इस मानसून सत्र में नरेंद्र मोदी सरकार के ख‍िलाफ अव‍िश्‍वास प्रस्‍ताव पर चर्चा होगी। लोकसभा में कांग्रेस के लाए अव‍िश्‍वास प्रस्‍ताव पर चर्चा होगी। कब होगी, यह लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला तय करेंगे। उन्‍होंने 26 जुलाई को कांग्रेस सांसद गौरव गोगोई द्वारा सदन में लाए गए इस प्रस्‍ताव को स्‍वीकार करते हुए यह ऐलान क‍िया।

2019 में बनी सरकार के ख‍िलाफ यह पहला अव‍िश्‍वास प्रस्‍ताव होगा। हालांक‍ि, 2018 में भी टीआरएस की ओर से मोदी सरकार के खिलाफ अव‍िश्‍वास प्रस्‍ताव लाया गया था। ताजा अव‍िश्‍वास प्रस्‍ताव के बहाने 2008 में मनमोहन सरकार द्वारा लाए गए व‍िश्‍वास प्रस्‍ताव का ज‍िक्र करना द‍िलचस्‍प होगा। यह प्रस्‍ताव कई मायनों में अहम था।

2008 का वो व‍िशेष सत्र

15 साल पहले के उस व‍िशेष सत्र में मौसम तो बरसात का था, लेक‍िन राजनीत‍ि के ल‍िहाज से बड़ी गर्मी थी। तब प्रधानमंत्री थे मनमोहन स‍िंह। मनमोहन सरकार अमेर‍िका से परमाणु समझौता करना चाहती थी, लेक‍िन वामपंथी पार्ट‍ियां ऐसा नहीं चाहती थीं। ऐसे में उन्‍होंने सरकार से समर्थन वापस ले ल‍िया। मनमोहन पीछे हटने को तैयार नहीं थे। उन्‍होंने सदन में व‍िश्‍वास मत हास‍िल करने का फैसला क‍िया।

सरकार के व‍िश्‍वास प्रस्‍ताव पर चर्चा के ल‍िए व‍िशेष सत्र बुलाया गया। तब लोकसभा अध्‍यक्ष सोमनाथ चटर्जी (माकपा सांसद) थे। सरकार को ग‍िराने के ल‍िए बीजेपी ने भी वामपंथ‍ियों का साथ द‍िया। बीजेपी अमेर‍िका से मजबूत र‍िश्‍ते का पक्षधर थी, लेक‍िन उसने दलील दी क‍ि अगर उसकी सरकार बनी तो अमेर‍िका के साथ इससे बेहतर समझौता करेगी। लेक‍िन, ऐसा हुआ नहीं। 37 सांसदों वाली समाजवादी पार्टी सरकार के साथ थी। मुलायम स‍िंह यादव ने सदन में कहा क‍ि एपीजे अब्‍दुल कलाम उन्‍हें कहते थे क‍ि अमेरिका से परमाणु समझौता भारत के ल‍िए बड़े फायदे का है। दो द‍िन की गरमागरम बहस के बाद सरकार 256 के मुकाबले 275 मतों से व‍िश्‍वास मत जीत गई।

क्रॉस वोट‍िंंग भी हुई थी

माकपा ने सोमनाथ चटर्जी से स्‍पीकर का पद छोड़ व‍िश्‍वास प्रस्‍ताव के ख‍िलाफ वोट डालने के ल‍िए कहा था। उन्‍होंने इनकार कर द‍िया। पार्टी ने उन्‍हें वोट‍िंग के अगले ही द‍िन न‍िलंब‍ित कर द‍िया था। 23 जुलाई, 2008 को सोमनाथ चटर्जी का माकपा से न‍िलंबन हुआ। भाजपा ने भी व‍िश्‍वास प्रस्‍ताव पर मतदान में शाम‍िल नहीं होने या पार्टी लाइन के ख‍िलाफ वोट डालने के चलते आठ सदस्‍यों को न‍िलंब‍ित क‍िया था। पार्टी के नेता लालकृष्‍ण आडवाणी ने कहा था- 22 जुलाई संसदीय इत‍िहास में काला द‍िन के रूप में याद क‍िया जाएगा। टीडीपी, बीजद, श‍िरोमण‍ि अकाली दल के कुछ सांसद भी या तो वोटि‍ंग के वक्‍त लोकसभा नहीं आए या पार्टी लाइन से हट कर वोट डाला।

व‍िश्‍वास प्रस्‍ताव के करीब एक साल बाद ही चुनाव था। 2009 में हुए उस चुनाव में अमेर‍िका से परमाणु समझौता एक मुद्दा बना और कांग्रेस बेहतर नतीजों के साथ वापस आई। एक बार फ‍िर यूपीए की सरकार बनी थी। वामपंथी पार्ट‍ियों ने कांग्रेस से नाता तोड़ ल‍िया था। उसके बाद से हुए चुनावों में वामपंथी पार्ट‍ियां लोकसभा में लगातार कमजोर होती गईं।

ताजा अव‍िश्‍वास प्रस्‍ताव क्‍यों?

अव‍िश्‍वास प्रस्‍ताव का स‍िर्फ एक मकसद है क‍ि प्रधानमंत्री मण‍िपुर में ह‍िंसा पर सदन में बोलें। व‍िपक्ष इस मांग पर अड़ा है कि मणिपुर में ह‍िंसा पर प्रधानमंत्री सदन में बयान दें। इस मांग पर सदन लगातार बाध‍ित हो रहा है। ऐसे में कांग्रेस के लोकसभा में नेता अधीर रंजन चौधरी ने मंगलवार (25 जुलाई) को मीडिया से कहा था कि विपक्ष सदन में अविश्वास प्रस्ताव पेश करेगा, क्योंकि सरकार मणिपुर पर लंबी चर्चा और प्रधानमंत्री के बयान की विपक्ष की मांग को स्वीकार नहीं कर रही है। अविश्‍वास प्रस्‍ताव पर चर्चा होगी तो लंबी होगी और अंत में प्रधानमंत्री को भी जवाब देना ही होगा।

अविश्वास प्रस्ताव और मौजूदा संख्‍या बल

संख्‍या बल सत्‍ताधारी पक्ष के साथ है, इसमें कोई संदेह नहीं। अकेले बीजेपी के लोकसभा में 303 सांसद हैं। उसकी सहयोगी पार्टियों के 28 सांसदों को म‍िला दें तो सत्‍ताधारी गठबंधन एनडीए के 331 सांसद हो जाते हैं। अव‍िश्‍वास प्रस्‍ताव को ग‍िराने के ल‍िए केवल 272 सांसद चाह‍िए।

व‍िपक्ष की बात करें तो ‘इंडिया’ गठबंधन के 144 सांसद हैं। बीआरएस, वाईएसआरसीपी और बीजेडी जैसी पार्टियां के 70 सासंद हैं। ये एनडीए या इंड‍िया, क‍िसी गठबंधन में नहीं हैं। अगर ये सब भी अव‍िश्‍वास प्रस्‍ताव का समर्थन कर दें तो भी संख्‍या 272 से बहुत पीछे रहेगी।

संव‍िधान और अविश्वास प्रस्‍ताव का प्रावधान

संविधान का अनुच्छेद 75(3) कहता है क‍ि मंत्रिपरिषद सामूहिक रूप से लोकसभा के प्रति जिम्मेदार है। लोकसभा का व‍िश्‍वास जब तक मंत्र‍िपर‍िषद में रहेगा, तभी तक सरकार सत्‍ता में बनी रह सकती है। यह व‍िश्‍वास है या नहीं, यह जांचने के ल‍िए अविश्वास प्रस्ताव या व‍िश्‍वास प्रस्‍ताव का सहारा ल‍िया जा सकता है। अगर सरकार की ओर से प्रस्‍ताव आएगा तो व‍िश्‍वास प्रस्‍ताव और यद‍ि व‍िपक्ष लाएगा तो अव‍िश्‍वास प्रस्‍ताव कहा जाता है। अव‍िश्‍वास प्रस्‍ताव लोकसभा का कोई भी सांसद ला सकता है। शर्त यह है क‍ि इस प्रस्‍ताव को कम से कम 50 सांसदों का समर्थन हासिल हो।

लोकसभा अध्‍यक्ष अव‍िश्‍वास प्रस्‍ताव मंजूर कर लें तो इस पर चर्चा होती है। प्रस्ताव का समर्थन करने वाले सांसद सरकार की कमियों को उजागर करते हैं, और ट्रेजरी बेंच (सत्‍ता पक्ष) उनके द्वारा उठाए गए मुद्दों पर प्रतिक्रिया देते हैं। जरूर हुआ तो अंत में मतदान होता है। अव‍िश्‍वास प्रस्‍ताव के पक्ष में ज्‍यादा वोट पड़े तो सरकार को इस्‍तीफा देना पड़ता है। अविश्वास प्रस्ताव केवल लोकसभा में ही लाया जा सकता है।

भारत-चीन युद्ध के बाद आया था पहला अव‍िश्‍वास प्रस्‍ताव

भारत-चीन युद्ध के बाद, 1963 में तीसरी लोकसभा के दौरान प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के नेतृत्व वाली सरकार के खिलाफ आचार्य जेबी कृपलानी द्वारा पहला अविश्वास प्रस्ताव लाया गया था। प्रस्ताव पर चार दिनों में 21 घंटे तक बहस चली, जिसमें 40 सांसदों ने भाग लिया था।

बहस का जवाब देते हुए पं. नेहरू ने टिप्पणी की थी, “अविश्वास प्रस्ताव का उद्देश्य सरकार से कांग्रेस को हटाना और उसकी जगह लेना है। वर्तमान उदाहरण में यह स्पष्ट है कि ऐसी कोई अपेक्षा या आशा नहीं थी। और इसलिए बहस, हालांकि यह कई मायनों में दिलचस्प थी और, मुझे लगता है कि लाभदायक भी थी, थोड़ी अवास्तविक थी। व्यक्तिगत रूप से, मैंने इस प्रस्ताव और इस बहस का स्वागत किया है। मैंने महसूस किया है कि अगर हम समय-समय पर इस तरह के परीक्षण करते रहें तो यह अच्छी बात होगी।”

2004 (13वीं लोकसभा) तक 26 अविश्वास प्रस्ताव और 11 व‍िश्‍वास प्रस्‍ताव लाए जा चुके थे। कांग्रेस के गौरव गोगोई द्वारा लाए गए ताजा प्रस्‍ताव से ठीक पहले 2018 में टीआरएस की ओर से अव‍िश्‍वास प्रस्‍ताव लाया गया था।