लोकसभा चुनाव की घोषणा से बमुश्किल एक महीना पहले कांग्रेस संसदीय दल (CPP) की अध्यक्ष सोनिया गांधी ने अपनी सीट रायबरेली से चुनाव लड़ने के बजाय राज्यसभा के रास्ते संसद पहुंचने का विकल्प चुना है। सोनिया गांधी साल 2004 से लगातार रायबरेली की सांसद चुनी गई हैं।
अब कांग्रेस के अंदरूनी हलकों में चर्चा है कि सोनिया गांधी की बेटी और अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी (AICC) की महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा रायबरेली से चुनाव लड़ सकती हैं। प्रियंका गांधी ने पहले कभी सांसदी का चुनाव नहीं लड़ा है, बतौर उम्मीदवार यह उनका पहला इलेक्शन हो सकता है।
रायबरेली से गांधी परिवार का पुराना कनेक्शन
आजादी के बाद से अब तक सिर्फ तीन बार (1977, 1996 और 1998) ऐसा हुआ है, जब रायबरेली से कांग्रेस का सांसद न हो। कांग्रेस में भी नेहरू-गांधी परिवार का इस सीट पर दबदबा रहा है। केवल चार बार नेहरू-गांधी परिवार के अलावा कांग्रेस का कोई नेता रायबरेली से सांसद रहा है।
भारत के पहले आम चुनाव (1952) में फिरोज गांधी ने रायबरेली से चुनाव लड़ा था। वह 1957 का आम चुनाव भी इस सीट से जीते। 1960 में फिरोज गांधी की मौत के बाद इंदिरा गांधी रायबरेली से सांसद रहीं। उनके बाद नेहरू-गांधी परिवार के ही अरुण नेहरू और शीला कौल ने प्रतिनिधित्व किया। 2004 से सोनिया रायबरेली की सांसद हैं।
इलाहाबाद से टिकट नहीं मिलने पर रायबरेली पहुंचे थे फिरोज
इंदिरा के पति और नेहरू के दामाद फिरोज गांधी ने भारत में अपनी राजनीतिक गतिविधियों की शुरुआत इलाहाबाद से की थी। नेहरू परिवार की तरह फिरोज का ठिकाना भी इलाहाबाद ही था। 1952 के पहले आम चुनाव में फिरोज को राष्ट्रीय स्तर पर अपनी क्षमताओं को साबित करना था। लेकिन उनके लिए अपने घरेलू मैदान से चुनाव लड़ना संभव नहीं था।
इलाहाबाद से चुनाव लड़ने के लिए कांग्रेस के ऐसे-ऐसे दिग्गज मैदान में थे, जिनसे मुकाबला करना फिरोज के लिए संभव नहीं था। जैसा कि हम जानते हैं इलाहाबाद में महत्वपूर्ण कांग्रेस नेताओं की कमी नहीं थी। जवाहरलाल नेहरू, लाल बहादुर शास्त्री, मसुरिया दीन और कई अन्य बड़े नेता थे जिनके पास इलाहाबाद से टिकट का दावा करने के लिए फिरोज़ से कहीं ज्यादा बड़े कारण थे।

तय हुआ था कि इलाहाबाद की लोकसभा सीटों से जवाहरलाल नेहरू और मसुरिया दीन चुनाव लड़ेंगे। शास्त्री ने 1952 का लोकसभा चुनाव नहीं लड़ा। वह राज्यसभा के रास्ते संसद पहुंचे थे। इस तरह फिरोज गांधी को इलाहाबाद के कई दूसरे स्वतंत्रता सेनानियों की तरह अन्य निर्वाचन क्षेत्र की तलाश करनी पड़ी।
एक स्वतंत्रता सेनानी ने बुलाया था रायबरेली
स्वतंत्रता सेनानी रफी अहमद किदवई अपने ज़माने के महान राजनेता थे। तब उनके अनुयायियों को करने वालों को ‘राफ़ियन’ कहा जाता था। फिरोज गांधी महत्वपूर्ण राफ़ियनों में से एक थे, इसलिए जब वह इलाहाबाद से चुनाव नहीं लड़ सके, तो रफी ने उन्हें रायबरेली बुला लिया। चूंकि रफी ने स्वतंत्रता संग्राम के दौरान रायबरेली में अच्छा काम किया था, इसलिए वहां उनका बहुत सम्मान किया जाता था।
रफी अहमद किदवई ने रायबरेली के लोगों को फिरोज गांधी का दिया। नेहरू परिवार से उनके पारिवारिक संबंधों के बारे में बताया। रायबरेली के लोगों के लिए एक बड़ी घटना थी।
फिरोज गांधी ने चुनाव जीतने के लिए के लिए बहुत मेहनत की थी। उन्होंने अपने लिए एक प्रभावी अभियान तय किया था। इंदिरा भी रायबरेली पहुंची थीं और चुनाव कार्य में अपने पति की सहायता के लिए कई दिनों तक वहां रही थीं। व्यस्त चुनावी दौरों के बीच जवाहरलाल भी रायबरेली गए थे और फिरोज गांधी के निर्वाचन क्षेत्र में तीन-चार बैठकों को संबोधित किया था।
गांवों में जीजा जैसा मिला सत्कार
बर्टिल फॉक (Bertil Falk) द्वारा लिखी फिरोज गांधी की जीवनी ‘Feroze: The Forgotten Gandhi’ में बताया गया है, जब फिरोज गांधी चुनाव प्रचार के लिए गांवों में घूमते रहे थे, तो लोगों उन्हें ‘जीजा’ की तरह सत्कार देते थे।
बर्टिल फॉक ने लिखा है, “1997 में जब मेरी मुलाकात आर.के.पाण्डेय से हुई, तब वे रायबरेली में स्वतंत्रता सेनानी संघ के अध्यक्ष और उत्तर प्रदेश में स्वतंत्रता सेनानी संघ के कोषाध्यक्ष होने के साथ-साथ अखिल भारतीय स्वतंत्रता सेनानी संघ के सदस्य भी थे। उन्हें रायबरेली का वह चुनावी अभियान अच्छे से याद है। उस समय फिरोज गांधी लक्ष्मी होटल में रुके थे और इंदिरा गांधी बेली गंज में रुकी थीं। वे अलग-अलग स्थानों पर प्रचार कर रहे थे और वे एक-दूसरे के कार्यक्रमों के बारे में पत्रों के माध्यम से संवाद करते थे।”
पांडे ने बर्टिल फॉक को बताया है, “कांग्रेस ने मुझे इंदिरा जी की सुरक्षा के लिए नियुक्त किया था और मैं पूरे दिन उनके साथ रहता था, जब वह एक दिशा में जाती थीं और फ़िरोज़ गांधी दूसरी दिशा में… फिरोज साहब गांवों में जाते थे और बहुत अच्छी हिंदी बोलते थे। मैंने उसके जैसा सुन्दर व्यक्ति कभी नहीं देखा था। इंदिरा जी के कारण गांवों में उनके साथ जीजा जैसा व्यवहार किया जाता था, जहां लोग उनके पैर भी धोते थे। उन्हें बहुत सम्मान दिया जाता था और वे जो भी कहते थे, हर कोई हाथ उठाकर उनका समर्थन करता था। इंदिरा फिरोज के आने से पहले से ही लोकप्रिय थीं क्योंकि वह नेहरू जी की बेटी थीं और 1930 में नमक आंदोलन के दौरान वह यहां भी आई थीं। जब फिरोज यहां से चुने गए और उन्होंने रायबरेली के लिए काम करना शुरू कर दिया, तो और अधिक लोकप्रिय हो गए।”