प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी नए संसद भवन का उद्घाटन कर चुके हैं। नया संसद भवन आकार में बड़ा है, विभिन्न आधुनिक सुविधाओं से लैस है लेकिन पुराने संसद भवन की तरह नई वाली इमारत में सेंट्रल हॉल नहीं है। द इंडियन एक्सप्रेस की कंट्रीब्यूटिंग एडिटर कूमी कपूर पुराने संसद भवन के सेंट्रल हॉल को एक ऐसी जगह के रूप में याद करती हैं, जहां पूर्व और वर्तमान सांसदों, मंत्रियों, विपक्षी नेताओं के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चलने का अवसर मिलता था।

पत्रकार और नेताओं के बीच नहीं होते थे उनके सेक्रेटरी

कपूर लिखती हैं कि सेंट्रल हॉल के जरिए देश के ताकतवर लोगों तक आसानी से पहुंचा जा सकता था। पत्रकार आसानी से किसी नेता के साथ इंटरव्यू तय कर पाते थे, उन्हें इसके लिए उनके सेक्रेटरी से होकर नहीं गुजरना पड़ता था। पिछली बार मैं 20 मार्च, 2020 को सेंट्रल हॉल में गई थी। हममें से कई पत्रकार टीएमसी सांसद डेरेक ओ’ब्रायन के इर्द-गिर्द मंडरा रहे थे। उन्होंने तब कोविड-19 वायरस के प्रसार के गंभीर खतरे के प्रति संसदीय अधिकारियों के लापरवाह रवैये पर सवाल उठाया था। दरअसल, उसी सुबह डेरेक ओ’ब्रायन को संसद में मास्क उतारने को कहा गया था।

दो दिन बाद ही संसद अनिश्चितकाल के लिए हुआ स्थगित

टीएमसी सांसद के सवाल उठाने के दो दिन बाद ही संसद को अचानक अनिश्चितकाल के लिए स्थगित कर दिया गया। संसद अगले सत्र में फिर से शुरू हुआ। लेकिन भीड़ कम करने के नाम पर पत्रकारों को प्रवेश के लिए लॉटरी द्वारा चुना जाने लगा। हालांकि कोरोना कोविड महामारी खत्म होने के बाद भी संवाददाताओं को फिर कभी भी सेंट्रल हॉल में वापस जाने की अनुमति नहीं मिली।

1975 में इंदिरा गांधी के आपातकाल के दौरान भी पत्रकारों के साथ यही किया गया था। तब संजय गांधी ने संसद के सेंट्रल हॉल में पत्रकारों की बैठकी को ‘गपशप का अड्डा’ कहा था।

संसद में PM मोदी की एंट्री साथ बहुत कुछ बदल गया

2014 में सत्ता परिवर्तन के बाद ऐसी चर्चा थी कि नई सरकार संसद सदस्यों को मीडिया से दूर रखना चाहती है। कूमी कपूर लिखती हैं कि “प्रधानमंत्री कार्यालय से एक ओएसडी की ड्यूटी सेंट्रल हॉल में लगा दी गई। चर्चा थी कि ओएसडी वहां इस बात पर नजर रखने के लिए था कि कौन किससे बात कर रहा है। जबकि पत्रकारों और नेताओं के बीच यह एक अलिखित समझौता है कि वह हॉल की अनौपचारिक बातचीत को खबर के सोर्स की तरह इस्तेमाल नहीं करेंगे। डरपोक सत्तारूढ़ दल के सांसद सेंट्रल हॉल से दूर रहने लगे।”

‘सत्ता मीडिया विरोधी हो गई’

कपूर लिखती हैं, “पीएम मोदी के पहले कार्यकाल में सत्ता पक्ष की तरफ से अरुण जेटली और विपक्ष की तरफ से अहमद पटेल आकर्षण का केंद्र रहे। अंदरखाने की जानकारी के लिए पत्रकार इन दोनों के चारों तरफ ही घूमते रहते थे। दोनों नेता मीडिया को अपने पक्ष में रखने के महत्व समझते थे। लेकिन 2019 तक जेटली मंच पर नहीं थे और सत्ता पक्ष अब मीडिया के प्रति खुले तौर पर विरोधी हो गया था। आधी सदी से अधिक समय तक हमारे संसदीय लोकतंत्र के कामकाज का गवाह रहे सेंट्रल हॉल में पत्रकारों के औपचारिक प्रतिबंध से पहले ही किसी भी खबर को खंगालना काफी मुश्किल हो गया था।”

सेंट्रल हॉल का ऐतिहासिक महत्व

सेंट्रल हॉल के ऐतिहासिक महत्व को याद करते हुए कूमी कपूर लिखती हैं, “इस हॉल में संविधान का मसौदा तैयार किया गया था, जवाहरलाल नेहरू ने यहां अपना ‘ट्रिस्ट विद डेस्टिनी’ भाषण दिया था, सोनिया गांधी ने अंतरात्मा की आवाज के आधार पर प्रधानमंत्री पद को स्वीकार न करने की घोषणा की थी, यूपीए सरकार से वामपंथी दलों के बाहर होने पर समाजवादी सांसदों को रातों रात पाला बदलने के लिए राजी कर लिया गया था।”

सेंट्रल हॉल न होने के मायने

कपूर लिखती हैं, “नई संसद में संयुक्त सत्र आयोजित करने पर लोकसभा और राज्यसभा दोनों के सदस्यों के बैठने के लिए एक विशेष विधायी कक्ष है। लेकिन नई संसद के वास्तुशिल्प योजनाओं में एक केंद्रीय हॉल के लिए जगह नहीं थी, जहां विभिन्न पार्टियों के नेता अनौपचारिक बातचीत करते और मीडिया किनारे से देखता रहा।” कपूर तंजिया लहज़े में अपनी बात खत्म करती हैं, “हॉल अब इतिहास बन गया है, जाहिर है ऐसा एक स्वस्थ, संवादात्मक उदार लोकतंत्र सुनिश्चित करने के लिए किया गया है।”