बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को इन दिनों भाजपा के खिलाफ महागठबंधन बनाने के प्रयासों और एक किताब की वजह से चर्चा में है। एक किताब, जिसे नीतीश कुमार के दोस्तों ने लिखी है। किताब में नीतीश कुमार के जीवन के कई अनछुए पहलुओं पर विस्तार से लिखा गया है। मसलन- नीतीश कुमार बचपन में लूडो खूब खेलते थे।

राजकमल प्रकाशन से छपी ‘नीतीश कुमार- अंतरंग दोस्तों की नजर से’ में बताया गया है कि नीतीश कुमार को किशोरावस्था से ही फिल्म देखना काफी पसंद था। बख्तियारपुर में उनके घर के सामने ही ‘राष्ट्रीय चित्र मन्दिर’ नामक एक बेहद पुराना सिनेमा हॉल था।

नीतीश के साथी लिखते हैं, “हमने वहां अनगिनत फिल्में एक साथ देखी थी। पहले तो वे कोई भी फिल्म देख लेते थे, लेकिन बाद में वैसी ही फिल्में उन्हें पसंद आने लगीं जिनका समाज से सीधा सम्बन्ध होता, जिनमें कोई सन्देश होता था।”

पटना में पत्नी और दस्तों के साथ देखते थे फिल्म

पटना में रहते हुए नीतीश अपनी पत्नी मंजू और दोस्तों के साथ फिल्म देखने जाया करते थे। मंजु को रेडियो पर गाने सुनने का भी बड़ा शौक़ था जिस वजह से नीतीश कुमार का घर पूरे दिन गुलज़ार रहता था।

नीतीश के दोस्त कौशल बताते हैं, “कॉलेज के दिनों में गंभीर फिल्में देखते समय किशोर नीतीश उनमें पूरी तरह डूब जाता, खो जाता। बीच में कोई सीटी बजती या शोर होता तो नीतीश झुंझला भी जाता।”

फिल्मों का ही रहा साथ…

केंद्र की राजनीति के लिए दिल्ली शिफ्ट होने के बाद रेडियो का साथ छूट गया। नीतीश के दोस्त लिखते हैं कि जब वह रेलमंत्री थे, तब उनके सहायकों ने ज़बरदस्ती सरकारी निवास में बैडमिंटन का कोर्ट बनवा दिया जहां वह एकाध हफ़्ते खेला भी, पर वह शौक़ भी मौसमी ही साबित हुआ। कुल मिलाकर फिल्में ही उसके जीवन में कुछ दिनों के लिए मनोरंजन का साधन रहीं।”

राजकपूर पसंदीदा कलाकार

नीतीश के एक दोस्त मुन्ना सरकार बताते हैं, “नेताजी के पसंदीदा कलाकार राजकपूर थे। इसकी वजह यह थी कि राजकपूर के ज्यादातर किरदारों की आंखों में सुनहरे कल के सपने होते थे और होंठों पर आशा के गीत। राजकपूर जिस किरदार को निभाते उसमें पूरी तरह डूब जाते। उनकी किसी फिल्म में साहिर लुधियानवी का लिखा एक गीत नेताजी को शुरू से ही बहुत पसंद है- वो सुबह कभी तो आएगी- बीतेंगे कभी तो दिन आख़िर, ये भूख के और बेकारी के, टूटेंगे कभी तो बुत आख़िर, दौलत की इजारादारी के, जब एक अनोखी दुनिया की बुनियाद उठाई जाएगी, वो सुबह कभी तो आएगी!