फरवरी से मई के बीच राज्यसभा के 68 सदस्य अपना कार्यकाल पूरा कर रहे हैं। इस संबंध में गुरुवार (8 फरवरी, 2024) को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राज्यसभा में भाषण दिया। इस दौरान उन्होंने पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह की तारीफ की।

राज्यसभा में मनमोहन सिंह का छठा कार्यकाल चल रहा है, जो 3 अप्रैल, 2024 को समाप्त होगा। पूर्व प्रधानमंत्री के योगदान को याद करते हुए पीएम मोदी ने कहा कि “वैचारिक मतभेद, कभी बहस में छींटाकशी… वो तो बहुत अल्पकालीन होता है। लेकिन इतने लंबे अरसे में उन्होंने जिस तरह से सदन और देश का मार्गदर्शन किया… जब भी हमारे लोकतंत्र की चर्चा होगी, तब मनमोहन सिंह के योगदान की चर्चा ज़रूर होगी।” पीएम मोदी ने मनमोहन सिंह को प्रेरणा स्त्रोत बताते हुए उनकी लंबी आयु के लिए प्रार्थना की।

मनमोहन सिंह की तारीफ करने वाले अक्सर इस बात का जिक्र करते हैं कि उन्होंने खुद को पीछे रखकर देश के लिए काम किया। यही वजह रही कि प्रधानमंत्री रहते हुए, वह चाहकर की पाकिस्तान स्थित अपने पुश्तैनी गांव नहीं जा सके। कांग्रेस नेता और मनमोहन सरकार में केंद्रीय मंत्री रहे राजीव शुक्ला ने पूर्व पीएम की इस इच्छा के बारे में एक इंटरव्यू में बताया था।  

विदेशी में नौकरी के दौरान गए थे पाकिस्तान

डॉ. मनमोहन सिंह का जन्म पाकिस्तान की राजधानी इस्लामाबाद से सौ किलोमीटर दक्षिण पूर्व में बसे गाह गांव में हुआ था। उन्होंने गांव के ही एक प्राइमरी स्कूल में कक्षा चार तक की पढ़ाई की थी। विभाजन के बाद मनमोहन सिंह का परिवार पाकिस्तान से भारत आ गए। लेकिन विदेश में नौकरी के दौरान वह एक बार पाकिस्तान गए थे।  

यूट्यूब चैनल UNFILTERED by Samdish को दिए एक इंटरव्यू में कांग्रेस नेता राजीव शुक्ला ने बताया था कि विदेश में नौकरी करते हुए डॉ. मनमोहन सिंह एक बार अपने पाकिस्तानी दोस्त के साथ रावलपिंडी गए थे। वहां वह उस गुरुद्वारे में गए थे, जहां बचपन में बैसाखी के दिन जाते थे। लेकिन अपने गांव नहीं गए थे।

दरअसल, मनमोहन सिंह जब बहुत छोटे थे तब ही उनकी मां का निधन हो गया था। उनके दादा ने उन्हें पाला। बाद में दंगों में उनके दादा की हत्या हो गई। इस घटना ने उनके मन पर गहरी छाप छोड़ी। इसी वजह से वह तब अपने गांव (गाह) नहीं जा पाए थे, जब रावलपिंडी गए थे। दादा की हत्या के बाद मनमोहन सिंह पेशावर में अपने पिता के पास चले गए थे। जब वह हाईस्कूल में पढ़ाई कर रहे थे, तब भारत-पाकिस्तान का विभाजन हुआ और उन्हें भारत आना पड़ा।

लेकिन प्रधानमंत्री रहते हुए वह एक बार पाकिस्तान जाना चाहते थे। बकौल शुक्ला वह अपना पुश्तैनी गांव देखना चाहते थे। उस स्कूल को देखना चाहते थे, जहां उन्होंने शुरुआती तालीम हासिल की थी।

एक बार अपना स्कूल देखना चाहते थे मनमोहन सिंह  

इंटरव्यू में राजीव शुक्ला याद करते हैं, “एक बार पाकिस्तान से लौटने के बाद मैं उनके (प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह) साथ बैठा (पीएम हाउस में) था, उन्होंने मुझसे कहा कि मेरा भी बड़ा मन है पाकिस्तान जाने का। मैंने उनसे पूछा कि कहां जाना चाहते हैं आप। उन्होंने कहा- मैं अपने गांव जाना चाहता हूं।”

जब शुक्ला ने डॉ. सिंह से पूछा क्या आप अपना पुश्तैनी घर देखना चाहते हैं तो उन्होंने कहा- “नहीं, घर तो मेरा बहुत पहले खत्म हो गया। मैं उस स्कूल को देखना चाहता हूं, जहां कक्षा चार तक पढ़ा था।” हालांकि मनमोहन सिंह का पाकिस्तान विजिट बन नहीं पाया और वह अपना स्कूल नहीं देख पाए।

पाकिस्तान ने मनमोहन सिंह के नाम पर रख दिया है स्कूल का नाम

पाकिस्तान में पैदा हुए मनमोहन सिंह जब भारत के प्रधानमंत्री बने थे, तब पाकिस्तान के राष्ट्रपति परवेज़ मुशर्रफ़ हुआ करते थे, जिनका जन्म दिल्ली में हुआ था। प्रधानमंत्री बनने के बाद डॉ. मनमोहन सिंह ने परवेज मुशर्रफ को गाह गांव में विकास के कार्य कराए जाने को लेकर एक पत्र लिखा था।

इसके बाद गाह गांव में जमकर विकास कार्य हुआ। उसी दौरान (अगस्त 2004) पाकिस्तान सरकार ने गाह के उस स्कूल का नाम मनमोहन सिंह के नाम पर रख दिया था, जहां उन्होंने कक्षा चार तक पढ़ाई की थी। अब उस स्कूल का नाम-  मनमोहन सिंह गवर्नमेंट बॉयज प्राइमरी स्कूल है। इतना ही नहीं गाह गांव को “आदर्श गांव” भी घोषित किया गया था। मनमोहन सिंह ने पाक सरकार के इस कदम की सराहना की थी।

“गांधी परिवार की खोज थे डॉ. मनमोहन सिंह”

इंटरव्यू के दौरान मनमोहन सिंह की तारीफ करते हुए शुक्ला ने कहा, “उनकी जिन्दगी में बहुत संघर्ष था। मैं तो उनकी सरकार में मंत्री था। मुझे लगातार उनके सानिध्य में रहने का मौका मिला। वो भी चुपचाप करते थे। श्रेय नहीं लेते थे। वो पब्लिसिटी में पड़ते ही नहीं थे। कम बोलते थे।”

मनमोहन सिंह को गांधी परिवार की खोज बताते हुए शुक्ला ने कहा, “मनमोहन सिंह विदेश में नौकरी कर रहे थे। इंदिरा गांधी ने उन्हें बुलाया और फाइनेंस मिनिस्ट्री में रखा। मनमोहन सिंह गांधी फैमिली की डिस्कवरी थे।”