Rape Laws in States: कोलकाता के आर.जी. कर मेडिकल कॉलेज में लेडी डॉक्टर के साथ हुए कथित रेप और हत्याकांड के मामले के चलते बंगाल समेत पूरे देश में जमकर विरोध प्रदर्शन हुए। पश्चिम बंगाल में सड़कों पर यह विरोध प्रदर्शन अभी भी जारी है। इस केस की जांच सीबीआई कर रही है और संदिग्धों पर सीबीआई ने शिकंजा भी कस लिया है। वहीं सवाल राज्य सरकार की कानून व्यवस्था और पुलिस को लेकर भी खड़े हो रहे हैं। इस बीच ही पश्चिम बंगाल की विधानसभा ने एक विधेयक पारित कर दिया, जिसे राज्य की ममता बनर्जी सरकार रेप से जुड़े अपराधों के लिए एक सख्त कानूनी प्रावधान बता रही है।

पश्चिम बंगाल विधानसभा में पेश इस नए रेप से जुड़े कानूनों को लेकर अहम बात यह है कि अगर केस में पीड़िता की केस में मौत हो जाती है, या फिर उसकी हालत हद से ज्यादा खराब पाई जाती है, तो उन मामलों में मृत्युदंड का प्रावधान अनिवार्य होगा। ममता सरकार ने इस कानून का नाम अपराजिता महिला एवं बाल ( पश्चिम बंगाल आपराधिक कानून संशोधन) विधेयक, 2024 (अपराजिता विधेयक) रखा है। इस नए बिल में बलात्कार के सभी मामलों में अधिकतम सजा के तौर पर मृत्युदंड का प्रावधान रखा गया है।

ममता सरकार ने किया है कई कानूनों संशोधन

इतना ही नहीं बलात्कार से जुड़े मामलों में की जांच और सुनवाई के तरीके में बदलाव किया गया है, जिसके लिए प्रत्येक जिले में एक विशेष कार्य बल और विशेष अदालत बनाई जाएगी, जो कि इन केसों पर काम करेगी। राज्य सरकार ने इन परिवर्तनों को प्रभावी बनाने के लिए विधेयक भारतीय न्याय संहिता, 2023 (BNS), भारतीय न्याय सुरक्षा संहिता, 2023 (BNS) और राज्य में यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण अधिनियम, 2012 (POSCO) के प्रावधानों में संशोधन किया है।

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कई राज्यों ने किया है रेप से जुड़े कानूनों में बदलाव

गौरतलब है कि पश्चिम बंगाल से पहले आंध्र प्रदेश और महाराष्ट्र विधानसभाओं ने आपराधिक कानूनों में संशोधन करके बलात्कार के लिए मौत की सज़ा देने का कानून पारित किया था। इनमें से किसी भी विधेयक को अभी तक राष्ट्रपति की अनिवार्य स्वीकृति नहीं मिली है। इतना ही नहीं, इससे पहले मध्य प्रदेश और अरुणाचल प्रदेश की विधानसभाओं ने भी 2017 और 2018 में “बारह वर्ष तक की आयु की महिला” (भारतीय दंड संहिता, 1860 की धारा 376AA और 376DA) के साथ बलात्कार या सामूहिक बलात्कार के लिए मृत्युदंड का प्रावधान किया था।

पश्चिम बंगाल का रेप को लेकर नए कानून में क्या हुए बदलाव

पश्चिम बंगाल सरकार द्वारा पारित अपराजिता विधेयक की बात करें तो विधेयक की शुरुआत इस बात से होती है कि BNS की धारा 4(B) में “आजीवन कारावास” में “आजीवन कारावास या आजीवन कठोर कारावास” शामिल है। कठोर कारावास में सजा के दौरान कठोर काम कराने का प्रावधान भी है।

BNS की धारा 64 क्या है?

यह धारा (“बलात्कार के लिए सजा”) अपराध के लिए न्यूनतम सजा और उन मामलों में सजा का प्रावधान करती है, जहां गंभीर परिस्थितियां हों। इसमे सार्वजनिक सेवक, सशस्त्र बलों के सदस्यों और सांप्रदायिक हिंसा के दौरान बलात्कार आदि की घटनाएं शामिल हो। दोनों स्थितियों में, अधिकतम सजा “आजीवन कारावास” है। अपराजिता विधेयक धारा 64 में संशोधन करके दण्ड के विवरण के अंत में आजीवन कारावास के अलावा मृत्युदंड भी जोड़ा गया है।

BNS की धारा 66: “मुख्य अधिनियम” (BNS) में यह प्रावधान बलात्कार को दंडित करने वाला है, जो महिला की मृत्यु का कारण बनता है। इसमें न्यूनतम 20 साल की जेल के साथ आजीवन कारावास के अलावा मृत्यु दंड का प्रावधान है। अपराजिता विधेयक में मृत्युदंड को छोड़कर सभी दंडों को ही हटा दिया गया है, जिससे ऐसे मामलों में मृत्युदंड अनिवार्य हो गया है।

BNS की धारा 70: यह बीएनएस धारा “सामूहिक बलात्कार” के अपराध से संबंधित है। ऐसे मामलों में मृत्युदंड का प्रावधान है, जहां पीड़िता अठारह वर्ष से कम आयु की है। इसके अलावा बड़ी उम्र की महिलाओं के साथ रेप पर अधिकतम सजा आजीवन कारावास है, लेकिन पश्चिम बंगाल विधेयक धारा 70(1) में संशोधन करके 18 वर्ष से अधिक आयु की महिला के साथ सामूहिक बलात्कार के लिए भी मृत्युदंड का प्रावधान कर दिया गया है।

धारा 71, 72, 73: बार-बार अपराध करने वालों (धारा 71) के लिए अपराजिता विधेयक साधारण “आजीवन कारावास” की सजा को “आजीवन कठोर कारावास” से बदल देता है। यह बलात्कार पीड़िता की पहचान उजागर करने (धारा 72) और बलात्कार के मामलों में अदालती कार्यवाही से संबंधित जानकारी प्रकाशित करने (धारा 73) के लिए जेल की अवधि भी बढ़ाता है।

एसिड अटैक: विधेयक में एसिड अटैक के लिए हल्के दंड यानी आजीवन कारावास से कम अवधि और जुर्माना को हटा दिया गया है और आजीवन कठोर कारावास को एकमात्र दंड के रूप में रखा गया।

Pocso अधिनियम में मृत्युदंड: विधेयक पोक्सो अधिनियम में संशोधन करके यौन हमले के लिए मृत्युदंड का प्रावधान करता है, जहां वर्तमान में उच्चतम सजा आजीवन कारावास है।

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टास्क फोर्स और स्पेशल कोर्ट का प्रावधान

बंगाल के इस अपराजिता विधेयक में बलात्कार के मामलों की जांच, सुनवाई और सख्त समयसीमा के अंदर हो, इसके लिए विशेष संस्थाओं का प्रावधान किया गया है। संशोधन विधेयक BNS में धारा 29C पेश करता है, जिसके तहत राज्य सरकार बलात्कार के मामलों की जांच के लिए हर जिले में एक विशेष अपराजिता टास्क फोर्स बनाएगी। सरकारी अधिकारियों सहित सभी व्यक्तियों को “बिना किसी देरी के” टास्क फोर्स की सहायता करने के लिए बाध्य किया जाएगा, ऐसा न करने पर उन्हें छह महीने की जेल हो सकती है।

विधेयक में प्रासंगिक BNS और पोक्सो अपराधों की जांच पूरी करने के लिए BNS धारा 193 के तहत दिए गए समय को दो महीने से घटाकर 21 दिन कर दिया गया है। विधेयक में बलात्कार के मामलों में जांच या सुनवाई को तेज करने के उद्देश्य से प्रत्येक जिले में विशेष न्यायालय स्थापित करने तथा एक विशेष लोक अभियोजक नियुक्त करने के लिए बीएनएसएस में क्रमशः धारा 29ए और 29बी शामिल की गई है।

राज्यपाल के पास भेजा गया कानून से जुड़ा प्रस्तावित बिल

विधेयक में BNS धारा 346 में भी संशोधन किया गया है, जिसके तहत आरोपपत्र दाखिल होने के बाद सुनवाई पूरी करने के लिए दिए जाने वाले समय को दो महीने से घटाकर 30 दिन कर दिया गया है। बता दें कि विधेयक अब पश्चिम बंगाल के राज्यपाल के समक्ष प्रस्तुत किया जाएगा, जो इसे राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के पास भेजेंगे, जो इसके बाद निर्णय लेंगी कि विधेयक को मंजूरी दी जाए या नहीं और इसे लागू होने दिया जाए या नहीं।

आंध्र प्रदेश में 2019 में आया था ‘दिशा बिल’

आंध्र प्रदेश में रेप के खिलाफ मामलों में सख्त एक्शन के लिए दिशा बिल पेश किया गया था। साल 2019 के नवंबर में हैदराबाद के शमशाबाद में 26 वर्षीय पशु चिकित्सक के साथ सामूहिक बलात्कार किया गया और उसकी हत्या कर दी गई। गिरफ्तार किए गए चार लोगों को उसी साल 6 दिसंबर को पुलिस ने मुठभेड़ में मार गिराया था। तब आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री वाईएस जगन मोहन रेड्डी ने महिलाओं के खिलाफ अपराधों के मामलों में कड़ी सज़ा और त्वरित निपटान सुनिश्चित करने के लिए कानून लाने का वादा किया था। इसके तहत दिसंबर 2019 में विधानसभा ने सर्वसम्मति से आंध्र प्रदेश दिशा अधिनियम, आपराधिक कानून (आंध्र प्रदेश संशोधन) विधेयक, 2019 पारित किया गया था।

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विधेयक द्वारा आंध्र प्रदेश राज्य के लिए भारतीय दंड संहिता, 1860 और दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 (सीआरपीसी) में संशोधन किया गया था। बलात्कार के लिए मृत्युदंड का प्रावधान किया गया था, जिसके तहत दिशा विधेयक में 16 वर्ष से कम आयु की नाबालिग के साथ बलात्कार और सामूहिक बलात्कार में सजा-ए-मौत का प्रावधान तय किया गया।

स्पेशल पुलिस और कोर्ट का है प्रावधान

अपराजिता की तरह, दिशा ने भी महिलाओं के खिलाफ अपराधों के मामलों की जांच और सुनवाई के लिए हर जिले में विशेष पुलिस दल और “विशेष अदालतें” बनाईं और ऐसे मामलों की जांच और सुनवाई के लिए कम समय सीमा निर्धारित की। इसने एक महिला एवं बाल अपराधी रजिस्ट्री का भी प्रस्ताव रखा, जिसमें महिलाओं के विरुद्ध अपराधों में “संलिप्त” लोगों का पूरा विवरण रखा जाएगा, तथा कानून प्रवर्तन एजेंसियों को उपलब्ध कराया जाएगा।

महाराष्ट्र में 2020 में आया था कानून

कुछ इसी तरह महाराष्ट्र में शक्ति विधेयक पेश किया गया था। साल 2020 में महाराष्ट्र विधानसभा ने शक्ति आपराधिक कानून विधेयक, 2020 पारित किया। शक्ति विधेयक ने भी बलात्कार के मामलों में मृत्युदंड की शुरुआत की और जांच और मुकदमे को समाप्त करने के लिए कम समयसीमा प्रदान की।

मृत्यु दंड: विधेयक में “जघन्य” एसिड हमले के मामलों में मृत्यु दंड का प्रावधान किया गया है, जहां सभी निर्णायक सबूत मिल जाएंगे। इसके अलावा पोक्सो एक्ट के तहत अपराजिता की तरह शक्ति में भी पोक्सो एक्ट में संशोधन कर यौन उत्पीड़न (धारा 4) के लिए मौत की सजा का प्रावधान किया है।

अब ये सभी कानून राष्ट्रपति के पास मान्यता के लिए लंबित हैं लेकिन महाराष्ट्र और आंध्र के बिल को अभी तक तो कोई मंजूरी नहीं दी गई है। अब यह देखना होगा कि पश्चिम बंगाल के नए बिल को मंजूरी कब तक मिलती है।