डीएमके नेता और राज्यसभा सांसद एम.एम. अब्दुल्ला ने हाल ही में उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ से शिकायत की है कि मंगलवार को जब वह संसद परिसर में घूम रहे थे तो सुरक्षाकर्मियों ने उन्हें रोका और पूछताछ की।
धनखड़ को लिखे अपने पत्र में डीएमके सांसद ने सीआईएसएफ कर्मियों पर दुर्व्यवहार का आरोप लगाया। उन्होंने लिखा, “मैं सीआईएसएफ कर्मियों के इस व्यवहार से स्तब्ध हूं, जिन्होंने मुझसे संसद में मेरे आने के उद्देश्य के बारे में सवाल किया, जहां मैं लोगों और तमिलनाडु राज्य के हितों का प्रतिनिधित्व करता हूं।”
डीएमके सांसद ने लगाया सीआईएसएफ कर्मियों पर दुर्व्यवहार का आरोप
अब्दुल्ला ने अपने पत्र में कहा, “ऐसा दुर्व्यवहार पहले कभी नहीं हुआ जब पीएसएस (संसद सुरक्षा सेवा) सुरक्षा का प्रभारी था। मैं अभी भी यह नहीं समझ पा रहा हूं कि सीआईएसएफ कर्मियों ने मुझसे किस तरह से पूछताछ की और इस घटना ने मुझ पर गहरा प्रभाव डाला है।”

CISF ने दी सफाई
सांसद ने राज्यसभा के सभापति से सीआईएसएफ कर्मियों के दुर्व्यवहार के लिए उनके खिलाफ कार्रवाई करने को कहा है। हालांकि, सीआईएसएफ के सूत्रों ने कहा कि सुरक्षाकर्मी नए सांसद की मदद करना चाहते थे और इसलिए उनसे पूछा कि वह कहां जा रहे हैं और क्या उन्हें मदद की ज़रूरत है। सीआईएसएफ के एक अधिकारी ने कहा कि माननीय सांसद को नहीं रोका गया।
विपक्ष का सरकार पर आरोप
जिसके बाद विपक्षी नेताओं ने बुधवार को चिंता जताते हुए कहा कि इंडिया गठबंधन के सांसदों को रोकने के लिए ही संसद सुरक्षा सेवा की जगह केंद्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल (CISF) को संसद परिसर की सुरक्षा की जिम्मेदारी दी गयी है। कांग्रेस सांसद शशि थरूर ने घटना की निंदा करते हुए कहा, “गृह मंत्रालय द्वारा संसद की सुरक्षा पर इस तरह कब्जा जमाने को बर्दाश्त नहीं किया जाना चाहिए।”
संसद की सुरक्षा में उल्लंघन के बाद मिली CISF को ज़िम्मेदारी
गौरतलब है कि संसद परिसर की सुरक्षा पहले संसद सुरक्षा सेवा, दिल्ली पुलिस और केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल द्वारा संभाली जाती थी। दिसंबर 2023 में संसद में सुरक्षा उल्लंघन हुआ जब दो युवक दर्शक दीर्घा से लोकसभा कक्ष में कूद गए और धुआं उड़ाया। जिसके बाद केंद्रीय गृह मंत्रालय ने परिसर की सुरक्षा सीआईएसएफ को सौंप दी। मई में संसद परिसर की सुरक्षा व्यवस्था संसद सुरक्षा सेवा (पीएसएस) की जगह केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बल को दिए जाने के बाद से सांसदों में नाराजगी है।

संसद परिसर की सुरक्षा में क्यों हुआ बदलाव?
संसद परिसर में सुरक्षा की ज़िम्मेदारी पीएसएस और लगभग 100 साल पुरानी वॉच एंड वार्ड कमेटी के पास थी। उनके पास परिसर की सुरक्षा के लिए आवश्यक प्रशिक्षण और अनुभव था। खासतौर पर उस दौरान जब संसद सत्र चल रहा हो और परिसर में लगभग 800 सांसद, गणमान्य व्यक्ति, अधिकारी और मीडियाकर्मी हों।
सीआईएसएफ ने परिसर में सुरक्षा की जिम्मेदारी कैसे संभाली?
अप्रैल 2024 में, सीआईएसएफ कर्मियों ने दिल्ली पुलिस के 150 कर्मियों की जगह ले ली, जो पीएसएस के साथ परिसर में तैनात थे। 13 मई को पीएसएस के प्रमुख संयुक्त सचिव (सुरक्षा) के कार्यालय ने एक आदेश जारी कर कहा कि सीआईएसएफ के डीआइजी से एक पत्र प्राप्त हुआ है, जिसमें कहा गया है कि कुछ कर्तव्य और जांच 20 मई तक सीआईएसएफ को सौंपी जा सकती हैं।
इसमें परिसर की सभी इमारतों के फ्लैप गेटों पर पास की जांच और तोड़फोड़-रोधी जांच शामिल थी। डॉग स्क्वाड के कुत्तों को सौंपना और सीसीटीवी कंट्रोल रूम के नियंत्रण के साथ ही संसद द्वार से घुसने वाले वाहनों पर नियंत्रण शामिल था।

CISF द्वारा संभाली जाने वाली ड्यूटी
- वाहनों के लिए रेडियो फ्रीक्वेंसी टैग जारी करने और आवेदकों के चरित्र और पूर्ववृत्त को सत्यापित करने के लिए राज्यसभा और लोकसभा दोनों के लिए केंद्रीय पास जारी करने वाला सेल (सीपीआईसी);
- सांसदों, वीआईपी, वरिष्ठ सरकारी पदाधिकारियों की एंट्री रेगुलेशन।
- अलग-अलग गेटों पर कर्मचारियों की पोजीशन निर्धारित करना।
- परिसर के अंदर वीआईपी आवाजाही का रेगुलेशन और समन्वय।
- परिसर का रखरखाव, लॉबी में एक्सेस कंट्रोल और पब्लिक और प्रेस गैलरी में मूवमेंट रेगुलेशन और डिसिप्लिन।
- रिसेप्शन ऑफिस, अस्थायी पास जारी करना और परिसर में गैजेट्स का संचालन।
- अन्य सुरक्षा एजेंसियों के साथ समन्वय, बैठकों और सम्मेलनों के दौरान सुरक्षा व्यवस्था, ड्रिल रिहर्सल और राष्ट्रपति के संबोधन के दौरान सुरक्षा व्यवस्था मैनेज करना।
- राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति चुनाव के दौरान अध्यक्ष को सहायता और सुरक्षा प्रदान करना।

पीएसएस का मुख्य कार्य क्या था?
राज्यसभा सचिवालय द्वारा प्रकाशित कार्यालय प्रक्रिया के सेक्शनल मैनुअल के अनुसार, “संसद सुरक्षा सेवा की मुख्य जिम्मेदारी संसद सदस्यों, कर्मचारियों और आगंतुकों की सुरक्षा के लिए संसद भवन परिसर के भीतर सुरक्षा प्रदान करना और बनाए रखना है।”
पीएसएस कर्मियों को 13 दिसंबर, 2001 को संसद पर हुए हमले को विफल करने का श्रेय दिया जाता है। जिसमें दो पीएसएस कर्मी – मातबर सिंह नेगी और जगदीश प्रसाद यादव मारे गए थे, साथ ही छह दिल्ली पुलिस कर्मी और एक माली भी मारे गए थे।
संसद सुरक्षा के लिए कर्मियों का अलग कैडर बनाने की क्या जरूरत थी?
संसद भवन के अधिकारियों ने बताया कि संसद के लिए अपने स्वयं के विशेष रूप से प्रशिक्षित कैडर के माध्यम से अपने परिसर पर नियंत्रण रखना महत्वपूर्ण है, जो कार्यपालिका के नियंत्रण से स्वतंत्र है।
एक वरिष्ठ संसद अधिकारी ने कहा, “यह ध्यान देना आवश्यक है कि मौजूदा सरकार सांसदों की संसद तक पहुंच को सीमित न करे, संसद पर अपनी सुरक्षा न थोपे या संसद के परिसर का उपयोग करने की क्षमता पर कोई सीमा न लगाए।”
पीएसएस कर्मियों को सांसदों और अन्य वीआईपी की पहचान करने के लिए विशेष रूप से प्रशिक्षित किया जाता है। मैनुअल में कहा गया है कि समय के साथ पीएसएस ने संसद सदस्यों और वीआईपी की पहचान में विशेषज्ञता हासिल कर ली है।
संसद सुरक्षा लोकसभा सचिवालय का हिस्सा
संविधान का अनुच्छेद 98 संसद के एक अलग सचिवालय का प्रावधान करता है। पूर्व लोकसभा महासचिव पीडीटी आचार्य ने द इंडियन एक्सप्रेस को बताया, “संसद सुरक्षा लोकसभा सचिवालय का एक हिस्सा है और इसका काम सांसदों के हितों की रक्षा करना और उनके लिए चीजों को सुविधाजनक बनाना है। यह किसी बाहरी सुरक्षा एजेंसी द्वारा नहीं किया जा सकता जिसके पास संसद सदस्यों के साथ व्यवहार करने का कोई अनुभव नहीं है।”
आचार्य के अनुसार, पीएसएस स्पीकर के नियंत्रण में है और अगर सुरक्षा प्रणाली की संरचना को बदलने की जरूरत होती है तो इसे स्पीकर के निर्देशन में किया जाना चाहिए न कि किसी मंत्रालय द्वारा”
17वीं लोकसभा के अध्यक्ष ओम बिरला ने कहा है कि संसद भवन परिसर की सुरक्षा लोकसभा के नियंत्रण में रहेगी। बिरला के अनुसार, पहले शामिल कई सुरक्षा एजेंसियों दिल्ली पुलिस, सीआरपीएफ, लोकसभा की अपनी सुरक्षा के बजाय अब एक ही एजेंसी, सीआईएसएफ होगी, जो संयुक्त सचिव (सुरक्षा) के माध्यम से लोकसभा के प्रति जवाबदेह होगी।