Jawahar Lal Nehru His Life, Work and Legacy में ल‍िखे संस्‍मरण में मोहम्‍मद यूनुस ने इस घटना का ज‍िक्र करते हुए बताया है क‍ि कांग्रेसी कार्यकर्ता से खबर सुनते ही पंड‍ित नेहरू अपनी कार में सवार हुए और दंगाइयों के पास पहुंच गए। दंगाइयों ने नेहरू को देखते ही उनकी गाड़ी को घेर ल‍िया। वे ‘इंकलाब ज‍िंंदाबाद’, ‘पंड‍ित जवाहर लाल नेहरू की जय’ जैसे नारे लगाने लगे। पंड‍ित नेहरू कार की छत पर चढ़ गए और मुस्‍ल‍िमों के खून की प्‍यासी उस भीड़ को संबोध‍ित करने लगे।

भीड़ में शाम‍िल लोगों के हाथों में जो हथ‍ियार थे वे खून से सने थे। वे और खून के प्‍यासे थे। वे श‍िव‍िर में शरण पाए मुस्‍ल‍िमों का खून बहाने पर आमादा थे। वैसी उन्‍मादी भीड़ को काबू करने के मकसद से पंड‍ित नेहरू ने उन्‍हें संबोध‍ित करना शुरू क‍िया और आजादी के संघर्ष की याद द‍िलाई। उन्‍होंने कहा, ‘जो नारे अंग्रेजों के ख‍िलाफ लड़ाई में देश को आजाद कराने के ल‍िए लगाए गए, आज वही नारे मैं अपने ही देशवास‍ियों के खून के प्‍यासे लोगों से सुन रहा हूं।’ उनकी बातों ने जादू-सा असर क‍िया और जो भीड़ मुसलमानों को मारने-काटने पर आमादा थी, वह ह‍िंंदू-मुस्‍ल‍िम एकता के नारे लगाने लगी। उन्‍हें अपने क‍िए पर अफसोस भी हो रहा था। 

नेहरू की बातों को पाकिस्तान ने भारत के खिलाफ किया इस्तेमाल

सोनीपत से द‍िल्‍ली लौटने पर जवाहर लाल सीधे महात्‍मा गांधी से म‍िलने गए और उन्‍हें पूरी कहानी सुनाई। बाद में उन्‍होंने ऑल इंड‍िया रेड‍ियो के जर‍िए देश को संबोध‍ित क‍िया और उस संबोधन में वही बातें दोहराईं जो उन्‍होंने सोनीपत में दंगाइयों को शांत कराने के ल‍िए कही थीं और इसके बाद महात्‍मा गांधी से मुलाकात में हुई थीं। उन्‍होंने लोगों से नफरत छोड़, देश की एकता के ल‍िए काम करने की अपील की।

नेहरू की बातों को पाक‍िस्‍तान ने संयुक्‍त राष्‍ट्र (यूएन) में भारत के ख‍िलाफ इस्‍तेमाल क‍िया। उसने कहा क‍ि भारत में मुसलमान सुरक्ष‍ित नहीं हैं और इसका सबूत पंड‍ित नेहरू का द‍िया गया वक्‍तव्‍य है। 

पंड‍ित नेहरू पर पाक‍िस्‍तान के प्रोपैंगंडा का कोई असर नहीं हुआ। उन्‍होंने कहा- मैं ह‍िंंदुओं के भारत का प्रधानमंत्री नहीं बनूंगा, बल्‍क‍ि उन सबकी सेवा करना चाहूंगा जो यहां पले-बढ़े और रहना चाह रहे हैं। उन सबको शांत‍ि और इज्‍जत से रहने का हक है। मैं ऐसे ही भारत के ल‍िए जीना और मरना चाहूंगा।

कार की छत पर खड़े होकर भीड़ को किया संबोधित

इसी संस्‍मरण में मोहम्‍मद यूनुस ने नेहरू की द‍िलेरी की एक और कहानी बयां की है। यह क‍िस्‍सा सोनीपत की घटना से कुछ द‍िन पहले की है।

एक रात, 11 बजे डॉ. जाक‍िर हुसैन ने अचानक यूनुस को फोन क‍िया। डॉ. हुसैन ने भीड़ द्वारा जाम‍िया को घेर ल‍िए जाने और वहां फंसे लोगों की जान को खतरे में होने की घटना का पूरा ब्‍योरा बताया। वह पूरी तरह न‍िराश लग रहे थे। न‍िराशा के भाव में ही उन्‍होंने ‘खुदा हाफ‍िज’ कहा और फोन रख द‍िया। 

फोन रखते ही मोहम्‍मद यूनुस भागे-भागे पंड‍ित नेहरू के पास उनके अध्‍ययन कक्ष में पहुंच गए। वह अपने काम में लगे थे। उन्‍हें जाक‍िर साहब की कही सारी बातें सुनाईं।

यूनुस की बातें सुनते ही दोनों जाम‍िया म‍िल‍िया इस्‍लाम‍िया के ल‍िए न‍िकल गए। वहां पहुंचे तो देखा डॉ. जाक‍िर हुसैन और उनके सहयोगी असहाय और बदहवास से थे। बाहर ह‍िंंसक भीड़ तांडव मचा रही थी। 

आधी रात में प्रधानमंत्री को हॉल में देख क‍िसी ने कांपती आवाज में कहा, ‘आपने शान से ज‍िंदा रहने का सबक भी द‍िया और आधी रात में आकर इज्‍जत से मरना भी स‍िखा द‍िया। अब हमें कोई डर नहीं रहा।’

इस बीच, मामले की जानकारी सरदार पटेल को भी हो गई। द‍िल्‍ली में जो तबाही मची थी, उसके मद्देनजर जाम‍िया भेजने के ल‍िए पुल‍िस बल उपलब्‍ध नहीं था। इसल‍िए सरदार ने माउंट बेटन को फोन क‍िया। उन्‍होंने अपने अंगरक्षक सैन‍िकों को जाम‍िया भेजा और खुद भी गए।

वहां पहुंच कर माउंट बेटन ने देखा क‍ि जवाहर लाल भीड़ से घ‍िरे हुए हैं। उन्‍होंने अंगरक्षकों को सुरक्षा के ल‍िए हथ‍ियार उठाने का आदेश द‍िया। लेक‍िन, अगले ही पल पाया क‍ि नेहरू तो भीड़ को अपनी कार की छत से संबोध‍ित कर रहे हैं और उसके पागलपन पर चेतावनी दे रहे हैं।