दस जुलाई रक्षामंत्री राजनाथ सिंह का जन्मदिन होता है। पीएम मोदी, गृहमंत्री अमित शाह, यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ समेत बीजेपी के तमाम बड़े नेताओं ने राजनाथ सिंह को जन्मदिन की शुभकामनाएं दी हैं। राजनाथ सिंह ने अपने करियर की शुरुआत एक टीचर के रूप में की थी। आइये जानते हैं उनके जीवन से जुड़ा वह किस्सा जब जेल में रहने के दौरान उनकी मां ने राजनाथ सिंह से कहा था कि भले ही तुम्हें अपना पूरा जीवन जेल की सलाखों के भीतर बिताना पड़े, कभी झुकना नहीं।
गौतम चिंतामणि ने अपनी किताब राजनीति – ए बायोग्राफी ऑफ राजनाथ सिंह (पेंग्विन प्रकाशन) में लिखा है कि यह घटना तब की है जब के.बी. पोस्ट ग्रेजुएट कॉलेज में फिजिक्स पढ़ाने के दौरान राजनाथ सिंह 1972 में मिर्ज़ापुर के आरएसएस कार्यवाह (महासचिव) बने। साल 1975 की शुरुआत में जनसंघ में शामिल होने के कुछ ही महीनों बाद राजनाथ सिंह को पदोन्नत करके जिला अध्यक्ष, मिर्ज़ापुर बनाया गया और वे उत्तर प्रदेश के सबसे बड़े जिले में जेपी आंदोलन के समन्वयक बन गए। इसी बीच राजनाथ सिंह ने राष्ट्रीय राजनीति में कदम रखा।
12 जुलाई 1975 को राजनाथ सिंह जैसे ही सुबह व्यायाम और स्नान के बाद बाहर निकलने वाले थे, उन्हें मिर्ज़ापुर पुलिस ने MISA के तहत गिरफ्तार कर लिया। अपनी गिरफ्तारी के समय तक, राजनाथ सिंह लोकप्रिय हो गए थे, जिन्होंने जेपी आंदोलन कार्यक्रमों को बढ़ावा दिया था और अधिकारियों को उन्हें हल्के में न लेने का निर्देश दिया गया था। मीसा के तहत गिरफ्तार किए गए किसी भी व्यक्ति को बाहर के लोगों से मिलने की अनुमति नहीं थी इसलिए राजनाथ सिंह से किसी को भी मिलने देने से इंकार कर दिया गया था।
पत्नी सावित्री और मां गुजराती देवी ने राजनाथ सिंह से मिर्ज़ापुर रेलवे स्टेशन पर मिलने का फैसला किया
मिर्ज़ापुर जेल में कुछ दिन बिताने के बाद, राजनाथ को इलाहाबाद के पास नैनी सेंट्रल जेल में स्थानांतरित कर दिया गया। स्थानांतरण के बारे में सुनकर, पत्नी सावित्री और मां गुजराती देवी ने राजनाथ सिंह से मिर्ज़ापुर रेलवे स्टेशन पर मिलने का फैसला किया, जहाँ उन्हें ले जाने वाली ट्रेन थोड़ी देर के लिए रुकने वाली थी।

गिरफ्तार होने के दिन से ही सावित्री ने अपने पति को नहीं देखा था लेकिन गुजराती देवी को अपने बेटे को देखे हुए कई महीने हो गए थे। जिस दिन राजनाथ को ट्रेन से ले जाया जा रहा था, दोनों ट्रेन आने से कुछ घंटे पहले स्टेशन पहुंच गईं। कोई नहीं जानता था कि वह कितने समय तक हिरासत में रहेंगे और देश भर में हजारों लोगों को हिरासत में लिए जाने की खबर ने परिवार के डर को और बढ़ा दिया था।
स्टेशन पर चारों तरफ थी भीड़
ट्रेन अपने नियत समय से थोड़ी देर से पहुंची और जल्द ही प्लेटफॉर्म पुलिस कर्मियों से भर गया। कुछ ही सेकंड में पुलिसकर्मियों ने गुजराती देवी और सावित्री को ट्रेन से दूर कर दिया। हथकड़ी लगाए हुए और पुलिसकर्मियों द्वारा पकड़े रखे हुए राजनाथ सिंह अपनी पत्नी और मां से मिलने की उम्मीद में ट्रेन से बाहर निकले। उन्होंने उन्हें कुछ दूरी पर देखा लेकिन उनके और परिवार के बीच पुलिसकर्मियों की भारी संख्या के कारण उनसे मिलना असंभव हो गया।
चौबीस साल की उम्र में राजनाथ सिंह, राजनीति में अपना पहला कदम रखने वाले एक युवा व्यक्ति थे, लेकिन सुरक्षा कर्मियों ने उनके साथ एक कठोर अपराधी की तरह व्यवहार किया। जेपी आंदोलन के दौरान सिंह ने जिन लोगों के साथ काम किया था, उनमें से कुछ लोग भी रेलवे स्टेशन पर पहुंच गए और उन्होंने नारेबाजी शुरू कर दी। राजनाथ के लिए अपनी मां या पत्नी की बात सुनना असंभव हो गया।
मां ने राजनाथ से कहा- माफी नहीं मांगना
तमाम शोर-शराबे और नारेबाजी के बीच परिवार ने उनसे अपना संघर्ष जारी रखने को कहा। जैसे ही पुलिसकर्मियों ने राजनाथ सिंह को दूर किया उन्होंने मां गुजराती देवी की बात सुनी। अपने बेटे के भविष्य के बारे में अनिश्चितता के बावजूद, गुजराती देवी ने उनसे केवल एक ही बात कही कि झुकना नहीं। मां ने कहा, “बबुआ, माफ़ी मांगे के नहीं। चाहे उमर भर काल-कोठरी में क्यों न कट जाए। कभी सर मत झुकाना।’ (कभी माफ़ी मत मांगना, मेरे बेटे, भले ही तुम्हें अपना पूरा जीवन जेल की सलाखों के भीतर बिताना पड़े, कभी झुकना नहीं)।
यह सुनकर कि मां ने उनसे कभी हार न मानने को कहा राजनाथ सिंह गर्व से भर गए और उन्होंने अपने आंसुओं को कंट्रोल किया। कई पुलिसकर्मी भी उनकी मां की टिप्पणी से भावुक हो गए। वह आखिरी बार था जब राजनाथ सिंह ने अपनी मां को देखा था।
कैसा था राजनाथ सिंह का शुरुआती जीवन
राजनाथ सिंह का जन्म 10 जुलाई 1951 को भभौरा गांव में एक राजपूत परिवार में हुआ था। यह गांव उस समय उत्तर प्रदेश के वाराणसी जिले में था और बाद में चंदौली जिले का हिस्सा बन गया। उनके पिता राम बदन एक स्वतंत्रता सेनानी थे। पिता राम बदन सिंह और मां गुजराती देवी की सात संतानों (तीन बेटों और चार बेटियों) में सबसे छोटे, राजनाथ अक्सर अपने पिता को उन लोगों की बातें धैर्यपूर्वक सुनते हुए देखते थे, जिन्हें वह पहचान नहीं पाते थे और थोड़ी देर बाद कागज के एक टुकड़े पर कुछ लिखते थे।
राजनाथ सिंह की प्रारंभिक शिक्षा घर पर हुई थी, जिसके बाद उनका दाखिला एक स्थानीय प्राथमिक विद्यालय में कराया गया, जहां वह हमेशा अपनी क्लास में फर्स्ट आते थे। अपने तेरहवें जन्मदिन पर राजनाथ को डबल प्रमोशन मिला और वे अपने सहपाठियों से आगे निकल गये।
आरएसएस से ऐसे हुआ जुड़ाव
इसी दौरान स्कूल और आसपास के स्थानों पर जाने वाले स्थानीय आरएसएस प्रचारकों में से एक ने सीखने के प्रति राजनाथ की रुचि को देखा और उन्हें संघ द्वारा आयोजित कार्यक्रमों में अपने साथ जाने के लिए आमंत्रित किया। तहसील प्रचारक ने राजनाथ को स्थानीय शाखा से परिचित कराया।
राजनाथ सिंह ने मास्टर्स करने के लिए गोरखपुर विश्वविद्यालय में दाखिला लिया, जिसके बाद ही वह कॉलेज स्तर पर राजनीति में हिस्सा लेने लगे। वह आरएसएस के छात्र संघ अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) के सदस्य बन गए और जल्द ही अपने संगठनात्मक कौशल और अनुशासन, समर्पण की बदौलत नाम कमाया।