अमेरिकी सत्ता के गलियारों में अब ‘समोसा समूह’ की सुगंध गहराती जा रही है। कभी हाशिए पर दिखने वाले भारतीय मूल के नेता अब नीतियां गढ़ रहे हैं, फैसलों पर असर डाल रहे हैं और लोकतंत्र के केंद्र में अपनी पहचान मजबूत कर रहे हैं। वर्जीनिया की गजाला हाशमी से लेकर सिनसिनाटी के आफताब पुरवाल तक – भारतीय-अमेरिकी अब अमेरिकी राजनीति में सिर्फ नाम नहीं, प्रभाव बन चुके हैं। अमेरिका में सरकार के सभी स्तरों पर कम से कम 60 ऐसे लोग हैं। आइए, उनमें से कुछ पर करीब से निगाह डालें।

वर्जीनिया में गजाला हाशमी की जीत

भारतीय मूल की डेमोक्रेट गजाला हाशमी चार नवंबर को वर्जीनिया की लेफ्टिनेंट गवर्नर चुनी गईं। 61 वर्षीय हाशमी ने वर्जीनिया सीनेट में पहली मुसलिम और दक्षिण एशियाई महिला बनकर इतिहास रच दिया है। हाशमी ने पूर्व रूढ़िवादी टाक शो होस्ट और राज्य के पहले समलैंगिक उम्मीदवार रिपब्लिकन जान रीड को हराया। हाशमी निर्वाचित होने वाली पहली भारतीय अमेरिकी भी हैं। हाशमी को 54.2 फीसद मत मिले, जबकि रीड को 46.8 फीसद मत मिले।

पांच जुलाई 1964 को हैदराबाद में जन्मी हाशमी चार साल की उम्र में अपने परिवार के साथ अमेरिका के जार्जिया चली गईं। हाशमी साउथ कैरोलिना विश्वविद्यालय से अंतरराष्ट्रीय संबंधों में पीएचडी की और अंतरराष्ट्रीय अध्ययन केंद्र निदेशक के पद से सेवानिवृत्त हुईं। उनके आधिकारिक विवरण में कहा गया है, एक अनुभवी शिक्षक और समावेशी मूल्यों और सामाजिक न्याय की समर्थक के रूप में, उनकी विधायी प्राथमिकताओं में सार्वजनिक शिक्षा, मतदान का अधिकार और लोकतंत्र का संरक्षण, प्रजनन स्वतंत्रता, बंदूक हिंसा की रोकथाम, पर्यावरण, आवास और सस्ती स्वास्थ्य सेवा तक पहुंच शामिल है। हाशमी उन 12 से अधिक भारतीय-अमेरिकी और दक्षिण एशियाई उम्मीदवारों में शामिल हैं जो 2025 के चुनावों में प्रमुख राष्ट्रव्यापी पदों के लिए चुनाव लड़ रहे हैं।

आफताब पुरवाल मेयर के रूप में पुन: निर्वाचित

आफताब पुरवाल सिनसिनाटी के मेयर के रूप में फिर से चुने गए हैं। 43 वर्षीय पुरवाल ने जेडी वेंस के सौतेले भाई कोरी बोमन को हराया, जिन्हें उपराष्ट्रपति का समर्थन प्राप्त था। डेमोक्रेटिक प्राइमरी में 80 फीसद वोट पाने वाले पुरवाल के बारे में कहा जा रहा है कि उन्होंने बोमन को आसानी से हरा दिया। 2021 में इस पद के लिए चुने गए पुरवाल इस पद पर सेवा देने वाले पहले एशियाई-अमेरिकी थे। वे इस पद पर आसीन होने वाले भारतीय और तिब्बती मूल के पहले व्यक्ति भी थे। हालांकि मेयर का पद गैर-पक्षपाती है, पुरवाल डेमोक्रेटिक पार्टी से जुड़े हुए हैं।

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पुरवाल का जन्म नौ सितंबर 1982 को ओहायो में हुआ था। पुरवाल के पिता, देविंदर सिंह पुरवाल, पंजाब से संयुक्त राज्य अमेरिका आए थे, जबकि उनकी मां ड्रेनको एक तिब्बती शरणार्थी हैं। वाशिंगटन डीसी में एसोसिएट अटार्नी के रूप में काम करने से पहले उन्होंने कानून की पढ़ाई की। इसके बाद उन्होंने ओहायो में अमेरिकी न्याय विभाग के लिए विशेष सहायक अमेरिकी अटार्नी के रूप में कार्य किया। उन्होंने प्राक्टर एंड गैंबल में कानूनी सलाहकार के रूप में निजी क्षेत्र में भी काम किया।

सतीश गैरीमेला और दीनी अजमानी

कम से कम दो अन्य भारतीय मूल के राजनेता, सतीश गरिमेला और दीनी अजमानी, क्रमश: उत्तरी कैरोलिना के मारिसविले और न्यू जर्सी के होबोकेन के मेयर पद की दौड़ में थे। गरिमेला इससे पहले उत्तरी कैरोलिना के मारिसविले की नगर परिषद में कार्यरत थे।

इस बीच, अजमानी अमेरिकी ट्रेजरी विभाग की पूर्व अधिकारी हैं। वे रवि भल्ला की जगह लेने की कोशिश में हैं, जो एक भारतीय-अमेरिकी हैं। भल्ला राज्य विधानमंडल के लिए चुनाव लड़ रहे हैं।

भारतीय नाश्ता : हैरिस और अन्य

अभी अमेरिकी प्रतिनिधि सभा में सात भारतीय-अमेरिकी सदस्य कार्यरत हैं, जिन्हें समोसा समूह के नाम से जाना जाता है। लोकप्रिय भारतीय नाश्ते के नाम पर अनौपचारिक ब्लाक का नाम 2017 में इलिनोइस के आठवें जिले से अमेरिकी प्रतिनिधि सभा के सदस्य राजा कृष्णमूर्ति द्वारा गढ़ा गया था। कृष्णमूर्ति से पहले, डेमोक्रेट अमी बेरा 2013 में कैलिफोर्निया के सातवें जिले से चुने गए थे।

बेरा के साथ जल्द ही कैलिफोर्निया के 17वें जिले से कांग्रेसी रो खन्ना भी शामिल हो गए। वाशिंगटन के सातवें जिले से प्रमिला जयपाल और मिशिगन के 13वें जिले से शामल थानेदार (68) भी इस समिति के अन्य सदस्यों में शामिल थे। अब वर्जीनिया के 10वें जिले से सुहास सुब्रमण्यम भी उनके साथ शामिल हो गए हैं।

ऐसी खबरें हैं कि राज्य विधानमंडलों में भारतीय-अमेरिकियों की संख्या 2013 में 10 से पांच गुना बढ़कर 2025 में 50 हो गई है।

गौरतलब है कि कमला हैरिस, जो अमेरिका की उपराष्ट्रपति रह चुकी हैं और 2021 तक अमेरिकी सीनेटर रहीं, भी भारतीय मूल की हैं। वे ट्रंप के मुकाबले राष्ट्रपति चुनाव हार गईं। रिपब्लिकन पार्टी में, बाबी जिंदल, जो भारतीय मूल के हैं, पहले अमेरिकी राष्ट्रपति पद के लिए चुनाव लड़ चुके हैं। विवेक रामास्वामी भी रिपब्लिकन से दावेदारी जता रहे थे, बाद में ट्रंप के पक्ष में बैठ गए। फिर ट्रंप ने अपने प्रशासन में नियुक्त किया था, लेकिन जल्द उन्होंने ट्रंप प्रशासन को छोड़ दिया। वे 2026 में होने वाले ओहायो के गवर्नर पद के लिए चुनाव लड़ रहे हैं।

बाइडेन प्रशासन में सभी स्तरों पर 130 से ज्यादा भारतीय सेवारत थे और ट्रंप प्रशासन में 80 से ज्यादा नियुक्तियां हुई हैं। ऐसा लगता है कि सत्ता में चाहे डेमोक्रेट हों या रिपब्लिकन, भारतीय मूल के राजनेता और अधिकारी सर्वोच्च पदों पर सेवारत पाए जा सकते हैं।