महात्मा गांधी की हत्या के बाद राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के तत्कालीन सरसंघचालक एमएस गोलवलकर को गिरफ्तार कर लिया गया। अगस्त 1948 में सरकार ने तमाम शर्तों के साथ गोलवलकर को रिहा किया, लेकिन 12 नवंबर को और दोबारा गिरफ्तार कर लिया गया। आखिरकार 13 13 जुलाई 1949 को एमएस गोलवलकर रिहा हुए। जेल से रिहाई के बाद संघ ने जयपुर में एक कार्यक्रम आयोजित किया, जिसमें खुद गुरु गोलवलकर पहुंचे।
इस कार्यक्रम के अगले दिन अखबारों में खबर छपी कि गोलवलकर ने महात्मा गांधी के चित्र पर माल्यार्पण करने से साफ इंकार कर दिया। लेकिन एमएस गोलवलकर इस बात से इनकार करते हैं। गोलवलकर के पत्रों, साक्षात्कारों और बातचीत के संकलन ‘श्री गुरुजी समग्र’ के नौवें खंड में इस घटना का जिक्र है। गोलवलकर से पूछा गया कि आपने जयपुर के कार्यक्रम में महात्मा गांधी की तस्वीर पर माला चढ़ाने से साफ इनकार कर दिया था? तो वह कहते हैं कि यह बात पूरी तरह गलत है। बल्कि मैंने कार्यक्रम की शुरुआत में महात्मा गांधी के छाया चित्र के साथ राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संस्थापक डॉ. हेडगेवार के छायाचित्र पर माल्यार्पण किया।
RSS के पास कहां से आता है पैसा?
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ इतना बड़ा संगठन है…आखिर संघ को चलाने के लिए पैसा कहां से मिलता है? इस सवाल के जवाब में गोलवलकर कहते हैं कि हमारे स्वयंसेवक हर साल धन समर्पण करते हैं। फूल की पंखुड़ी से लेकर जिसके पास जितना सामर्थ्य हो उस हिसाब से दान देता है। किसी को बाध्य नहीं किया जाता है। बल्कि पैसे का इतना महत्व ही नहीं है, बल्कि महत्व साफ हृदय से समर्पण का है।
क्या बिजनेसमैन देते हैं पैसा?
इसी सवाल जवाब के क्रम में जब गोलवलकर से पूछा गया कि ऐसी चर्चा है कि देश के कई बड़े व्यापारी संघ को पैसा देते हैं? तो गुरु गोलवलकर एक किस्सा सुनाते हैं। वह कहते हैं कि एक नामी सज्जन ऐसा ही प्रश्न लेकर एक बार मेरे पास आए। मैं उनका नाम नहीं लेना चाहता हूं। वह मुझसे कहने लगे कि मेरे पास पक्की खबर है कि संघ को अमेरिका से धन मिल रहा है। मैंने उनसे कहा कि वह पैसा हमारे पास तो नहीं पहुंचा, लेकिन यदि आपको निश्चित तौर पर पता है तो इसका मतलब यह है कि पैसे का गोलमाल कहीं आपने ही तो नहीं किया? कृपया वह धन निकालिये और हमें दे दीजिए।
संघ के पास एक-एक पाई का हिसाब
एमएस गोलवलकर कहते हैं कि संघ एक-एक पैसे का हिसाब रखता है। हर चीज की ऑडिट रिपोर्ट है। कहीं एक भी पैसे की गड़बड़ नहीं हो सकती है। इसका उदाहरण यह है कि जब गांधी की हत्या के बाद राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पर प्रतिबंध लगा था तब सरकार ने हमारी हिसाब की पुस्तकें भी जब्त कर ली थीं। फिर सरकार की तरफ से स्वयं कहा गया था, ‘इस हिसाब को देखो, कितनी अच्छी तरह नियमित और सावधानीपूर्वक रखा गया है’।