भारत ने रूस से 2018 में जो एस-400 एयर डिफेंस सिस्टम खरीदा था, वह ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के दौरान सबसे बड़ी ताकत साबित हुआ। पाकिस्तान के लड़ाकू विमानों को सैकड़ों किलोमीटर अंदर ही पहचानना, उन्हें ट्रैक करना और मार गिरा देना – यह सब एस-400 की क्षमता ने किया। इसी प्रदर्शन ने भारत को हवाई मोर्चे पर पूरी बढ़त दिलाई। यही वजह है कि अब भारत इसकी पांच और रेजिमेंट खरीदने पर विचार कर रहा है।

लेकिन अब भारत और रूस के बीच बातचीत का असली केंद्र एस-400 नहीं, बल्कि उसका अगला और कहीं अधिक उन्नत संस्करण – एस-500 ‘प्रोमीथियस’ – है। सवाल यही है कि आखिर एस-500 ऐसा क्या कर सकता है, जो एस-400 नहीं कर पाता?

सबसे पहले, एस-500 कोई साधारण अपग्रेड नहीं है। यह पूरी तरह नई पीढ़ी की तकनीक है, जिसे रूस अपनी सबसे उन्नत मिसाइल रक्षा लाइन मानता है। दिलचस्प बात यह है कि इस सिस्टम के लिए भारत और रूस सह-निर्माण मॉडल पर चर्चा कर रहे हैं। यानी इसके कुछ हिस्से भारत में ही तैयार किए जा सकते हैं, जिससे देश की रक्षा उत्पादन क्षमता भी बढ़ेगी।

दूरी में कितना अंतर?

एस-400 की मारक सीमा लगभग 400 किमी है।
एस-500 की रेंज इससे कहीं ज्यादा 500–600 किमी तक मानी जाती है।

यह अंतर सिर्फ संख्या का नहीं, बल्कि रणनीतिक क्षमता का है। एस-500 दुश्मन के लक्ष्यों को बहुत दूर से ही रोक सकती है, जिससे भारत की चेतावनी और सुरक्षा सीमा और गहरी हो जाती है।

ऊंचाई में कितना अंतर?

एस-400 अधिकतम 30 किमी ऊंचाई तक लक्ष्य पकड़ सकती है।
एस-500 180–200 किमी तक हमला कर सकती है – यानी लगभग अंतरिक्ष की सीमा तक।

यह क्षमता एस-500 को बैलिस्टिक मिसाइलों, ऊंचाई पर चलने वाले हथियारों और अंतरिक्ष-सीमा से आने वाले खतरों तक को रोकने में सक्षम बनाती है।

किस लक्ष्य पर हमला करने की क्षमता?

एस-400 – लड़ाकू विमान, ड्रोन और क्रूज़ मिसाइलें।
एस-500 – इन सबके साथ लंबी दूरी की बैलिस्टिक मिसाइलें और हाइपरसोनिक हथियारों को रोकने का दावा भी इसमें है।

इससे स्पष्ट है कि जहां एस-400 क्षेत्रीय सैन्य खतरों से निपटने के लिए बनी थी, वहीं एस-500 राष्ट्रीय स्तर के बड़े और अत्याधुनिक खतरों से सुरक्षा देने के लिए डिजाइन की गई है।

मिसाइलें भी अलग

एस-400 में 48N6 और 40N6 मिसाइलें लगती हैं।
एस-500 में नई पीढ़ी के 77N6-N और 77N6-N1 इंटरसेप्टर लगते हैं, जो लक्ष्य को सीधे टक्कर मारकर नष्ट करते हैं। इस तकनीक को “hit-to-kill” कहा जाता है।

भूमिका में सबसे बड़ा अंतर

एस-400 – थियेटर/रीजनल एयर डिफेंस।
एस-500 – पूरे देश के लिए मिसाइल, अंतरिक्ष-सीमा और हाइपरसोनिक रक्षा।

यानी एस-400 किसी क्षेत्र या सेक्टर की सुरक्षा करता है, जबकि एस-500 पूरे देश के शहरों, सैन्य ठिकानों और महत्वपूर्ण ढांचों को सुरक्षा घेरा देता है।

भारत का मौजूदा एयर डिफेंस नेटवर्क पहले ही ‘आकाश’, इजरायल के MRSAM और SpyDer जैसे सिस्टमों से मिलकर बहुत मजबूत है। एस-400 इसमें अच्छी तरह फिट हो चुका है। लेकिन एस-500 के आने से भारत की सुरक्षा परत कई स्तर ऊपर पहुंच जाएगी।

कुल मिलाकर, एस-400 ने भारत को क्षेत्रीय हवाई बढ़त दी थी, जबकि एस-500 भारत को भविष्य के हाइपरसोनिक और रणनीतिक मिसाइल खतरों से बचाने की क्षमता देगा। यह सौदा भारत-रूस के बीच अब तक का सबसे बड़ा रक्षा समझौता बन सकता है।