Narendra Modi ek rahenge toh safe Rahenge: महाराष्ट्र और झारखंड में चल रहे विधानसभा चुनाव के साथ ही देश भर में हो रहे उपचुनावों के बीच प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का नारा ‘एक रहेंगे तो सेफ रहेंगे’ जबरदस्त चर्चा में रहा। न सिर्फ हिंदी बेल्ट में बल्कि महाराष्ट्र में भी इस नारे को लेकर काफी सियासी शोर सुनाई दिया। इसके अलावा मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के ‘बंटेंगे तो कटेंगे’ के नारे पर भी सत्तापक्ष और विपक्ष में काफी तकरार हुई। सवाल यह है कि आखिर प्रधानमंत्री को ‘एक है तो सेफ है’ का नारा क्यों देना पड़ा?

इसके लिए थोड़ा पीछे चलते हैं। याद दिलाना होगा कि लोकसभा चुनाव 2024 के दौरान कांग्रेस और विपक्षी दलों ने यह नारा उछाला था कि बीजेपी अगर फिर से सत्ता में आई तो संविधान और आरक्षण को खत्म कर देगी। इस नारे ने चुनाव में असर दिखाया था और भाजपा अपने चुनावी लक्ष्य से काफी पीछे रह गई थी। हालांकि हरियाणा के चुनाव में उसे जीत मिली है लेकिन पार्टी की एक बड़ी परीक्षा महाराष्ट्र और झारखंड के चुनाव में होनी है। इसके साथ ही कांग्रेस जाति जनगणना को भी बड़ा मुद्दा बना रही है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सहित भाजपा के तमाम नेताओं ने लगातार अपनी चुनावी जनसभाओं में कहा है कि कांग्रेस एससी, एसटी और ओबीसी के हिस्से का आरक्षण मुसलमानों को देना चाहती है। प्रधानमंत्री ने कहा है कि मंडल आयोग की सिफारिशें लागू होने के बाद जब ओबीसी एकजुट हुए तो कांग्रेस बिखर गई।

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अजित पवार के बयान से होगा BJP को नुकसान ?(Source-FB)

कांग्रेस की ओर से संविधान और आरक्षण को खतरा और जाति जनगणना का जवाब बीजेपी को भी देना है क्योंकि वह लोकसभा चुनाव में राजनीतिक नुकसान उठा चुकी है। इसलिए बीजेपी ने ‘एक है तो सेफ है’ और ‘बंटेंगे तो कटेंगे’ के नारे को सामने कर दिया है।

आरक्षण से नफरत करती है कांग्रेस: मोदी

प्रधानमंत्री ने यह भी कहा कि आजादी के बाद जब कांग्रेस बहुत ताकतवर थी तो वह आरक्षण के बारे में बात भी नहीं करती थी क्योंकि जवाहरलाल नेहरू से लेकर राजीव गांधी तक आरक्षण से नफरत करते थे। प्रधानमंत्री कह चुके हैं कि गांधी परिवार नहीं चाहता था कि समाज के कमजोर और वंचित वर्गों को आरक्षण मिले। प्रधानमंत्री ने स्पष्ट रूप से कहा है कि कांग्रेस इन समुदायों को कमजोर करना और उनका आरक्षण छीनना चाहती है और इसलिए वह बार-बार कह रहे हैं कि ‘एक रहेंगे तो सेफ रहेंगे।’

बीजेपी का मानना है कि कांग्रेस के द्वारा की जा रही जाति जनगणना की मांग के बीच एससी, एसटी और ओबीसी को एकजुट होना होगा क्योंकि कांग्रेस इन्हें मिलने वाले आरक्षण को मुसलमान को दे देना चाहती है।

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बीजेपी और हिंदुत्व के स्टार चेहरे बने योगी आदित्यनाथ। (Source-MYogiAdityanath/FB)

मंडल आयोग के बाद बदली राजनीति

90 के दशक में भारतीय राजनीति में बड़े बदलाव हुए विशेषकर उत्तर भारत में कमंडल और मंडल की राजनीति का यह दौर था। मंडल आयोग की सिफारिशें लागू होने के जवाब में बीजेपी ने कमंडल की राजनीति की। अयोध्या में राम मंदिर के निर्माण के लिए पूर्व प्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवाणी के नेतृत्व में राम रथ यात्रा निकाली गई और इसके पीछे मकसद हिंदू जातियों को एकजुट करना था।

अपने शुरुआती दौर में बनिया-ब्राह्मण समुदायों की पार्टी के रूप में पहचाने जाने वाली बीजेपी ने गोविंदाचार्य के नेतृत्व में सोशल इंजीनियरिंग को अपनाया और ओबीसी और दलित वर्ग तक न सिर्फ पहुंचने की कोशिश की बल्कि इन समुदायों से आने वाले नेताओं को ऊंचे ओहदों पर भी पहुंचाया।

इसके तहत ही राम मंदिर के शिलान्यास समारोह की पहली ईंट दलित समुदाय से आने वाले कामेश्वर चौपाल के हाथों रखी गई और पार्टी ने ओबीसी नेताओं- कल्याण सिंह, उमा भारती और विनय कटियार को हिंदुत्व का चेहरा बनाया। इसी तरह बिहार में ओबीसी समुदाय से आने वाले सुशील मोदी, गुजरात में नरेंद्र मोदी और मध्य प्रदेश में शिवराज सिंह चौहान को पार्टी ने अपना नेता बनाया।

वंचित वर्गों को दी राजनीतिक ताकत

2014 के चुनाव में पीएम मोदी को चेहरा बनाने के बाद पार्टी ने कई राज्यों में ओबीसी नेताओं को आगे बढ़ाया है। हाल ही में हरियाणा के चुनाव में नायब सिंह सैनी को फिर से मुख्यमंत्री बनाया है। इसके अलावा पहले दलित समुदाय से आने वाले रामनाथ कोविंद और अब आदिवासी समुदाय से आने वालीं द्रौपदी मुर्मू को पार्टी ने राष्ट्रपति बना कर यह संदेश दिया है कि वह वंचित वर्गों की सबसे बड़ी हितैषी है। प्रधानमंत्री मोदी कह चुके हैं कि कांग्रेस और उसके साथी दलों ने मुर्मू के राष्ट्रपति बनने का विरोध किया था। बीजेपी का कहना है कि कांग्रेस और विपक्ष जाति के नाम पर हिंदू समुदाय को बांटने की कोशिश कर रहे हैं।

योगी के नारे को RSS का समर्थन

योगी आदित्यनाथ के नारे को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की सहमति मिलना भी हिंदू जातियों को एकजुट करने की दिशा में एक बड़ा कदम माना जा रहा है। योगी आदित्यनाथ बांग्लादेश में हिंदू मंदिर और हिंदू समुदाय पर हुए हमलों को लेकर विपक्ष की चुप्पी पर सवाल उठा चुके हैं। बंटेंगे तो कटेंगे के नारे को लेकर विवाद भी हुआ और बीजेपी के सहयोगी दलों और अपने ही नेताओं ने इस नारे को लेकर नाराजगी जताई। जैसे अजित पवार और पंकजा मुंडे ने।

सीधे तौर पर यही कहा जा सकता है कि कांग्रेस और विपक्ष की ओर से जाति जनगणना, संविधान और आरक्षण खतरे में है का जवाब बीजेपी की ओर से ‘बंटेंगे तो कटेंगे’ और ‘एक है तो सेफ है’ के नारे के साथ दिया जा रहा है। 23 नवंबर को दो राज्यों के विधानसभा चुनाव के नतीजे और कई सीटों के उपचुनाव के नतीजों से भी इस बात का संदेश जरूर मिलेगा कि इन नारों का हिंदू जनमानस पर कितना असर हुआ है।