हिंदी साहित्य के महान रचनाकार और स्वतंत्रता सेनानी फणीश्वरनाथ ‘रेणु’ अगर जीवित होते तो आज अपना 103वां जन्मदिन मना रहे होते। उनका जन्म 4 मार्च, 1921 को बिहार के पूर्णिया जिले के औराही हिंगना में हुआ था।
गांव-जवार की भाषा में ही अपनी बात लिखने वाले रेणु ने ‘मैला आंचल’ जैसे कालजयी उपन्यास को रचकर हिंदी साहित्य में आंचलिकता को एक महत्त्वपूर्ण स्थान दिलाया था। हालांकि हम यहां रेणु के रचना संसार पर बात नहीं करेंगे।
यहां हम उनके जीवन के एक अनछुए पहलू के बारे में जानेंगे। वह पहलू है- खान-पान। एक छोटे-से गांव के साधारण किसान परिवार में जन्मे रेणु को खाने-पीने का जबरदस्त शौक था। कहां कौन-सी चीज बढ़िया बनती थी उन्हें पता होता था। उन्हें पता होता था कि शहर का बेस्ट चाइनीज फूड किस दुकान पर मिलेगा। उन्हें कलकत्ता के एक विशेष दुकान का सन्देश (मिठाई) पसंद था। वह मछली को जल तरोई कहते थे।
रेणु के खाने-पीने के शौक का पता कुछ पत्रों से चलता है, जिसका संकलन ‘विद्यासागर गुप्ता’ और संपादन प्रयाग शुक्ल और रुचिरा गुप्ता ने किया है। इसे किताब की शक्ल में ‘चिट्ठियां रेणु की भाई बिरजू को’ शीर्षक से राजकमल प्रकाशन ने छापा है।
रेणु अपने दोस्त बृजमोहन बांयवाला को बिरजू कहते थे। लोहिया और जेपी के साथी रहे बिरजू का फारबिसगंज (पूर्णिया) में जगदीश मिल्स लिमिटेड नाम से एक मिल चलता था। रेणु जब भी आर्थिक तंगी में फंसते तो बिरजू ही उनकी मदद करते थे।
बीमार रेणु को मिठाई की याद आई
‘चिट्ठियां रेणु की भाई बिरजू को’ में फरवरी 1977 के एक प्रसंग का जिक्र मिलता है। पटना से रेणु की पत्नी लतिका, बिरजू को फोन मिलाती हैं। वह बताती हैं कि रेणु काफी बीमार हैं और पटना अस्पताल में भर्ती हैं।
रेणु की इच्छा का जिक्र करते हुए लतिका कहती हैं, “उनकी आपसे मिलने की बहुत इच्छा है और कहा है कि आप उनके लिए पटना आते वक्त कलकत्ता की मशहूर मिठाई की दुकान ‘नकरचन्द नन्दी’ का नालेर गुड़ का सन्देश लेकर जरूर आएं।”
पिंटू की दुकान का रसगुल्ला
बिरजू लिखते हैं, “जब भी हम पटना जाते थे वे पटना के मशहूर पिंटू की दुकान का रसगुल्ला जरूर खिलाते थे। कलकत्ता और पटना में कहां-कहां निखालिस चाइनीज खाना मिलता था उन्हें इसकी जानकारी होती थी। वे हमेशा हम लोगों को टेंगडा में चुगवाह या चाइना टाउन में चाइनीज खाने के लिए ले जाते थे।”
कॉफी हाउस में रेणु कार्नर
पटना के कॉफी हाउस का एक कोना ‘रेणु कार्नर’ के नाम से ही जाना जाता था। रेणु जब भी पटना में रहते, रोज तीन-चार घंटे उनकी बैठक जमती थी, जिसमें वहां के पत्रकार, प्रकाशक, राजनीतिक मित्र मिल-बैठकर अड्डा लगाते थे।
मछली खाने के बहुत शौकीन थे रेणु
रेणु जब भी फारबिसगंज या कलकत्ता स्थित अपने दोस्त बिरजू के घर जाते, तो जमकर स्वादिष्ट व्यंजनों का लुत्फ़ उठाते। बिरजू लिखते हैं, “वे मछली खाने के बहुत शौकीन थे। फारबिसगंज जब भी आते थे, हम लोगों और रेणु जी के मित्र सरयू मिश्र जी को कहलाया जाता था कि अपने गांव भदेसर के पोखर (तालाब) की मछली जरूर बनवाएं। रेणु जी मछली को जल तरोई कहते थे। सरयू बाबू के यहां दही-चूड़ा और मछली का भोज जिसने भी एक बार खाया, वह अभी तक याद करता है।”
