मनराज ग्रेवाल शर्मा

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1984 में पंजाब के अमृतसर में स्वर्ण मंदिर परिसर को आतंकवादियों के कब्जे से छुड़ाने के लिए ऑपरेशन ब्लू स्टार चलाया गया था। इस खालिस्तानी गुट का नेतृत्व जरनैल सिंह भिंडरावाले कर रहा था। 6 जून,1984 की देर रात दमदमी टकसाल प्रमुख जरनैल सिंह भिंडरावाले की लाश सेना को मिली और इसके बाद अगले दिन ऑपरेशन ब्लू स्टार खत्म हो गया। लेकिन, भिंडरावाले के खात्मे के सालों बाद भी पंजाब में उसका समर्थन नजर आता है। हाल ही में कुछ ऐसी घटनाएं सामने आई हैं, जिसके बाद सियासी पारा चढ़ा हुआ है।

पंजाब में राज्य सरकार के स्वामित्व वाली PEPSU रोड ट्रांसपोर्ट कॉरपोरेशन की कुछ बसों में भिंडरवाले की तस्वीरों का इस्तेमाल किया गया था, जिसको लेकर आप सरकार पर हमले किए जाने लगे थे। इसके बाद परिवहन निगम के एक नोडल अधिकारी ने इन तस्वीरों को हटाने का आदेश दिया, जिसका कुछ संगठनों ने विरोध किया तो इस आदेश को तुरंत रद्द कर दिया गया था।

इसी तरह, शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी ने पंजाबी विश्वविद्यालय, पटियाला में चौथे सेमेस्टर की राजनीति विज्ञान की किताब में भिंडरवाले को आतंकवादी बताए जाने पर आपत्ति जताई थी। विश्वविद्यालय ने तुरंत प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि वह संशोधन करेगा। पंजाब में सार्वजनिक स्थलों पर भिंडरावाले की मौजूदगी आम बात है। बसों, कैब और मंदिरों में, भिंडरावाले की तस्वीरें नजर आती हैं।

पंजाब यूनिवर्सिटी के राजनीति विज्ञान के एक प्रोफेसर ने नाम न छापने की शर्त पर बताया, “भिंडरावाले जब ऑपरेशन ब्लू स्टार के दौरान सेना की कार्रवाई में मारा गया, लोगों के जेहन में जीवित हो गया। अगर सुरक्षित बच निकलने के उनके प्रस्ताव को उसने मान लिया तो उसे भुला दिया गया होता। सिख परंपरा ‘शहादत’ या बलिदान को महत्व देती है और तमाम असफलताओं के बावजूद भिंडरावाले इसका हिस्सा बन गया।” राज्य की सरकारों ने, चाहे कांग्रेस हो या अकाली-भाजपा गठबंधन, इस बहस से बचती रहीं हैं।

वहीं, विपक्ष का दावा है कि पिछले सप्ताह की घटना आप सरकार की अपरिपक्वता का एक और उदाहरण है। वरिष्ठ अकाली नेता डॉ दलजीत चीमा का कहना है कि कुछ चीजों को नजरअंदाज कर दिया जाता है। आमतौर पर किसी व्यक्ति या स्थिति के बारे में लोगों के अलग-अलग दृष्टिकोण होते हैं। सरकार की किसी भी तरह की अति प्रतिक्रिया से स्थिति विस्फोटक हो सकती है।

प्रदेश भाजपा के महासचिव सुभाष शर्मा ने इसे सरकार की ‘कमजोरी’ का उदाहरण बताते हुए कहा, “पंजाब में कुछ लोग हमेशा भिंडरांवाले के पक्ष में बोलते थे, तब भी जब अकाली-भाजपा सत्ता में थे। लेकिन वह कभी एक मुद्दे के रूप में नहीं उभरा क्योंकि हमारा एक अलग एजेंडा था।”