लोकसभा चुनाव 2024 के नतीजे सामने आने के बाद से ही बीजेपी और आरएसएस के बीच तल्खियां सामने आ रही हैं। आरएसएस से जुड़े नेता और मैगजीन लगातार भाजपा पर निशाना साध रहे हैं। इस बीच आरएसएस से जुड़ी एक मैगजीन ने अपनी लेटेस्ट कवर स्टोरी में एक राष्ट्रीय जनसंख्या नीति पर जोर दिया है।
मैगजीन में न केवल हिंदुओं की तुलना में मुस्लिमों की बढ़ती आबादी के चलते “जनसंख्या असंतुलन” को चिह्नित किया गया है बल्कि यह भी कहा गया है कि पश्चिमी और दक्षिणी राज्यों में निचले जन्म दर के चलते परिसीमन के दौरान नुकसान हुआ है।
नरेंद्र मोदी के तीसरे कार्यकाल के दौरान परिसीमन होने की उम्मीद के साथ मैगजीन में दक्षिणी राज्यों में होने वाले नुकसान को रेखांकित किया गया है क्योंकि चुनावी सीमाओं को फिर से निर्धारित करने से भाजपा को मदद मिलने की संभावना है, जो उत्तर भारत में अपनी अधिकांश सीटें जीतती है।
परिसीमन पर दक्षिण के सांसदों ने जताई चिंता
परिसीमन के बारे में विपक्षी दलों, विशेष रूप से दक्षिण भारत के लोगों ने संसद में जो चिंता व्यक्त की है उसे दोहराते हुए पत्रिका के संपादक प्रफुल्ल केतकर संपादकीय में लिखते हैं, “क्षेत्रीय असंतुलन एक और महत्वपूर्ण आयाम है जो भविष्य में संसदीय निर्वाचन क्षेत्रों की परिसीमन प्रक्रिया को प्रभावित करेगा। पश्चिम और दक्षिण के राज्य जनसंख्या नियंत्रण उपायों के संबंध में अपेक्षाकृत बेहतर प्रदर्शन कर रहे हैं और इसलिए जनगणना के बाद अगर जनसंख्या में बदलाव हुआ तो संसद में कुछ सीटें खोने का डर है।

जनसंख्या वृद्धि का समुदाय पर असर
केतकर का तर्क है कि देश को एक ऐसी नीति की आवश्यकता है कि जनसंख्या वृद्धि किसी भी धार्मिक समुदाय या क्षेत्र पर असमान रूप से प्रभाव न डाले, जिसकी वजह से सामाजिक-आर्थिक असमानता और राजनीतिक संघर्ष हो सकते हैं।
डीएमके ने भी इस पर गंभीर चिंता व्यक्त की है। पार्टी का कहना है कि विपक्षी दल विशेष रूप से वे जो दक्षिण में अच्छा प्रदर्शन करते हैं, महसूस करते हैं कि जनसंख्या पर परिसीमन का असर उन दलों के पक्ष में हो सकता है जो उत्तर में अच्छा प्रदर्शन करते हैं।
संसद में भी उठा मुद्दा
डीएमके सांसद कनिमोझी ने तमिलनाडु के सीएम एमके स्टालिन का एक बयान पढ़ा जिसमें कहा गया था, “अगर जनगणना पर परिसीमन होने जा रहा है तो यह दक्षिण भारतीय राज्यों के प्रतिनिधित्व को कम कर देगा।” कनिमोझी का समर्थन करते हुए टीएमसी सांसद महुआ मोइत्रा ने भी कहा, “आंकड़ों के अनुसार, केरल के लिए सीटों में 0 प्रतिशत की वृद्धि होगी, तमिलनाडु के लिए केवल 26% लेकिन एमपी और यूपी दोनों के लिए 79% की भारी वृद्धि होगी।”
“धार्मिक और क्षेत्रीय असंतुलन” पर विस्तार से बताते हुए केतकर लिखते हैं, “राष्ट्रीय स्तर पर जनसंख्या स्थिर होने के बावजूद, यह सभी धर्मों और क्षेत्रों में समान नहीं है। कुछ क्षेत्रों, विशेषकर सीमावर्ती जिलों में मुस्लिम जनसंख्या में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। लोकतंत्र में जब संख्या प्रतिनिधित्व के संबंध में महत्वपूर्ण होती है और जनसांख्यिकी भाग्य का फैसला करती है तो हमें इसके प्रति और भी अधिक सतर्क रहना चाहिए।”

हिंदुओं की तुलना में मुसलमानों की जनसंख्या वृद्धि दर में गिरावट
जनगणना में हिंदुओं की तुलना में मुसलमानों में अधिक जन्म दर दर्ज की गई है, पर कहा जाता है कि दोनों समुदायों की जन्म दर अब लगभग समान हो रही है। 1991 से 2011 के बीच मुसलमानों की जनसंख्या वृद्धि दर में गिरावट हिंदुओं की तुलना में अधिक दर्ज की गई है। राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (एनएफएचएस) के आंकड़ों के अनुसार, पिछले दो दशकों में सभी धार्मिक समुदायों के बीच मुसलमानों की प्रजनन दर में सबसे तेज गिरावट देखी गई है। एनएफएचएस 1 (1992-’93) में यह 4.4 थी जो एनएफएचएस 5 (2019- 21) में 2.3 हो गई है।
जनसंख्या नियंत्रण और समान नागरिक संहिता (यूसीसी) संघ की प्रमुख वैचारिक परियोजनाओं में से एक हैं जो अधूरी रह गई हैं। लोकसभा में कम संख्या के साथ भाजपा के सत्ता में आने के साथ, यूसीसी पर एक राष्ट्रीय कानून का निर्माण अब पहले से कहीं अधिक कठिन लगता है क्योंकि उसके प्रमुख सहयोगी जनता दल (यूनाइटेड) और तेलुगु देशम पार्टी (टीडीपी) ने इसके बारे में आपत्ति व्यक्त की है।
2019 में, मनोनीत राज्यसभा सांसद राकेश सिन्हा ने एक निजी सदस्य का विधेयक पेश किया था जिसमें छोटे परिवार की प्रथा को अपनाने वालों के लिए प्रोत्साहन और इसका उल्लंघन करने वालों के लिए दंड देकर दो बच्चों के नियम को लागू करने की मांग की गई थी।
जनसांख्यिकीय परिवर्तन से देश अस्थिर
कवर स्टोरी में मैगजीन ने केतकर द्वारा व्यक्त की गई चिंताओं के बारे में विस्तार से बताया है। लेख में लिखा है, “जनसांख्यिकीय परिवर्तन किसी भी अन्य खतरे से अधिक देश को अस्थिर कर सकता है। कट्टरपंथी इस्लामी ताकतों द्वारा अतीत में किया गया विश्वासघात, जिन्होंने भारतीय संस्कृति को लूटा और नष्ट करने की कोशिश की, हमारे सामने आने वाले जोखिमों की याद दिलाता है।”

लेख में दावा किया गया है कि यह राष्ट्रीय और राज्य की राजनीति को भी प्रभावित कर रहा है। उदाहरण के तौर पर हाल ही में पश्चिम बंगाल के उत्तर दिनाजपुर जिले में एक पुरुष और एक महिला की पिटाई का हवाला दिया गया है। “इस लोकसभा चुनाव में भी, अधिकांश मुसलमानों ने I.N.D.I. गठबंधन को वोट दिया और कांग्रेस से लेकर समाजवादी पार्टी और तृणमूल कांग्रेस तक ने वहां अच्छा प्रदर्शन किया जहां मुस्लिम निर्णायक संख्या में थे।”
यह संपादकीय और कवर स्टोरी 22 जुलाई को 18वीं लोकसभा के पहले बजट सत्र के शुरू होने से कुछ हफ्ते पहले आई है। फरवरी में अंतरिम बजट भाषण में केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने इस पर विचार करने के लिए एक उच्चाधिकार प्राप्त समिति गठित करने की योजना की घोषणा की थी जो तीव्र जनसंख्या वृद्धि और जनसांख्यिकीय परिवर्तनों से उत्पन्न चुनौतियों पर विचार करेगी। हालांकि, अभी तक कमेटी का गठन नहीं हुआ है।
सरकार ने कहा था रखेंगे दक्षिणी राज्यों की चिंताओं का ध्यान
इससे पहले जनवरी 2024 में एक वरिष्ठ सरकारी अधिकारी ने सदन में कहा था कि लोकसभा क्षेत्रों के परिसीमन के दौरान दक्षिणी राज्यों की चिंताओं का ध्यान रखा जाएगा। उन्होंने पांच राज्यों को आश्वासन दिया कि उन्हें कोई नुकसान नहीं होगा। अधिकारी ने कहा, “जनगणना 2024 के लोकसभा चुनावों के बाद की जाएगी। जनगणना समाप्त होने के बाद उसके आधार पर निर्वाचन क्षेत्रों का परिसीमन किया जाएगा। परिसीमन के दौरान, दक्षिणी राज्यों की चिंताओं को ध्यान में रखा जाएगा। दरअसल, दक्षिण भारतीय राज्यों के कई नेताओं ने चिंता व्यक्त की है कि उत्तर भारत की विशाल आबादी के कारण उन्हें अधिक लाभ मिलेगा।

तमिलनाडु ने परिसीमन के खिलाफ रखा था प्रस्ताव
तमिलनाडु विधानसभा ने भी फरवरी, 2024 को केंद्र सरकार के 2026 के बाद प्रस्तावित परिसीमन के खिलाफ ‘सर्वसम्मति से’ प्रस्ताव रखा था।
केंद्र सरकार द्वारा प्रस्तावित परिसीमन प्रक्रिया के खिलाफ प्रस्ताव में कहा गया, “इस सम्मानित सदन ने केंद्र सरकार से आग्रह किया कि 2026 के बाद जनगणना के आधार पर की जाने वाली परिसीमन प्रक्रिया को नहीं किया जाना चाहिए। अपरिहार्य कारणों से अगर जनसंख्या के आधार पर सीटों की संख्या में वृद्धि होती है, तो इसे राज्यों की विधानसभाओं और संसद के दोनों सदनों के बीच 1971 की जनसंख्या के आधार पर निर्धारित निर्वाचन क्षेत्रों के वर्तमान अनुपात पर बनाए रखा जाएगा।”
परिसीमन का शाब्दिक अर्थ है किसी देश या प्रांत में निर्वाचन क्षेत्रों की सीमाएं तय करने की प्रक्रिया। परिसीमन का कार्य परिसीमन आयोग द्वारा किया जाता है। भारत में परिसीमन आयोगों का गठन चार बार किया गया है- 1952 में परिसीमन आयोग अधिनियम, 1952 के तहत; 1963 में परिसीमन आयोग अधिनियम, 1962 के तहत; 1973 में परिसीमन अधिनियम, 1972 के तहत और 2002 में परिसीमन अधिनियम, 2002 के तहत।
