानजनक मानकर प्रतिबंध को बरकरार रखा था।
सबरीमाला मंदिर मामले में भी ‘समानता’ पर दिया था जोर
28 सितंबर 2018 को सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने केरल के सबरीमाला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश के मुद्दे पर ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए हर उम्र की महिला को मंदिर में प्रवेश करने की अनुमति दी थी।
‘यंग लॉयर्स एसोसिएशन’ बनाम केरल राज्य मामले में 4-1 बहुमत से सभी उम्र की महिलाओं के प्रवेश के अधिकार के पक्ष में फैसला आया था। सिर्फ जस्टिस मल्होत्रा ने महिलाओं के प्रवेश पर असहमति जताई थी। हालांकि जनवरी 2023 में वह खुद सबरीमाला मंदिर के दर्शन करने पहुंची थीं।
प्रवेश के पक्ष में जस्टिस दीपक मिश्रा, जस्टिस आर एफ नरीमन, जस्टिस ए एम खानविलकर और जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ थे। जस्टिस चंद्रचूड़ की टिप्पणियों पर विशेष रूप से चर्चा हुई क्योंकि उन्होंने धार्मिक मान्यताओं के ऊपर समानता को तरजीह दी थी।
गौतम भाटिया ने अपनी किताब, ‘अनसील्ड कवर्स: ए डिकेड ऑफ द कॉन्स्टिट्यूशन, द कोर्ट्स एंड द स्टेट’ में जस्टिस चंद्रचूड़ की टिप्पणियों को महिलाओं के लिए मौलिक समानता सुनिश्चित करने वाला बताया है।
सबरीमाला मंदिर ट्रस्ट से अनुसार उन्होंने धार्मिक कारणों से 1500 वर्षों से 10-50 साल तक की महिलाओं के प्रवेश पर प्रतिबंध लगा रखा था। लेकिन सर्वोच्च न्यायालय के फैसले ने इस प्रतिबंध को एक झटके में खत्म कर दिया। जबकि 1991 में केरल उच्च न्यायालय ने सबरीमाला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश को वर्जित किए जाने को असंवैधानिक नहीं माना था।
चंद्रचूड़ ने अपने फैसले में कहा कि संविधान के लागू होने से पहले जिन लोगों को जाति या पितृसत्ता आदि के आधार पर मानवाधिकारों से वंचित किया गया, उन्हें अलग तरह से ट्रीट किया जाना चाहिए। भाटिया लिखते हैं कि जाति और पितृसत्ता का संदर्भ महत्वपूर्ण है क्योंकि इससे स्पष्ट होता है कि भेदभाव राज्य के एक्शन या शत्रुतापूर्ण व्यक्तिगत कार्रवाई तक ही सीमित नहीं है। बल्कि यह अलग-अलग संस्थाओं से भी उत्पन्न होता है।
सीजेआई को लिखे पत्र में किया है?
भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ को पत्र लिखने वाले 262 प्रतिष्ठित नागरिकों में 14 जज, 130 ब्यूरोक्रेट्स और सेना के 118 रिटायर्ड अफसर शामिल हैं। पत्र पर हस्ताक्षर करने वालों में से एक दिल्ली उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश एसएन ढींगरा ने कहा है कि स्टालिन ने न केवल नफरत भरा भाषण दिया बल्कि उन्होंने अपने बयान के लिए माफी मांगने से भी इनकार कर दिया है। पत्र में कहा गया है कि देश के धर्मनिरपेक्ष चरित्र को बनाए रखने के लिए कार्रवाई करने की जरूरत है।
उदयनिधि स्टालिन ने असल में क्या कहा था?
स्टालिन पर आरोप है कि उन्होंने सनातन धर्म का अपमान किया है। बीते शुक्रवार को चेन्नई के कामराजार एरिना में ‘सनातन उन्मूलन सम्मेलन’ का आयोजन किया गया था। यह आयोजन मार्क्सवादी पार्टी से जुड़े संगठन तमिलनाडु प्रगतिशील लेखक और कलाकार संघ ने किया था। कार्यक्रम में उदयनिधि स्टालिन ने व्यंग्य चित्रों वाली एक किताब का विमोचन किया। किताब का शीर्षक था ‘भारतीय मुक्ति संग्राम में आरएसएस का योगदान’
बीबीसी हिंदी की एक रिपोर्ट के मुताबिक, उदयनिधि स्टालिन ने अपने संबोधन में कहा, “इस सम्मेलन का नाम बहुत अच्छा है। आपने ‘सनातन विरोधी सम्मेलन’ के बजाय ‘सनातन उन्मूलन सम्मेलन’ का आयोजन किया है। इसके लिए मेरी बधाई। हमें कुछ चीजों को खत्म करना होगा। हम उसका विरोध नहीं कर सकते। हमें मच्छर, डेंगू बुखार, मलेरिया, कोरोना वायरस इत्यादि का विरोध नहीं करना चाहिए। हमें इसका उन्मूलन करना चाहिए। सनातन धर्म भी ऐसा ही है। तो पहली चीज यही है कि हमें इसका विरोध नहीं करना है बल्कि इसका उन्मूलन करना है। सनातन समानता और सामाजिक न्याय के खिलाफ है। इसलिए आप लोगों ने सम्मेलन का शीर्षक अच्छा रखा है। मैं इसकी सराहना करता हूं।”