भारत के 10वें प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी अपनी हाजिरजवाबी के लिए भी खासे मशहूर रहे। वाजपेयी से पहले प्रधानमंत्री रहे कांग्रेसी नेता नरसिम्हा राव के साथ वाजपेयी के संबंध बहुत गर्मजोशी वाले रहे। द इंडियन एक्सप्रेस की कंट्रीब्यूटिंग एडिटर नीरजा चौधरी अपने एक आर्टिकल में बताती हैं कि कैसे वाजपेयी ने राव को भरे मंच से गुरु घंटाल कर दिया था।

किताब विमोचन के कार्यक्रम की है घटना

अटल बिहारी वाजपेयी ने अपनी किताब ‘मेरी इक्यावन कविताएं’ के विमोचन में नरसिम्हा राव को आमंत्रित किया था। पुस्तक विमोचन कार्यक्रम का आयोजन दिल्ली के फिक्की ऑडिटोरियम में किया गया था। चौधरी उस ‘यादगार’ समारोह के बारे में लिखती हैं, कार्यक्रम में बोलते हुए पीवी नरसिम्हा राव ने अटल बिहारी वाजपेयी को राजनीतिक ‘गुरु’ कहा दिया। वाजपेयी ने तुरंत जवाब दिया: “अगर मैं गुरु हूं तो आप गुरु घंटाल हैं!”

प्रधानमंत्री रहते हुए राव ने कश्मीर को लेकर पाकिस्तान पर दबाव बनाने के लिए तत्कालीन विपक्ष के नेता वाजपेयी को जिनेवा में भारतीय प्रतिनिधिमंडल के सदस्य के रूप में भेजा था।

बतौर प्रधानमंत्री वाजपेयी ने साल 1998 में पोखरण में जो परमाणु परीक्षण किया, उसकी शुरुआती तैयारी राव ने अपनी सरकार में की थी। राव 21 जून, 1991 से 16 मई, 1996 तक प्रधानमंत्री रहे। उन्होंने 1995 में परमाणु परीक्षण की तैयार के संबंध में वाजपेयी को जानकारी दी थी। हालांकि तब अमेरिकियों को भारत की तैयारी भनक लग गई और परीक्षण टल गया।

‘देश का गुलाम हूं वेश का नहीं’

प्रधानमंत्री रहते हुए वाजपेयी ने भारत-पाक संबंधों को ठीक करने की कोशिश की थी, क्योंकि उनका मानना था कि “आप दोस्त बदल सकते हैं, पड़ोसी नहीं।” वाजपेयी की जीवनी ‘Atal Bihari Vajpayee – India’s Most Loved Prime Minister’ लिखने वाली वरिष्ठ पत्रकार सागरिका घोष एक इंटरव्यू जिया-उल-हक और वाजपेयी से जुड़ा एक किस्सा सुनाती हैं। बकौल घोष, वाजपेयी को पाकिस्तान हाई कमिश्नर ने जिया-उल-हक की तरफ से एक पठान सूट भेंट किया था। वाजपेयी ने बिना झिझक वह भेंट न सिर्फ स्वीकार किया, बल्कि उस पठान सूट को पहनकर एक डिनर पार्टी में भी पहुंच गए। वाजपेयी को पठान सूट में देख लोग बहुत आश्चर्यचकित हुए। तब उन्होंने लोगों की शंका का समाधान करते हुए स्पष्ट कहा, “मैं देश का गुलाम हूं वेश का नहीं।”

वाजपेयी को मिला था अपनी पार्टी बनाने का सुझाव

नीरजा चौधरी अपने आर्टिकल में लिखती हैं, “कभी-कभी वाजपेयी के सामने यह कह दिया जाता था कि वह गलत पार्टी में सही आदमी हैं। वह यह सुनकर हंसता और इस दौरान उनके कंघे हिलते रहते। अस्सी के दशक के उत्तरार्ध में एक समय, कई लोगों ने उनसे एक नई पार्टी बनाने का आग्रह किया, लेकिन उन्होंने इस तरह का सुझाव कभी स्वीकार नहीं किया।”

नेहरू की मौत पर वाजपेयी ने क्या कहा था?

कई लोग ऐसा मानते हैं कि वाजपेयी के आदर्शों में जवाहरलाल नेहरू भी शामिल थे। हालांकि वाजपेयी ने अपने राजनीतिक गुरु श्यामा प्रसाद मुखर्जी की हिरासत में मौत और 1962 के भारत-चीन युद्ध के दौरान तैयारियों की कमी के लिए भारत के पहले प्रधानमंत्री की जमकर आलोचना की।

1964 में जब नेहरू की मृत्यु हुई, तो वाजपेयी ने उन्हें काव्यात्मक श्रद्धांजलि देते हुए कहा था, “सूरज डूब गया है, लेकिन सितारों की छाया से हमें अपना रास्ता खोजना होगा।” भाजपा के पूर्व विचारक सुधींद्र कुलकर्णी ने द इंडियन एक्सप्रेस पर प्रकाशित एक लेख में दावा किया था वाजपेयी ने नेहरू की तुलना राम से की थी। कुलकर्णी लिखते हैं,

नेहरू की तुलना राम से करते हुए वाजपेयी ने कहा था- पंडित जी के जीवन में हमें वाल्मीकि की गाथा में पाए जाने वाले महान भावनाओं की झलक मिलती है। राम की तरह, नेहरू असंभव और अकल्पनीय के सूत्रधार थे… व्यक्तित्व की वह ताकत, वह जीवंतता और मन की स्वतंत्रता, प्रतिद्वंद्वी और दुश्मन को मित्र बनाने में सक्षम होने का गुण, वह सज्जनता, वह महानता – यह शायद नहीं मिलेगी भविष्य में।

(सुधींद्र कुलकर्णी का पूरा लेख पढ़ने के लिए लिंक पर क्लिक करें।)