जम्मू-कश्मीर में 10 साल के बाद विधानसभा के चुनाव हो रहे हैं। चुनाव में बीजेपी नेकां-कांग्रेस के गठबंधन, पीडीपी और अन्य दलों से मुकाबला कर रही है। ऐसे में रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह के द्वारा चुनाव प्रचार के दौरान पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर यानी पीओके के लोगों को अपना बताने के बाद यह सवाल खड़ा हुआ है कि क्या यह बयान चुनाव में सियासी लाभ लेने की मंशा से दिया गया है?

पहले जानते हैं कि राजनाथ सिंह ने क्या कहा?

क्या कहा राजनाथ सिंह ने?

रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने कहा कि पीओके के लोगों को पाकिस्तान विदेशी मानता है जबकि हम भारत के लोगों को अपना मानते हैं। राजनाथ सिंह ने पीओके के लोगों से कहा कि वे भारत के साथ आ जाएं।

राजनाथ सिंह के बयान पर वहां मौजूद भाजपा के कार्यकर्ताओं और समर्थकों ने लेकर रहेंगे पीओके, हक हमारा पीओके के नारे लगाए।

इससे पहले भी बीजेपी के तमाम शीर्ष नेता पिछले कुछ सालों में पीओके को लेने की बात सार्वजनिक मंचों से कहते रहे हैं।

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विधानसभा चुनाव में निर्दलीय उम्मीदवारों की संख्या बढ़ी। (Source-Omar Abdullah FB Page)

पीओके के लिए आरक्षित हैं 24 सीटें

जम्मू-कश्मीर में विधानसभा की कुल 90 सीटें हैं लेकिन 24 सीटें पीओके के लिए आरक्षित रखी गई हैं। इस बार लोकसभा चुनाव के प्रचार के दौरान बीजेपी के तमाम बड़े नेताओं ने पीओके को लेकर बयान दिए।

साल 2016 में 15 अगस्त वाले दिन जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लाल किले से भाषण दिया था तब उन्होंने पीओके का जिक्र किया था और बलूचिस्तान में मानवाधिकार उल्लंघन का मामला भी उठाया था।

लोकसभा चुनाव के दौरान आए बीजेपी के दिग्गजों के बयान

इस साल लोकसभा चुनाव के प्रचार के दौरान बीजेपी के तमाम बड़े नेताओं ने एक के बाद एक पीओके को लेकर बयान दिए। उस दौरान बीजेपी समर्थकों द्वारा यह कहा जाता था कि अगर बीजेपी को जोरदार बहुमत मिला तो पीओके एक बार फिर से भारत का हिस्सा बन जाएगा।

मई में भी राजनाथ सिंह ने न्यूज एजेंसी PTI को दिए इंटरव्यू में कहा था कि भारत को पीओके पर कब्जा करने के लिए ताकत का इस्तेमाल नहीं करना पड़ेगा क्योंकि वहां के लोग खुद ही कहेंगे कि हमें भारत में विलय कर देना चाहिए। राजनाथ ने कहा था कि पीओके हमारा था और हमारा ही रहेगा।

मई के महीने में ही विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने एक कार्यक्रम में कहा था कि पीओके भारत का हिस्सा है। गृहमंत्री अमित शाह ने मई में न्यूज एजेंसी ANI को दिए इंटरव्यू में कहा था कि पीओके भारत का हिस्सा है और हम इसे लेकर ही रहेंगे।

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जम्मू-कश्मीर चुनाव की हर डिटेल

…6 महीने के भीतर पीओके भारत का हिस्सा होगा

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने तो एक चुनावी रैली में इस सबसे आगे बढ़कर यह दावा किया था कि अगर नरेंद्र मोदी लगातार तीसरी बार प्रधानमंत्री बने तो 6 महीने के भीतर पीओके भारत का हिस्सा होगा। इसी तरह असम के मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा ने भी लोकसभा चुनाव प्रचार के दौरान कहा था कि अगर बीजेपी को 400 से ज्यादा सीटें मिली तो पीओके को भारत में मिला लिया जाएगा।

सरकार बनने के बाद दोहराया स्टैंड

लगातार तीसरी बार सरकार बनने के बाद पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष और केंद्रीय मंत्री जेपी नड्डा ने इस साल जुलाई में जम्मू-कश्मीर बीजेपी की एक बैठक में कहा था कि पीओके को वापस लाना बीजेपी के एजेंडे में शामिल है।

मोदी सरकार के मंत्री प्रताप राव जाधव ने जुलाई में कहा था कि अगर लोकसभा चुनाव में एनडीए गठबंधन को 400 से ज्यादा सीटें मिलती तो पीओके को भारत में शामिल करना और 1962 में चीन द्वारा कब्जा की गई जमीन को वापस हासिल करना संभव हो जाता।

राउत ने उठाए थे सवाल

बीजेपी के बड़े नेताओं के द्वारा लगातार इस तरह के दावे किए जाने के बाद उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली शिवसेना के प्रवक्ता संजय राउत ने कहा था कि पिछले 10 सालों में पीओके को भारत का हिस्सा बनाने से बीजेपी को किसने रोका था?

कैसे बना पीओके?

आजादी के बाद भारत और पाकिस्तान के बीच कश्मीर को लेकर युद्ध हुआ था। 1949 में जब युद्ध विराम हुआ तो पीओके अस्तित्व में आया। इसमें जम्मू और कश्मीर के वे हिस्से शामिल थे जिन पर पाकिस्तान की सेना ने कब्जा कर लिया था।

पीओके पर पाकिस्तान कहता है कि यह उसका हिस्सा नहीं है बल्कि कश्मीर से ‘मुक्त कराया गया’ हिस्सा है। पाकिस्तान के संविधान में देश में चार प्रातों की बात कही गई है और पंजाब, सिंध, बलूचिस्तान और खैबर पख्तूनख्वा को इसमें शामिल किया गया है।

पीओके का इलाका तीन डिवीजनों – मीरपुर, मुजफ्फराबाद, और पुंछ के तहत 10 जिलों में बंटा हुआ है। इसकी राजधानी मुजफ्फराबाद है। भारत पाकिस्तान पर आरोप लगाता है कि वह पीओके की जमीन का इस्तेमाल उसके खिलाफ आतंकवाद फैलाने के लिए करता है।

बीजेपी के सामने नेकां-कांग्रेस की चुनौती

जम्मू-कश्मीर के चुनाव में बीजेपी के सामने बड़ी मुश्किल यह है कि उसे नेशनल कांफ्रेंस और कांग्रेस के गठबंधन का मुकाबला करना है। पिछले चुनाव में सबसे ज्यादा सीटें जीतने वाली पीडीपी भी मजबूती के साथ चुनाव लड़ रही है।

इसके अलावा कश्मीर में पिछले कुछ महीनों में हुई लगातार आतंकी घटनाओं और घुसपैठ की वजह से विपक्षी दलों ने बीजेपी के उस दावे पर सवाल उठाया है जिसमें यह कहा गया था कि अनुच्छेद 370 खत्म होने से आतंकवाद खत्म हो जाएगा। याद दिलाना होगा कि 5 अगस्त 2019 को मोदी सरकार ने कश्मीर से अनुच्छेद 370 को खत्म कर दिया था और उसके बाद राज्य को दो हिस्सों में बांटकर इन्हें केंद्र शासित प्रदेश घोषित कर दिया था।

जम्मू-कश्मीर में विधानसभा की 90 सीटें हैं। इसमें से 43 सीटें जम्मू में और 47 सीटें कश्मीर में हैं। बीजेपी की कोशिश जम्मू संभाग की सीटों पर ज्यादा मजबूती से चुनाव लड़कर सरकार बनाने की है।

अखंड भारत का सपना

बीजेपी पिछले कुछ सालों में पीओके को वापस लाने की बात कहकर इसे राष्ट्रवाद से जोड़ती रही है। सोशल मीडिया पर भी पार्टी की विचारधारा का समर्थन करने वाले लोग दावा करते हैं कि बीजेपी पीओके को वापस भारत में मिलाकर अखंड भारत बनाने की दिशा में आगे बढ़ेगी।

जम्मू में आगे रही बीजेपी, कश्मीर में नहीं उतारे उम्मीदवार

लोकसभा चुनाव के नतीजे के लिहाज से बीजेपी जम्मू-कश्मीर में 29, नेशनल कॉन्फ्रेंस 34, कांग्रेस 7, पीडीपी 5 और इंजीनियर राशिद 14 विधानसभा सीटों पर आगे रहे थे। सज्जाद लोन की पीपल्स कांफ्रेंस एक सीट पर आगे रही थी।

राजनीतिक दलसीटें (87)
पीडीपी 28
बीजेपी25
नेशनल कांफ्रेंस15
कांग्रेस12
पीपुल्स कांफ्रेंस2
सीपीएम1
पीपुल्स डेमोक्रेटिक फ्रंट1
निर्दलीय3

जम्मू की 43 विधानसभा सीटों में से 34 सीटें हिंदू-बहुल हैं और इन सीटों पर हिंदू मतदाता ही जीत-हार तय करेंगे। बीजेपी का लक्ष्य है कि इन सभी 34 सीटों और राजौरी और पुंछ में कुछ मुस्लिम बहुल सीटों पर जीत हासिल की जाए जिससे वह जम्मू संभाग में 40 सीटों के आंकड़े तक पहुंच सके।

बीजेपी ने कश्मीर की तीन लोकसभा सीटों- श्रीनगर, बारामुला और अनंतनाग में से किसी भी सीट पर चुनाव नहीं लड़ा था। पार्टी को विधानसभा चुनाव में कश्मीर से बहुत ज्यादा कामयाबी की उम्मीद नहीं दिखाई देती। ऐसे में उसकी कामयाबी का पूरा दारोमदार जम्मू पर ही निर्भर करेगा। इसलिए पार्टी की कोशिश राष्ट्रवाद के एजेंडे को धार देते हुए पीओके के मुद्दे के जरिए चुनाव में सियासी बढ़त लेने की भी हो सकती है।