गुजरात में साल 2010 का भीषण गर्मी का एक महीना। वही गुजरात जहां 42 डिग्री तापमान हो तो लोग इसे सुहावना ही मानते हैं। उस वक्त मौसम सुहावना नहीं था। उस तपती गर्मी में चुनाव आयोग गुजरात में एक उपचुनाव करवा रहा था। संयोग ऐसा था कि चुनाव लड़ रहे एक निर्दलीय उम्मीदवार का निशान ‘पंखा’ था। चुनाव आयोग के पर्यवेक्षक (ऑब्जरवर) ने ऐसा फरमान दिया कि सभी मतदान केंद्रों से सारे पंखे हटा दिए जाएं।
ऑब्जरवर का मानना था कि पंखे देख कर मतदाता ‘पंखा’ चुनाव चिह्न वाले निर्दलीय उम्मीदवार के पक्ष में वोट डालने के लिए प्रेरित हो सकते हैं। ऑब्जरवर को यह समझाने में बड़ी मशक्क्त करनी पड़ी और काफी धैर्य का परिचय देना पड़ा कि चुनाव आयोग के निर्देशों की ऐसी व्याख्या और अमल अति ही मानी जााएगी।
कुरैशी की किताब An Undocumented Wonder
पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त एस.वाय. कुरैशी ने अपनी किताब An Undocumented Wonder (रूपा पब्लिकेशंस) में इस वाकये का जिक्र किया है।
कुरैशी ने इस किताब में चुनाव चिह्नों के पीछे की कहानी भी दर्ज की है। इसके मुताबिक जो चुनाव चिह्न राजनीतिक पार्टियों की पहचान हैं और जिनके जरिए मतदाता अपनी पसंद के प्रतिनिधि चुनते हैं, उसका श्रेय दिवंगत एम.एस. सेठी को जाता है।
एम.एस. सेठी सितंबर 1992 में चुनाव आयोग से रिटायर हुए थे। लेकिन, उनका काम उन्हें वर्षों तक जिंंदा रखेगा।
सेठी भारत के चुनाव आयोग में नियुक्त आखिरी नक्सानवीश (draughtsman) थे। उनके बाद यह पद खत्म कर दिया गया था। चुनाव चिह्र बनाना उनका ही काम था।
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रोजमर्रा की चीजों को बनाया चुनाव चिह्न
सेठी, और चुनाव आयोग के अफसरों की एक टीम साथ बैठ कर उन चीजों पर विचार करती थी जो आम लोगों के रोज मर्रा इस्तेमाल की होती हैं। ऐसी चीजों पर ही फोकस करने का मकसद यह होता था कि लोग चुनाव चिह्न से खुद को जोड़ सकें और आसानी से याद रख सकें। सायकिल, झाड़ू, हाथी जैसे निशान इन्हीं बैठकों में मंथन के बाद फाइनल हुए। कई ऐसी वस्तुओं के लिए सलाह भी आई, जो बहुत आम नहीं थी, जैसे- नेल कटर, टाई आदि।
सेठी बनाते थे स्केच
बैठकों में अफसर चीजों का नाम सुझाते थे और सेठी साहब उन चीजों का स्केच बनाते थे। सेठी के रिटायर होने के कुछ साल बाद चुनाव आयोग ने उनके बनाए करीब सौ स्केच का संकलन तैयार कराया। इनका इस्तेमाल चुनाव आयोग ‘स्वतंत्र निशान’ के तौर पर करता रहा है। हर चुनाव के वक्त यह लिस्ट देश भर में भेजी जाती है। 1996 में तमिलनाडु विधानसभा चुनाव में आयोग ने उम्मीदवारों को लिस्ट में संशोधन की इजाजत दी थी। लेकिन इसके बाद आयोग ने सूची को सौ तक सीमित कर दिया।
सूची में शामिल ज्यादातर चुनाव चिह्न सेठी के द्वारा बनाए गए स्केच ही हैं। इसलिए इनमें उनके जमाने की लोकप्रिय चीजें ही देखने को मिलती हैं। इनमें से जो चुनाव चिह्न राष्ट्रीय पार्टियों ने आरक्षित करा रखे हैं, वे किसी और को नहीं दिए जा सकते। राज्य स्तरीय पार्टियां जो चुनाव चिह्न आरक्षित कराती हैं वह उस राज्य में किसी और को नहीं दिया जा सकता।
चुनाव चिह्न को लेकर अक्सर विवाद भी होते रहते हैं। खास कर तब जब पार्टियों में टूट होने पर सभी धड़ा मूल चुनाव चिह्न पाना चाहते हैं।
कई बार पार्टियां भी विरोधी का चुनाव चिह्न जब्त करने की मांग लेकर चुनाव आयोग के पास जाते हैं। 1991 के लोकसभा चुनाव से पहले अर्जुन सिंंह ने भाजपा का ‘कमल’ निशान जब्त करने की गुहार चुनाव आयोग से लगाई थी। तब टी.एन. शेषन ने आयोग का फैसला भी उनके पक्ष में सुनाया था। फिर, कैसे बचा था भाजपा का ‘कमल’ निशान, पढ़िए क्लिक करके।
