सामान्य ज्ञान का एक प्रश्न है कि देश के पहले गैर कांग्रेसी प्रधानमंत्री कौन थे? इस सवाल के जवाब में ही नत्थी है एक तथ्य जो मौजूदा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से जुड़ता है। पीएम मोदी गुजरात से ताल्लुक रखते हैं, देश के पहले गैर कांग्रेसी प्रधानमंत्री भी गुजरात से ही थे। इसके अलावा कई ऐसी बातें हैं जो दोनों गुजराती प्रधानमंत्री में समान है। दोनों दक्षिणपंथी विचारधारा के संवाहक रहे। दोनों ने ही इंदिरा गांधी के आपातकाल के दौरान संघर्ष किया। दोनों ही कांग्रेस को सत्ता से हटाकर प्रधानमंत्री बने और सबसे दिलचस्प दोनों ने ही अपने कार्यकाल में नोटबंदी की।
नरेंद्र मोदी से बहुत पहले प्रधानमंत्री बनने वाले इस गुजराती नेता का नाम था मोरारजी देसाई। देसाई भारत के छठे प्रधानमंत्री थे। प्रधानमंत्री तो ये नेहरू के बाद ही बनना चाहते थे लेकिन इनकी दावेदारी को दूसरे नेता दांव देते रहे। पहले साफ छवी वाले लालबहादुर शास्त्री पर सहमति बन गई। 1966 में शास्त्री गुजरे तो के. कामराज ने इंदिरा गांधी का नाम आगे कर दिया। इस बार थोड़ा हो-हल्ला हुआ। देसाई के नेतृत्व में वरिष्ठ काग्रेसियों ने खिलाफत भी की लेकिन ‘किंगमेकर कामराज’ अपने मंसूबे को पूरा करने में सफल रहे। इस तरह मोरारजी देसाई को प्रधानमंत्री बनने का मौका 27 मार्च, 1977 को मिला।
आन्दोलन से मिली थी कुर्सी : पीएम की कुर्सी तक पहुंचने के लिए देसाई को इंदिरा गाधी के आपातकाल के खिलाफ जेपी के साथ मिलकर देशव्यापी आन्दोलन चलाना पड़ा था। 1977 के आम चुनाव में देसाई जिस जनता पार्टी से प्रधानमंत्री बने, उसमें दक्षिण से लेकर वाम तक और गांधीवादी से लेकर समाजवादी तक शामिल थे। जनता पार्टी की इसी खासियत से मोरारजी देसाई को कुर्सी मिली भी और चली भी गई।
मोरारजी देसाई मात्र दो साल तक प्रधानमंत्री रहे। हालांकि इस संक्षिप्त कार्यकाल के दौरान भी उनकी सरकार के खिलाफ राजनीतिक कुठाराघात और गुटबाजी खूब हुई। आपातकाल के बाद खुद प्रधानमंत्री बनने की इच्छा रखने वाले किसान नेता चौधरी चरण सिंह ने मोरारजी सरकार को सबसे अधिक तंग किया था। दरअसल चरण सिंह सरकार में शामिल आर.एस.एस और जनसंघ के सदस्यों की दोहरी सदस्यता के खिलाफ थे। उनका कहना था, जनता पार्टी में शामिल जनसंघ के लोग एक ही साथ राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और जनता पार्टी के सदस्य नहीं रह सकते। चरण सिंह की इस मांग को राजनारायण और कुछ अन्य समाजवादी नेताओं का समर्थन प्राप्त था।
कुर्सी गई लेकिन समझौता नहीं किया : इंदिरा गांधी के आपातकाल के खिलाफ हुए आन्दोलन में जेपी ने जनसंघ के नेताओं को इसी शर्त पर शामिल किया था कि वे आर.एस.एस की सदस्यता को पूरी तरह से छोड़ देंगे। तब जनसंघ के नेताओं ने यकीन दिलाया था कि वो ऐसा करेंगे। सरकार बनने के बाद जब समाजवादियों ने जनसंघ के नेताओं की दोहरी सदस्यता पर सवाल उठाया तो उन्होंने सदस्या छोड़ने से मना कर दिया। ऐसे में जनता पार्टी का टूटना लगभग तय हो गया। कांग्रेस भी दरार का फायदा उठाने से न चूकी। मोरारजी देसाई ने भी समझौते कर पद पर बने रहने की कोशिश नहीं की और 16 जुलाई, 1979 को प्रधानमंत्री पद छोड़ दिया। जनता पार्टी में अपने खिलाफ विद्रोह शुरू होता देख मोरारजी देसाई ने राष्ट्रपति को अपना इस्तीफा सौंपा, संजीव रेड्डी ने इस्तीफा स्वीकार करते हुए उन्हें नई सरकार बनने तक कार्यवाहक पीएम के रूप में बने रहने के लिए कहा। अपने एक इंटरव्यू में देसाई ने कहा, ”कई लोग कहते हैं कि मैं थोड़ा सा समझौता कर लूं। समाधान कर लूं। यानी कीमत चुका दूं। तो वह तो रिश्वत ही है। किस तरह करता मैं ऐसा समझौता?”

वरिष्ठ पत्रकार और लेखर रशीद किदवई अपनी किताब में बताते हैं कि जून 1979 में चरण सिंह ने संजय गांधी के साथ मिलकर मोरराजी देसाई की सरकार को गिराने का प्लान बनाया था। जल्द ही प्लान को लागू किया गया और कांग्रस ने चरण सिंह को बाहर से समर्थन देकर प्रधानमंत्री बना दिया। तब एक अजीब सा नारा खूब चर्चित हुआ था, ”चरण सिंह लाए ऐसी आँधी, देश की नेता इंदिरा गांधी।” हालांकि ये गलबहियां ज्यादा दिन नहीं चली और कुछ माह बाद ही कांग्रेस ने समर्थन खींचकर चरण सिंह की सरकार गिरा दी।