“पढ़ना लिखना सीखो ओ मेहनत करने वालों, पढ़ना लिखना सीखो ओ भूख से मरने वालों
क ख ग घ को पहचानो, अलिफ़ को पढ़ना सीखो, अ आ इ ई को हथियार बनाकर लड़ना सीखो”
मेहनतकश वर्ग से शिक्षा हासिल करने का आह्वान करने वाले इस लड़के का नाम सफदर हाशमी था। साल 1989 की पहली तारीख की बात है। दिल्ली से सटे गाज़ियाबाद के झंडापुर (साहिबाबाद) में सफ़दर की मंडली एक नुक्कड़ नाटक कर रही थी। नाटक का नाम ‘हल्ला बोल’ था।
इस नाटक के दौरान ही स्थानीय कांग्रेसी नेता मुकेश शर्मा ने अपने लोगों के साथ सफ़दर पर हमला कर दिया था। गंभीर रूप से घायल नाटककार की कुछ ही घंटों में मौत हो गई। उनकी उम्र सिर्फ 34 साल थी। इस मौत ने देशभर के कलाधर्मियों को झकझोर कर रख दिया। सफदर की शवयात्रा में हजारों लोग जुटे थे।
कौन थे सफ़दर हाशमी?
सफ़दर हाशमी का जन्म 12 अप्रैल, 1954 को एक पढ़े-लिखे और संपन्न परिवार में हुआ था। सफ़दर को भारत में नुक्कड़ नाटक का प्रवर्तक माना जाता है। उनकी जयंती के अवसर पर 12 अप्रैल को राष्ट्रीय नुक्कड़ नाटक दिवस मनाया जाता है।
मार्क्सवादी माहौल में जन्मे और पले-बढ़े हाशमी का पालन-पोषण पहले अलीगढ़ और बाद में दिल्ली में हुआ। सफ़दर ने 1975 में सेंट स्टीफन कॉलेज (दिल्ली विश्वविद्यालय) से अंग्रेजी साहित्य में एमए किया। कॉलेज के दिनों में ही वह वामपंथी छात्र संगठन स्टूडेंट फेडरेशन ऑफ इंडिया (SFI) से जुड़ गए। वह इंडियन पीपुल्स थिएटर एसोसिएशन (IPTA) के सदस्य भी थे। इस दौरान उन्होंने कई नाटकों में काम किया।
साल 1973 में 19 साल की उम्र में सफ़दर ने कई अन्य स्टूडेंट्स के साथ मिलकर जन नाट्य मंच (जनम) की स्थापना की। 1976 में वह सीपीआई (एम) के सदस्य बन गए।
कॉलेज में पढ़ाया, सरकारी नौकरी भी की, लेकिन…
सफ़दर हाशमी ने दिल्ली विश्वविद्यालय के कॉलेज जाकिर हुसैन में पढ़ाया। इसके अलावा उन्होंने गढ़वाल, श्रीनगर और कश्मीर के विश्वविद्यालयों में भी पढ़ाया। कुछ समय के लिए नई दिल्ली में पश्चिम बंगाल सूचना केंद्र में प्रेस सूचना अधिकारी के रूप में काम भी काम किया। हालांकि तीन साल सरकारी नौकरी करने के बाद भी वह व्यवस्था का पुराज नहीं नहीं बने।
एक दिन अचानक उन्होंने अपने एक साथ को आकर बताया- मैंने वह नौकरी छोड़ दी है, क्योंकि जन नाट्य मंच का काम देखने वाला कोई और नहीं था।
वह पूर्णकालिक थिएटर एक्टिविस्ट बन गये। सफ़दर के नेतृत्व में जनम ने जल्द ही मशीन, औरत, गांव से शहर तक, राजा का बाजा और हत्यारे, जैसे नाटकों के साथ सांस्कृतिक क्षेत्र में राष्ट्रीय स्तर पर प्रसिद्धि हासिल कर ली। सफ़दर ने इन नाटकों के लिए गीत लिखे और उन पटकथाओं में बहुत योगदान दिया जो समाज के शोषित वर्गों से संबंधित मुद्दों से संबंधित थीं।
सिर्फ नाटक ही नहीं…
सफ़दर के प्रयासों के कारण, जनम ने अखिल भारतीय नुक्कड़ नाटक आंदोलन के निर्माण में एक प्रमुख भूमिका निभाई है। सफ़दर की रचनात्मकता जनम तक ही सीमित नहीं थी। उन्होंने कविताएं लिखी। बच्चों के लिए रेखाचित्र और मुखौटे बनाए हैं। सैकड़ों पोस्टर डिजाइन किए हैं, स्क्रिप्ट लिखी है और टेलीविजन के लिए शॉर्ट फिल्मों का निर्देशन भी किया है। राष्ट्रीय समाचार पत्रों और एसएफआई जर्नल ‘स्टूडेंट स्ट्रगल’ के लिए संस्कृति और रंगमंच के विषय पर लिखते रहे। तमाम गुणों और कलाओं से लैस सफ़दर हाशमी बड़े आराम की ऐश की जिंदगी जी सकता था। लेकिन उन्होंने मजदूरों की आवाज बनना चुना।
1 जनवरी, 1989
1 जनवरी 1989 को जब दुनिया नए साल का जश्न मना रही थी, सफदर हाशमी अपने थिएटर ग्रुप जन नाट्य मंच (जनम) के साथ अपना नुक्कड़ नाटक ‘हल्ला बोल’ प्रस्तुत करने के लिए गाज़ियाबाद के एक गांव झंडापुर की ओर जा रहे थे।
नुक्कड़ नाटक श्रमिकों की मांगों को लेकर था।
जन नाट्य मंच मजदूरों की बस्तियों और फैक्ट्रियों के आसपास नुक्कड़ नाटक करता था। झंडापुर भी वैसा ही इलाका था। नाटक चल रहा था। तभी कांग्रेस नेता मुकेश शर्मा अपने लोगों के साथ वहां पहुंचे। सफ़दर और कांग्रेस नेता में बहस हुई। थोड़ी ही देर में सफ़दर पर हमला कर दिया।
सफदर को गंभीर चोट आई और दो जनवरी को उनका निधन हो गया। दिलचस्प यह है कि सफ़दर की मौत के 48 घंटों के भीतर 4 जनवरी, 1989 को उनके साथियों और उनकी पत्नी मौलीश्री ने ठीक उसी जगह जाकर ‘हल्ला बोल’ नाटक किया, जहां एक तारीख को हमला हुआ था।
सफदर की मौत के 14 साल बाद, उनके हत्यारों को सजा मिली थी। साल 2003 में गाजियाबाद कोर्ट ने कांग्रेस नेता मुकेश शर्मा समेत 10 लोगों को उम्रकैद की सजा सुनाई थी।
सिर्फ सफ़दर ही नहीं एक मजदूर की भी जान गई थी
उस दिन एक नहीं, दो ख़ून हुए। सफदर के अलावा जान गंवाने वाला दूसरा व्यक्ति एक मजदूर था। वह एक मासूम दर्शक था। उसका नाम राम बहादुर राम था। वह भी हिंसा की चपेट में आकर जान से मारा गया। राम बहादुर की मौत पिस्तौल से निकली गोली से हुई थी। वह व्यक्ति उसी समय वहीं ढेर हो गया।
तब वरिष्ठ कलाधर्मी हबीब तनवीर ने सवाल उठाया था, “यह आदमी क्यों मारा गया? क्या लोगों में आतंक फैलाने के उद्देश्य से चलाई हुई गोली छिटककर उसे लग गई? या फिर उस क़त्ल का कारण भी कुछ और था? और वैसे सफदर भी आख़िर क्यों मारा गया? क्या इसलिए कि उसने मज़दूरों को उचित वेतन दिलवाने के सिलसिले में अपनी आवाज़ बुलंद की? या शायद इसलिए कि उसने अवाम के गरीब और मेहनतकश तबक़ों का हर मौके पर साथ दिया, हर जुल्म के खिलाफ़ उनके पक्ष में खड़ा हो गया?”

सफदर की मौत पर किसने क्या कहा था?
सफ़दर की हत्या पर वरिष्ठ लेखक भीष्म साहनी ने लिखा था, “सफ़दर की हत्या एक होनहार युवक की या एक प्रतिभा संपन्न कलाकार की ही हत्या नहीं है। यह हमारे जनतंत्रात्मक मूल्यों पर कुठाराघात है। यह एक हादसा नहीं है, यह एक ऐसी भयावह घटना है जिसने हम सबको ललकारा है कि देखो, देश किस ओर जा रहा है। इस दूषित वातावरण में इस हत्या को भी राजनीतिक रंग देने की कोशिश की जा रही है।”
एक अन्य वरिष्ठ कलाधर्मी हबीब तनवीर ने सफ़दर की मौत पर लिखा था, “सफ़दर उन नाटकों खुद लिखते थे जिनका संबंध मेहनतकश जनता की ज़िंदगी और उसकी समस्याओं से था। उनके लिए वे गाने लिखते थे, अक्सर उनकी धुनें ख़ुद बनाते थे, उन नाटकों में अभिनेता की हैसियत से भाग लेते थे, गाते भी थे और प्रायः उनका निर्देशन भी करते थे। इतना सारा काम एक आदमी के लिए कुछ कम काम न था, और यह काम लगातार दस साल तक बराबर जारी रहा।”
तनवीर आगे लिखा, “सफ़दर बहुत खूबसूरत गाने लिखते थे, मगर अपने आपको गीतकार या शायर की हैसियत से कभी महत्त्व न दिया। नाटकों का निर्देशन भी करते थे मगर हमेशा माज़त ख्वाह रहते कि उन्हें निर्देशन नहीं आता। ऐक्टिंग बहुत अच्छी करते थे मगर ख़ुद को कभी एक्टर न समझा। वह एक लीडर थे, जिसने अपने को लीडर कभी न माना।”

सफदर हाशमी की शव यात्रा
सफदर की जिंदगी पर लिखी किताब ‘हल्ला बोल’ में उनके एक साथी ने बताया है कि नाटककार की शवयात्रा में बहुत सारे विपक्ष के नेता पहुंचे थे। वी. पी. सिंह भी आए थे जो उसी साल बाद में प्रधानमंत्री बने। तरह-तरह के लोग सफदर को श्रद्धांजलि देने आए थे। नहीं आए तो सिर्फ कांग्रेस और भाजपा के नेता नहीं आए।”
हाशमी की मौत ने भारत की अंतरात्मा को झकझोर दिया और कला जगत के साथ-साथ इसके बाहर के कई लोगों ने इस क्रूर हमले की निंदा की। उनके निधन के एक हफ्ते बाद, अभिनेत्री शबाना आजमी ने 12वें भारतीय अंतर्राष्ट्रीय फिल्म महोत्सव में बोलते हुए कांग्रेस पर हाशमी की हत्या का आरोप लगाया।

कला में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और रचनात्मकता को बढ़ावा देने के लिए 1989 में सफदर हाशमी मेमोरियल ट्रस्ट (SAHMAT) की स्थापना की गई थी। हर साल एक जनवरी को SAHMAT सफदर की याद में दिल्ली में संगीत एक दिवसीय कार्यक्रम आयोजित करता है। वहीं झंडापुर में नुक्कड़ नाटक का प्रदर्शन किया जाता है।
सफदर का परिवार धर्म को नहीं मानता था, इसलिए सफदर का अंतिम संस्कार किसी धार्मिक रीति रिवाज से नहीं हुआ था। उनके शव को बिजली की भट्ठी के हवाले कर दिया गया था। सफदर के पिता का अंतिम संस्कार भी धार्मिक रीति रिवाज से नहीं हुआ था।
