जुलाई से पहले देश के लिए नए राष्ट्रपति का चुनाव हर हालत में होना है, क्योंकि, राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद का कार्यकाल 25 जुलाई में खत्म हो रहा है। इसमें कोई दो राय नहीं कि बीजेपी नीत एनडीए राष्ट्रपति व उप राष्ट्रपति चुनाव जीत जाएगा। विपक्ष के लिहाज से देखा जाए तो ये चुनाव उनके लिए एक लिटमस टेस्ट की तरह से होंगे। इससे पता चलेगा कि क्या कांग्रेस फिर से विपक्षी पार्टियों की धुरी बन पाती है।

देश में राष्ट्रपति का चुनाव अप्रत्यक्ष मतदान के तहत होता है, जिसमें निर्वाचक मंडल ही अगला राष्ट्रपति तयकरता है। राष्ट्रपति चुनाव में निर्वाचक मंडल संसद के दोनों सदनों के सांसदों और राज्य विधानसभाओं के विधायकों से मिलकर बनता है। एक सांसद के वोट का मूल्य एक एमएलए से ज्यादा होता है। हर एमपी के वोट का वैल्यू 708 है। जबकि विधायकों के वोट का मूल्य उस राज्य की आबादी तय करती है।

विभिन्न पार्टियों के पास मौजूद इतने वोट

राष्ट्रपति चुनाव में कुल वोट के 48 फीसदी वोट एनडीए के पास हैं। इनमें से 42.2 फीसदी केवल बीजेपी का है। दूसरी तरफ़ एआईएडीएमके के पांच फीसदी, बीजेडी के 2.9, टीआरएस के दो फीसदी, जेडीयू के दो फीसदी से कम और वाईएसआरसीपी के पास 3 फीसदी, टीएमसी के पास 5.3 फीसदी वोट हैं।

दूसरी तरफ कांग्रेस के पास 13.38 फीसदी वोट हैं। यूपीए की बात करें तो ये नंबर 24 फीसदी तक पहुंच जाते हैं। लेकिन इसमें डीएमके, शिवसेना, एनसीपी, नेकां, झामुमो, मुस्लिम लीग, आरएसपी व कुछ अन्य पार्टियों को शामिल होना पड़ेगा। लेफ्ट के पास 2.5 फीसदी वोट हैं। इन सभी को मिलाकर वोटों का आंकड़ा 26.3 फीसदी तक पहुंच जाता है। अगले माह होने वाले राज्यसभा चुनाव में ये आंकड़ा थोड़ा बदल सकता है।

सांसदों और विधायकों के वोट मूल्य के हिसाब से तुलना करें तो बीजेपी के अगुवाई वाले एनडीए के पास कुल 48.9 फीसदी निर्वाचक मंडल का ही जुगाड़ बैठता है। अगर सभी विपक्षी पार्टियां एकजुट हो जाएं तो उनके निर्वाचक मंडल का ग्राफ 51.1 फीसदी तक पहुंच जाता है। यानी एनडीए का पलड़ा 2.2 फीसदी अंकों से हल्का हो रहा है। लेकिन विपक्ष में टीएमसी, आम आदमी पार्टी और समाजवादी पार्टी जैसे दल भी शामिल हैं, जिनके पास 19.7 फीसदी वोट हैं।

हाल फिलहाल के गणित से लगता नहीं है कि ये राजनीतिक दल कांग्रेस के पाले में जाने वाले हैं। केसीआर भी अपनी ढपली अपना राग की तर्ज पर चलते जा रहे हैं। लेकिन राष्ट्रपति चुनाव से ही पता चलेगा कि विपक्ष के कौन से दल किस पाले में जाने वाले हैं। यानि 2024 के समीकरणों के लिहाज से ये चुनाव अहम होने वाले हैं। फिलहाल जो राजनीतिक हालात दिख रहे हैं उनमें तृणमूल, आप, केसीआर और सपा कांग्रेस के साथ आते नहीं दिख रहे। वैसे छोटे दलों को लेकर उदयपुर के चिंतन शिविर में राहुल गांधी खुद चिंता जता चुके हैं। उनका मानना था कि ये दल अपना फायदा देखकर पाला बदलने से नहीं चूकते।